🔴 *चारणो मे "दान"शब्द की समज*
चारण जाती मे व्यापकता से दैव प्रसाद के रूप मे पुत्र का नामकरण देव अथवा देवी के रूप मे करते है -हींगलाज,करऩी,आवड,शक्ति,देवी,पाबु,चालक,बांकल,खूबड आदी। साथ ही ईष्टदेव/देवी की उपासना से जन्मा पुत्र का नाम उन देव/देवी पर रखा जाता था परंतु जब उसके द्वारा दिया गया है ईस शब्द का प्रयोग व अभीप्राय नित्तान्त स्पष्ट करना आवश्यक था। ईस लीए एसे नामो के अंत मे 'दान' शब्द लगाना अनिवार्य था।
दान शब्द का प्रयोग राजपूत,जैन आदी भी करते आए है। (ईसके बहोत से ईतीहास संबधीत उदाहरण दीए जा सकते है) ईस प्रकार दुसरी जातीयों मे देव आस्था से प्रेरित नाम के अंत मे देव/देवी द्वारा प्राप्त पुत्र को दान शब्द से बोला जाता था।
चारणो मे शक्ति की भक्ति अपनी चरमसीमा पर मुखरित रहेती है,ईस लीए उनके नाम शेंणीदान,चंडीदान,करणीदान,हींगलाजदान, ईत्यादी बहुतायत है।
नामकरण मे रुढी का प्रवाह होने पर कई चारणो ने निरर्थक नामो के साथ भी अनावश्यक रुप से 'दान' शब्द का प्रयोग आरंभ कर दीया। जो उनकी बडी भूल रही है। जैसे कालुदान,अर्जुनदान,भमरदान,तखतदान,महेन्द्रदान,जुगतीदान,बलवंतदान ईत्यादी। क्योकी ईन नामो का नामकरण किसी देव/दैवी अनुकंपा से जन्मे पुत्र का बोध नही कराता है , तब भला निरथर्क रुप से 'दान' शब्द को क्यो ठुंसा गया है ??? ईसी रुढी का यह परीणाम निकला की 'दान' शब्द का अभीप्राय शायद किसी से सदैव वस्तु दान मे लेना रहा होगा। अनभीज्ञ कुछ दुसरी जाती के लोग ईस रुढी को ईसी अर्थ मे लेते है।
नाम के साथ ईसका कोई संबध नही रहता यदी एसा होता तो ब्राह्मण अपने नाम के अंत मे एसा क्यो नही करते?(जबकी 'दान' शब्द 17 वी सदी के बाद ही देखने को मीलता है)
एसा समजना मुर्ख लोगो की अज्ञानता का दोष है।
*"दान"* शब्द का प्रयोग सिर्फ और सिर्फ देव/देवी की अनुकंपा से जन्मे पुत्र के नाम के साथ ही कीया जाना चाहीए,दुसरे नामो के साथ नही ,ये बात हर चारण जरुर समजे।
ईसी लीेए सभी चारण सिरदारो से विनंती है की पहेले हमारी परंपराओ को बराबर समजो और फीर अच्छी तरह नीभावो।
संदर्भ:-
>चारण दिगदर्शन
>राजस्थानी भाषा और साहीत्य
*जयपालसिंह(जीगर बन्ना)सिंहढायच*
*ठी.थेरासणा*
> *एक विंनती है ईस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेर करे परंतु मेरे नाम के साथ छेडछाड न करे*
चारण जाती मे व्यापकता से दैव प्रसाद के रूप मे पुत्र का नामकरण देव अथवा देवी के रूप मे करते है -हींगलाज,करऩी,आवड,शक्ति,देवी,पाबु,चालक,बांकल,खूबड आदी। साथ ही ईष्टदेव/देवी की उपासना से जन्मा पुत्र का नाम उन देव/देवी पर रखा जाता था परंतु जब उसके द्वारा दिया गया है ईस शब्द का प्रयोग व अभीप्राय नित्तान्त स्पष्ट करना आवश्यक था। ईस लीए एसे नामो के अंत मे 'दान' शब्द लगाना अनिवार्य था।
दान शब्द का प्रयोग राजपूत,जैन आदी भी करते आए है। (ईसके बहोत से ईतीहास संबधीत उदाहरण दीए जा सकते है) ईस प्रकार दुसरी जातीयों मे देव आस्था से प्रेरित नाम के अंत मे देव/देवी द्वारा प्राप्त पुत्र को दान शब्द से बोला जाता था।
चारणो मे शक्ति की भक्ति अपनी चरमसीमा पर मुखरित रहेती है,ईस लीए उनके नाम शेंणीदान,चंडीदान,करणीदान,हींगलाजदान, ईत्यादी बहुतायत है।
नामकरण मे रुढी का प्रवाह होने पर कई चारणो ने निरर्थक नामो के साथ भी अनावश्यक रुप से 'दान' शब्द का प्रयोग आरंभ कर दीया। जो उनकी बडी भूल रही है। जैसे कालुदान,अर्जुनदान,भमरदान,तखतदान,महेन्द्रदान,जुगतीदान,बलवंतदान ईत्यादी। क्योकी ईन नामो का नामकरण किसी देव/दैवी अनुकंपा से जन्मे पुत्र का बोध नही कराता है , तब भला निरथर्क रुप से 'दान' शब्द को क्यो ठुंसा गया है ??? ईसी रुढी का यह परीणाम निकला की 'दान' शब्द का अभीप्राय शायद किसी से सदैव वस्तु दान मे लेना रहा होगा। अनभीज्ञ कुछ दुसरी जाती के लोग ईस रुढी को ईसी अर्थ मे लेते है।
नाम के साथ ईसका कोई संबध नही रहता यदी एसा होता तो ब्राह्मण अपने नाम के अंत मे एसा क्यो नही करते?(जबकी 'दान' शब्द 17 वी सदी के बाद ही देखने को मीलता है)
एसा समजना मुर्ख लोगो की अज्ञानता का दोष है।
*"दान"* शब्द का प्रयोग सिर्फ और सिर्फ देव/देवी की अनुकंपा से जन्मे पुत्र के नाम के साथ ही कीया जाना चाहीए,दुसरे नामो के साथ नही ,ये बात हर चारण जरुर समजे।
ईसी लीेए सभी चारण सिरदारो से विनंती है की पहेले हमारी परंपराओ को बराबर समजो और फीर अच्छी तरह नीभावो।
संदर्भ:-
>चारण दिगदर्शन
>राजस्थानी भाषा और साहीत्य
*जयपालसिंह(जीगर बन्ना)सिंहढायच*
*ठी.थेरासणा*
> *एक विंनती है ईस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेर करे परंतु मेरे नाम के साथ छेडछाड न करे*
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