*चारण-राजपूत परंपरा*
*श्री आवड माँ*
आठवी शताब्दी मे काठीयावाड के वल्लभी पुर नगर मे सउआ शाखा के चारण मामडजी रहते थे। लौद्रवा के राजा जसभांण परमार के समकालिक बताते हुए कहा जाता है कि जसभांण मामड़जी चारण का नित्य उठ कर मुंह देखा करता था । उसे किसी ने उलाहना दिया कि जसभांण जिसका तू नित्य उठ कर मुंह देखता है वह तो निःसंतान है ! इस उलाहने से दुःखी होकर मामड़ ने हिंगलाज देवी की पैदल यात्रा सात बार का संकल्प लिया । हिंगलाज देवी ने मांमड़जी के घर शक्ति अवतार लेने का वचन दिया और ये शर्तें रखीं- कि ‘इसको किसी के आगे उजागर न करना, अपनी पत्नी को पवित्रता से रहे, खखर वृक्ष का पालना बनाये -उसे लाल रंग से रंग कर घर के ऊपर लाल ध्वजा बांध दे, प्रति दिन उठ कर सात बार नाम का स्मरण करे ।’
और चारण मामड़जी और मोहवती के घर वि.सं. 808 चैत्र शुक्ल.....मंगलवार को देवी भगवती/हिंगलाज ने आवड़ के रूप में अवतार लिया। ये सात बहिने जो सब देवियां मानी जाती हैं।आवड बाई , जोगड बाई , तोगड बाई , होल बाई , बीज बाई , सासाई, लगु बाई ( ’खोड़ियार’ ) इन्होंने आजीवन कौमार्यव्रत धारण किया था । एक मेहरखा नामक भाई था। आवड जी सबसे बडे थे। तत्कालीन सिंध के राजा ऊमर ने इनकी सुंदरता पर मोहित होकर इनसे विवाह करने का हठ किया किन्तु इन्होंने अपने चमत्कार व कौशल से उसे मार कर वहां भाटी वंश के क्षत्रियों का राज्य जैसलमेर(माड प्रदेश) स्थापित कर दिया । अतः *ये भाटी वंश की कुलदेवी है ।*इनके विषय में अनेक किवदंतियां व चमत्कार प्रसिद्ध है ।
परमार-क्षत्रीय ऊमर सूमरा, जो कि सूमरों का अंतिम शासक था, इस्लाम धर्म में दीक्षित हो चुका था, को मारा। इसके अतिरिक्त सतलुज नदी की एक शाखा जो राजपुताने में ‘मीठा महरांण’ कहलाती थी को तीन चल्लू में पी डाला और वह मीठे पानी का समुद्र कहा जाने वाला ‘हाकड़ा’ मरूभूमि में परिवर्तित हो गया ।
-आवड़माता के विभिन्न रूपों में आशापुरा,स्वांगीयाजी, बीजासण, तेमड़ाराय, गिरवरराय,चाळाराय, डूगरेच्यां, अर्बुदा,नागणेच्याआदि उनके 52 अवतार है।आवडजी और ईनके 52 अवतार चारण,राजपूत, और भी बहोत सी जातीओ की कुलदेवी है ।
’आवड’ जी ने हाकड़ा नामक समुद्र का शोषण कियाथा । ’आवड’ जी ने हूण सेना नायक तेमड़ा नामक राक्षस को मारा था जिसके कारण ’तेमडेराय’ कहलाई , महाराजा तणु को तनोट स्थान पर दर्शन देकर ’तनोटराय’ कहलाई। घंटियाल नामक राक्षस को मारकर ’घंटियालराय’ कहलाई ,भादरिया नामक भाटी के आग्रह पर दर्शन देने पधारी इसलिए ’भादरियाराय’ कहलाई ,काले डूंगर पर बिराजने से ’कालेडूंगरराय’ कहलाई ,पन्ना मुसलमान की रक्षा करके ’पन्नोधरिराय’ कहलाई ,एक असुर रूपेण भेंसे को मारकर माँ ने उसे देग नामक बर्तन में पकाया था, इसलिए ’देगराय’ कहलाई। आवड जी सहित सातों बहनों के नदी में नहाते वक्त यवन राजकुमार नुरन द्वारा कपड़ो को छूने के कारण माँ आवड नागण का रूप धारण कर घर लौटी थी इसलिए ’नागणेची/नागणेच्या’ कहलाई ! राजस्थान में सुगन चिड़ी को ’आवड’ माँ का रूप माना जाता है !
’आवड’ जी इस पृथ्वी पर सशरीर 191 साल बिराजे थे ।
*जीगर बन्ना थेरासणा*
*श्री आवड माँ*
आठवी शताब्दी मे काठीयावाड के वल्लभी पुर नगर मे सउआ शाखा के चारण मामडजी रहते थे। लौद्रवा के राजा जसभांण परमार के समकालिक बताते हुए कहा जाता है कि जसभांण मामड़जी चारण का नित्य उठ कर मुंह देखा करता था । उसे किसी ने उलाहना दिया कि जसभांण जिसका तू नित्य उठ कर मुंह देखता है वह तो निःसंतान है ! इस उलाहने से दुःखी होकर मामड़ ने हिंगलाज देवी की पैदल यात्रा सात बार का संकल्प लिया । हिंगलाज देवी ने मांमड़जी के घर शक्ति अवतार लेने का वचन दिया और ये शर्तें रखीं- कि ‘इसको किसी के आगे उजागर न करना, अपनी पत्नी को पवित्रता से रहे, खखर वृक्ष का पालना बनाये -उसे लाल रंग से रंग कर घर के ऊपर लाल ध्वजा बांध दे, प्रति दिन उठ कर सात बार नाम का स्मरण करे ।’
और चारण मामड़जी और मोहवती के घर वि.सं. 808 चैत्र शुक्ल.....मंगलवार को देवी भगवती/हिंगलाज ने आवड़ के रूप में अवतार लिया। ये सात बहिने जो सब देवियां मानी जाती हैं।आवड बाई , जोगड बाई , तोगड बाई , होल बाई , बीज बाई , सासाई, लगु बाई ( ’खोड़ियार’ ) इन्होंने आजीवन कौमार्यव्रत धारण किया था । एक मेहरखा नामक भाई था। आवड जी सबसे बडे थे। तत्कालीन सिंध के राजा ऊमर ने इनकी सुंदरता पर मोहित होकर इनसे विवाह करने का हठ किया किन्तु इन्होंने अपने चमत्कार व कौशल से उसे मार कर वहां भाटी वंश के क्षत्रियों का राज्य जैसलमेर(माड प्रदेश) स्थापित कर दिया । अतः *ये भाटी वंश की कुलदेवी है ।*इनके विषय में अनेक किवदंतियां व चमत्कार प्रसिद्ध है ।
परमार-क्षत्रीय ऊमर सूमरा, जो कि सूमरों का अंतिम शासक था, इस्लाम धर्म में दीक्षित हो चुका था, को मारा। इसके अतिरिक्त सतलुज नदी की एक शाखा जो राजपुताने में ‘मीठा महरांण’ कहलाती थी को तीन चल्लू में पी डाला और वह मीठे पानी का समुद्र कहा जाने वाला ‘हाकड़ा’ मरूभूमि में परिवर्तित हो गया ।
-आवड़माता के विभिन्न रूपों में आशापुरा,स्वांगीयाजी, बीजासण, तेमड़ाराय, गिरवरराय,चाळाराय, डूगरेच्यां, अर्बुदा,नागणेच्याआदि उनके 52 अवतार है।आवडजी और ईनके 52 अवतार चारण,राजपूत, और भी बहोत सी जातीओ की कुलदेवी है ।
’आवड’ जी ने हाकड़ा नामक समुद्र का शोषण कियाथा । ’आवड’ जी ने हूण सेना नायक तेमड़ा नामक राक्षस को मारा था जिसके कारण ’तेमडेराय’ कहलाई , महाराजा तणु को तनोट स्थान पर दर्शन देकर ’तनोटराय’ कहलाई। घंटियाल नामक राक्षस को मारकर ’घंटियालराय’ कहलाई ,भादरिया नामक भाटी के आग्रह पर दर्शन देने पधारी इसलिए ’भादरियाराय’ कहलाई ,काले डूंगर पर बिराजने से ’कालेडूंगरराय’ कहलाई ,पन्ना मुसलमान की रक्षा करके ’पन्नोधरिराय’ कहलाई ,एक असुर रूपेण भेंसे को मारकर माँ ने उसे देग नामक बर्तन में पकाया था, इसलिए ’देगराय’ कहलाई। आवड जी सहित सातों बहनों के नदी में नहाते वक्त यवन राजकुमार नुरन द्वारा कपड़ो को छूने के कारण माँ आवड नागण का रूप धारण कर घर लौटी थी इसलिए ’नागणेची/नागणेच्या’ कहलाई ! राजस्थान में सुगन चिड़ी को ’आवड’ माँ का रूप माना जाता है !
’आवड’ जी इस पृथ्वी पर सशरीर 191 साल बिराजे थे ।
*जीगर बन्ना थेरासणा*
जय आवड़ माता की जय जयकार हो
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