क्षत्रिय चारण

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क्षत्रिय चारण

रविवार, 29 जुलाई 2018

विर चारण खीमजी दधवाडीया और मेवाड



*धन राणा इकलिंग* ,
*धन मेवाडा देश* ।

*धन जैमल दधवाडिया*
*जीण घर खीम नरेश*


*धारता गाँव केउदयभाण जी के  पुत्र  खीम जी के नाम पर पढ़ा खेमपुर ठिकाने का नाम*

*मेड़ता परगने के दधवाड़ा गाँव से चितोड आये जेतसी को मिले धारता गाँव के उदैभान जी के पुत्र खीम जी अपनी किस्मत आजमाने मेवाड़ के ही सारंगदेवोत के ठिकाने बाठेड़ा के राव भोपत जी के पास आये*

*राव भोपत जी बाठेड़ा के जागीरदार थे व बहुत ही समझदार व गुणग्रही थे । उनकी समझदारी के चर्चे दूर दूर तक फैले हुए थे*
*खीम जी धारता से सुबह अपना धोड़ा लेकर बाठेड़ा के लिए निकले चलते चलते दोपहर हो गई थी सूरज सिर पर था तो खीम जी ने सोचा कि थोड़ा आराम कर लूं यह सोच कर वह एक घने पेड़ के नीचे साथ लाये चूरमा खा कर कुछ देर आराम करने लग गये ।  थोड़ी देर बाद उनके चेहरे पर धूप आने लगी तो वहां एक सर्प अपने फन से उनके मुंह पर छाव कर रखी थी तभी वहां से गुजर रहे सेठ ने यह नजारा देखा तो वह रुक गया व खीम जी के जगने का इंतजार करने लगा थोड़ी देर बाद खीम जी की नींद खुली तो साँप अपने बिल में चला गया तो सेठ जी ने खीम जी से आज के उनके सुकून सेठ को देने को कहा तो खीम जी बचपन से बड़े हुसियार थे मन ही मन उन्होंने  सोचा कि सेठ जी ने जरूर कुछ अच्छा देखा होगा तो खीम जी ने मना कर दिया सेठ जी के लाख समजाने पर भी खीम जी ने हा नही की तब सेठ ने कहा कि ठीक है एक वचन दे दो की जब आपकी नोकरी लग जाय और आप बहुत बड़े आदमी बन जाओ तो मुझे अपने पास नोकरी पर  रखना खीम जी ने हा कर दी  । और दोनों अपने अपने राश्ते निकल गये*

*सन्ध्या होते होते खीम जी बाठेड़ा पहुच गए वहां रावले में जाते ही राव भूपत जी को मुजरा किया तो चारण के बेटा होने के कारण राव ने भी मर्यादापूर्वक खड़े होकर कर खीम जी का ससम्मान करते हुए अपने पास बिठा कर पूरा परिचय लेते हुए आना का कारण पूछा  । कुछ देर बात करने में बाद  खीम जी का डेरा करवा दिया । खीम जी की वाक चतुराई रोबीले चेहरे तमीज व तहजीब से बहुत प्रभावित हुए । और खीम जी को अपने पास रख लिया । कुछ ही समय मे खीम जी ने कुछ ही समय मे राव जी का विश्वास जीत लिया अब क्या था अब तो राव जी जहां भी जाते खीम जी राव जी के साथ कहि भी ठिकाने में पधारे तो खीम जी साथ, शिकार पर जावे तो खीम जी साथ , उदयपुर महलो में आवे तो खीम जी साथ*,

*एक बार महाराजा करन सिंह जी ने अपनी सेवारत एक नरुका राजपूत को नाराज होकर  मरवा दिया था उस नरुका राजपूत कर छोटे भाई ने उसी दिन साफा फेककर सिर पर अंगोछा बांधकर कसम खाई की जब तक अपने भाई की मौत का बदला ना ले लू तब तक साफा नही बांधूगा । यह बात खीम जी ने राव भूपत जी से खीम जी ने सुन रखी थी*।

*एक दीन खीम जी उदयपुर दरबार के पास जा रहे थे राश्ते  एक शिकलिकर के वहा एक  अंगोछा बांधे गुड्सवार पर नजर पढ़ी जो शिकलिकर को यह कहते हुए सुना कि इस तलवार की धार ऐसी करना कि किसी दुसरे की तलवार पर ना हो मुह मांगा पैसा दूँगा खीम जी बड़े समझदार व आगामी स्तिथि को भाप चुके थे खीम जी ने उसके रोबीले चेहरे आखो में गुस्सा सिर पर अंगोछा देख कर समझ गए कि यह वही नरुका राजपूत है और आज कोई ना कोई अनिष्ट करेगा*

*खीम जी भी दूसरी गली के सिकलिकर को अपनी तलवार की धार के लिए देकर चले गए पर खीम जी को नीद कहा खीम जी सोच रहे थे कि यह नरुका करेगा क्या महाराणा तक तो पहुच नही सख्ता क्यों कि पहरा सख्त है सोचते सोचते खीम जी ने सोचा कि यह जरूर कुँवर जगत सिंह जी को यह कोई नुकसान पहुच सख्ता है क्यों कि कुँवर जगत सिंह जी को शिकार का बहुत सोख था वह हर रोज आपने मित्रो के साथ मछला मंगरा पर शिकार को जाते थे । राणा जी  रोज कुँवर जगत सिंह को अपने महलो के झरोखे से आते व जाते देखते थे*।

*सुबह होते होते खीम जी सीतला माता। मंदिर के वहा पहुच गए थोड़ी ही देर में वह अंगोछा बाँधे नरुका भी आ गया  नरुका ने सोचा यह कोई कुँवर के साथ शिकार पर जाने वाला गुड्सवार होगा  नरुका कुँवर जगत सिंह जी का इंतजार करने लगा खीम जी भी सतर्क थे । थोड़ी ही देर में महलो की तरह से 15 से 20 लोगो के हसने की आवाज व घोड़ो के तापो की आवाज सुनाई दी नरुका ने अपने घोड़ा की लगाम पकड़ अपना हाथ तलवार की मुठ पर रख दिया खीम जी को समझने में देर नही लगी नरुका आगे बढ़ा और अपने घोडे को कुँवर जगत सिंह के पास लगाते हुए जोर से चिल्लाया की सावधान कुँवर में अपने भाई का बदला लेने आया हु यह सब नजारा महलो से राणा जी देख कर घबरा गए कि आज तो कुँवर जी गए मगर अगले ही पल में देखा की खीम जी ने  घोड़े को आगे बढ़ाया ओर तलवार निकाल कर तूफान की तरह अपनी तलवार से नरुका के दो  टुकड़े कर दिए और अपना घोड़ा गुमा कर बेठेड़ा पहुच गए*

वहां जाकर राव भूपत जी को सारी कहानी बता दी राव जी ने खीम जी को गले लगाया व कहा कि शबाब खीम जी शाबास आज तो आपने कमाल कर दिया मेवाड़ केके धणी को बचा लिया तेरे इस कार्य से राणा जी तुज से तो खुश होंगे ही पर आज मेरा रुतबा भी बढ़ गया राव जी खीम जी को साथ लेकर महलो में पहुचे*

*वहां पहुचते ही कुवर जगत सिंह जी खीम की को पहचान लिया कि यही वो गुड्सवार था जिसने नरुका को मार गिराया*
*राणा जी का खुसी का कोई पार  नही था राणा जी ने खीम जी को अपने गले लगा कर कहा मेरे तीन बैठे थे आज से चार हो गए  ओर खीम जी का खर्च भी दूसरे राजकुमार की तरह राज कोष से बांध दिया*

*महाराणा करण सिंह जी के स्वर्गवास होने के बाद जगत सिंह जी सिंहासन पर बैठ कर राज्य संभाला तब खीम जी को सत्तर हजार सालाना की आमदनी वाला गाव ठिकरिया इनायत किया और महाराणा ने इस गाँव का नाम ठिकरिया से खिमपुरा रखा जो खीम जी  के नाम पर था जिसे आज खेमपुर के नाम से जाना जाता है यह उदयपुर जिले करीब 40 km है व  मावली तहसील में आता है । इनके वंसज आज भी खेमपुर व उदयपुर में निवास करते है*

*महाराज राज सिंह जी भी खीम जी को बहुत मॉन सम्मान देते थे एवम काका कह कर पुकारते थे*

*स्वभाव से खीम जी बड़े सकीन , दानी , व जिंदा दिली इन्शान थे*

*खीम जी वीर ओर  दानी के साथ साथ बड़े कवि भी थे उनकी वीरता के कारण मेवाड़ में उनको बड़ी जागीरी प्रदान की गयी*

*महाराणा अखे सिंह जी ने अपने पिता राज सिंह का बदला ले कर सभी दुश्मनो को मरवाया इस उपलक्ष में खीम जी ने एक गीत की रचना की जिससे सिरोही महाराव ने खीम जी को सिरोही जिले के कासिन्द्रा गाव दिया*

*सवत स्तर , सातो बरस , चेत सुदी चवदस* ,
*कायन्द्रा कवि खेम ने , अखमल दियो अवस्स*


*चारणाचार। पत्रिका उदयपुर*
*सुल्तान सिंह देवल*

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