*चारण राजपूत परंपरा*
चारणो के बारे में जोधपुर(मारवाड) महाराजा मानसिंह जी चारण राजपूत सबंध के वीषय मे लीखते है-
।।दोहा।।
*चारण,भाई छत्रियां।जां घर खाग तियाग।।*
*खागों तीखी बायरा। ज्यां सू लाग न भाग।।*
।।छप्पय।।
*जीण पृथ्वी मे गंध। पवन मे जे सुपरसण।*
*सीतळ रस,जळ साथ।अगन मांही ज्यूं उसण।।*
*शून्य मांही ज्यां सबद। सबद मे अर्थ हलेस्वर।*
*पिंड मांही ज्या प्राण।प्रांण में ज्यां परमेश्वर।।*
*रग-रग ही रगत छायौ रहै। देह विषय ज्यां डारणां।*
*क्षत्रियां साथ नातौ छतौ। चोळी दांमण चारणां।।*
अर्थ :- "जीस प्रकार पृथ्वी के साथ सुगंध,पवन के साथ स्पर्श का ग्यान,पानी के साथ रस की शीतलता जैसे अग्नी के साथ उष्णता,शून्य मे विलीन शब्द ध्वनी,जैसे शब्द के साथ उसमे अर्थ बोध पिण्ड में जैसे प्राण है और प्राण के साथ परमेश्वर । जीस प्रकार सम्पूर्ण शरीर के साथ रक्त का सम्बन्ध है।उसी प्रकार राजपूतो के साथ चारणो का चोली दामन का तदात्म्य सम्बन्ध है।"
*जयपालसिंह (जीगर बन्ना) थेरासणा*
चारणो के बारे में जोधपुर(मारवाड) महाराजा मानसिंह जी चारण राजपूत सबंध के वीषय मे लीखते है-
।।दोहा।।
*चारण,भाई छत्रियां।जां घर खाग तियाग।।*
*खागों तीखी बायरा। ज्यां सू लाग न भाग।।*
।।छप्पय।।
*जीण पृथ्वी मे गंध। पवन मे जे सुपरसण।*
*सीतळ रस,जळ साथ।अगन मांही ज्यूं उसण।।*
*शून्य मांही ज्यां सबद। सबद मे अर्थ हलेस्वर।*
*पिंड मांही ज्या प्राण।प्रांण में ज्यां परमेश्वर।।*
*रग-रग ही रगत छायौ रहै। देह विषय ज्यां डारणां।*
*क्षत्रियां साथ नातौ छतौ। चोळी दांमण चारणां।।*
अर्थ :- "जीस प्रकार पृथ्वी के साथ सुगंध,पवन के साथ स्पर्श का ग्यान,पानी के साथ रस की शीतलता जैसे अग्नी के साथ उष्णता,शून्य मे विलीन शब्द ध्वनी,जैसे शब्द के साथ उसमे अर्थ बोध पिण्ड में जैसे प्राण है और प्राण के साथ परमेश्वर । जीस प्रकार सम्पूर्ण शरीर के साथ रक्त का सम्बन्ध है।उसी प्रकार राजपूतो के साथ चारणो का चोली दामन का तदात्म्य सम्बन्ध है।"
*जयपालसिंह (जीगर बन्ना) थेरासणा*
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