क्षत्रिय चारण

क्षत्रिय चारण
क्षत्रिय चारण

रविवार, 29 जुलाई 2018

चारणो के गढपति (गढविर) पद का एक अनुठा उदाहरण


*शूरविर चारण ठाकुर कौलसिंह जी रतनु का प्राणोत्सर्ग*

चारण गढपति थे और वे गढ की रक्षा मे राह चलते भी अपना धर्म व मर्यादा समझकर मरना कबूल कर लेते थे। चारण का सत्य संभाषण व गढरक्षा का मर्यादित धर्म अप्रतीम शौर्य के साथ साथ हजारो वर्षो तक बडी शालीनता के साथ निर्वाहन कीया जाना देवी माता हिंगलाज की शक्ति से हो सका है। ईसलीए एसे उदाहरण सम्पूर्ण जगत मे केवल चारण राजपूत के सनातन मे ही मिलते है।

जोधपुर महाराजा मानसिंह के समय बीहारीदास खीची नामक राजपूत के एक अपराध पर महाराजा बडे क्रुद्ध हुए और उसे गीरफ्तार करने का आदेश दीया।खीची ने अपनी मृत्यु के भय से भागकर साथीण ठाकुर शक्तिदान भाटी की हवेली मे जाकर शरण मांगी ,भाटी ने उसे शरण मे रखा।
महाराजा ने बीहारीदास को वापीस सौंपने के कई संदेश भेजे परंतु शक्तिदान भाटी ने बीहारीदास को वापीस सोंपने का ईनकार कर दीया। मानसिंह ने कहा एसी हरकत कानाना ठाकुर भोमकरण ने की थी,जीसका परीणाम उसने भुक्ता,वही हस्र तुम्हारा भी होगा।शक्तिदान भाटी ने कहा भोमा तो बाई थी ,परंतु ये शक्तिदान तो भाई है अर्थात मर्द है। आपकी सेना का बडा स्वागत करुंगा।

महाराजा के लीए अब युद्ध करना अनिवार्य हो गया ।परंतु तब भी वे भाटीयो से युद्ध का बचाव चाहते थे।तभी मानसिंह ने अंतीम विकल्प चारण को चुना *चौपासनी ठाकुर कौलसिंह रत्नु* को भाटी को समझाने हेतु भेजा।

हवेली मे आगमन पर भाटी ने चारण का स्वागत कीया।कौलसिंह रत्नु ने राजा मानसिंह का क्रोधभरा संदेश कह सुनाया।युद्ध का विनाशकारी परीणाम भी बताया,और राजनैतीक द्रष्टि से समझाया।चारण की बात खत्म होते ही शक्तिदान भाटी ने कहा की "आप मुजे बताओ बाजीसा ईस समय मेरा धर्म बीहारीदास को शरण देना है या उनको छोडना ?"
 कौलसिंह चारण ने कहा "आपका धर्म शर्णागत की रक्षा करना है, परंतु मे तो ईसलीए केह रहा हु की ईस युद्ध मे आपकी ही हानी होगी"
भाटी ने कहा "हानी तो क्या मे धर्म रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग के लीए भी तैयार हु"
ठाकुर कौलसिंह रतनु ने महाराजा मानसिंह को कहा था की मे कुछ भी कर के भाटी को समझा कर ही आउंगा
तब उन्होने कहा वापीस लौटकर राजा को कहने के लीये मेरे पास कोई शब्द नही है,ईसलीए मै भी अब आपके साथ रहुंगा ।

हवेली का दरवाजा बंद कर दीया गया चाबीया चारण कौलसिंह को दी गई।

*गढपति के लीए यह समय बडा विकट और दुरघर्ष पूर्ण होता है गढ ,महेल या हवेली (राजनीवास) के रनीवास की सुरक्षा व संरक्षण का संपूर्ण दायीत्व रहता है।*
*चारण के 'गढपति' महत्वपूर्ण पद के लिए शूरविर, धीर राजनीतीग्न,दुरदृष्टा,विवेकी,तीव्र निर्णय शक्ति,राजघराने के साथ अटूट श्रध्धा,विश्वास व रण कौशल्य आदी गुण चारण मे होने आवश्यक होते थे।चारण को सदैव राज्य की* *सामाजीक,राजनैतीक,आर्थीक व आन्तरिक मामलो की पूर्ण जानकारी रहती है।शासक अपनी गुप्त बाते सबसे गुप्त रख शकता था लेकीन गोपनीय से गोपनीय बात के लीये भी चारण से कोई पर्दा न था।*
आलीशान हवेली की चाबीया कौलसिंह के हाथ मे थमाकर शक्तिदान भाटी ने कहा, धर्म रक्षा का समय आ गया है बाजीसा  अब ये हवेली का दायीत्व आपका ,ये हवेली आपकी हुई और सेना से कहा सैनीको केशरीया धारण करो ,हमे विजय नही अमरत्व चाहीए।

ठाकुर कौलसिंह रतनु केशरीया धारण कर हाथ मे दो धारी तलवार लेकर कभी हवेली के बुर्जो पर जाते तो कभी नीचे मेदान मे आते वे भुखे शेर की तरह ईधर से उधर घूम रहे थे।

जोधपूर की सेना ने हवेली पर धावा बोला। सेना ने हवेली को चारो और से घेर दीया।तोपो और बंदुको की गर्जना से शहर थर्रा गया। पास पडोस वाले आवास छोड कर सुरक्षीत जगाह पर भाग खडे हुए। हवेली के मुख्य द्वार पर तोप लगा दी गई और हवेली का दरवाजा तोडने को तोप के गोले गरज उठे। दरवाजे के चीथडे उडने वाले थे,परंतु हवेली का दरवाजा कौन खोले ?हवेली अब कौलसिंह रतनु की थी। भाटी सेना मुकाबला करने मे कमजोर पड रही थी और दरवाजा टुटने का भी खतरा था। स्थिती को भली भाँती देखकर कौलसिंह जी चारण ने जय माताजी ,जय भवानी केह कर हवेली का दरवाजा खोला। तोप का पहला गोला कौलसिंह  की जंघा पर लगा। उनका पैर एक तरफ और कौलसिंह दुसरी तरफ!!! यह होता है चारण के गढपती (गढविर) पद का कार्य।चलती हुई मौत को अपने गले लगाने का धर्म। चारण सदैव तलवारो के बीच रहेते थे और तलवारे से कटकर विरगति पाते थे।ईस युद्ध मे सर्व प्रथम ठाकुर कौलसिंह जी रत्नु विरगती प्राप्त हुए।

संदर्भ:-
*चारण दीगदर्शन*
*बांकीदास री ख्यात*

*जयपालसिंह (जीगर बन्ना) थेरासणा*

*नोंध:-ईस पोस्ट को अधीक से अधीक शेर करे परंतु मेरे नाम के साथ छेडछाड ना करे।*

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