*चारण/गढपति/गढवी*
चारण गढपति था , गढ दुर्ग का स्वामी था, परंतु राज कुल का आवास भी वही उसके साथ था। राज पुत्री के विवाह अवसर पर धर्म अौर मर्यादा का व्यवधान पैदा हो गया।आंगातुक परीणय कर्ता राज पुत्र के लिए तोरण वन्दना पर गढवी का दुर्ग उसकी बहेन का आवास कहा जाता था। गढवी का आवास राजपुत्रो मे बहेन का आवास कहलाता है। तब आने वाला दुल्हा उस चारण के दुर्ग पर तोरण वन्दना कैसे करे? ईस व्यावधान के निराकरण के लीए सर्व सम्मती से निर्णय लीया गया कि तोरण वन्दना मे हाथी या घोडा गढपति स्वयं का होना होगा,जिससे मानो गढपति की आग्या से वह राजपुत्र के वहा विवाह की स्वीकृत है। तथा गढवी के आवास का दोष भी नही लगता। उस काल मे राज सत्ता पूर्ण रुप से धर्म सत्ता व धर्म आधारित थी जीसका संवाहक एक मात्र गढपति(चारण)था।
शत्रु सेना की वीजय पूर्ण संभावना पर गढपति का ही कर्त्तव्य रहता था की वह रनिवास/रानीवास की सुरक्षा करे और आवश्यक होने पर वह उन्हे सुरक्षीत स्थान पर ले जाकर संरक्षण प्रदान करे।शत्रु सेना के दुर्ग पर आक्रमण करने पर दुर्ग के द्वार बंद कर दीये जाते थे ओर कीले की चाबीया गढपति को सोंप दी जाती थी।
बहुत समय पश्चात राजपुत्रो केे मनोदशा मे परीवर्तन आया उन्होने गढपति के अधीकारो को सीमीत करने का सोचा। गढपति(चारण) के पास देवी का आशीर्वाद तो था ही जबकी उनके पास अब रण कौशल व पर्याय सैनीक शक्ति थी।
राजपुत्रो ने कहा की हमे सैनीको पर बहुत अधीक व्यय करना पडता है ईसलीए अब हम समस्त आय का दसवा भाग आपको अदा करने मे समर्थ है (जीससे चारण *दसोंदी* केहलाए)अब आप 10-12 गांव लेकर अपना पृथक स्वतंत्र क्षेत्र स्थापित करले ।उस क्षेत्र व आपकी उस प्रजा पर हमारा किसी भी प्रकार का हक-हकुक नही होगा(जैसे वर्तमान मे कीसी देश का हाई कमीशन होता है, कुछ वैसा ही समझे।)
आपका वह क्षेत्र आपका स्वयं का अपना शासन होगा,तथा उस पर जारी कीये गये कानूनो का हम प्रसन्न चीत्त से बीना कीसी तर्क के पालन करेंगे। *चारण 30-40 बीघा से लेकर 30-40 गाँव के स्वामी तक होते थे।*(ईसी लीए मध्यकालीन युग मे चारणो के नाम के आगे ठाकुर और नाम के पीछे सिंह शब्द का प्रयोग होता था)
चारणो ने वक्त की नजाकत को समझकर इस प्रस्ताव स्वीकार लीया। राजपुत्रो ने चारणो को गढ से पृथक कर कुछ गांवो का स्वामीत्व सोंप दीया।गढवी के समस्त अधीकार यथावत रहे गढपतियो को राज्य का वैभव व गढपति की योग्यता अनुसार कुछ गांव जागीरी मे दीये गये जो गढवी का अपना शासन क्षेत्र कहलाता था। उन गांव का क्षेत्र स्वशासन जो शासन/सांसण के नाम से वर्तमान तक जाने जाते है।
चारण राजपूत का प्रगाढ सम्बन्ध तथागत कायम रहा चारणो ने तोरण वंदना की मर्यादा को यथारुप रखते हुए राजपुत्रो और अपने वीवाह रश्म मे तोरण वंदना मे हाथी या घोडा चारण अपना स्वयं का कार्य मे लेते थे।
*जीगर बन्ना थेरासणा*
चारण गढपति था , गढ दुर्ग का स्वामी था, परंतु राज कुल का आवास भी वही उसके साथ था। राज पुत्री के विवाह अवसर पर धर्म अौर मर्यादा का व्यवधान पैदा हो गया।आंगातुक परीणय कर्ता राज पुत्र के लिए तोरण वन्दना पर गढवी का दुर्ग उसकी बहेन का आवास कहा जाता था। गढवी का आवास राजपुत्रो मे बहेन का आवास कहलाता है। तब आने वाला दुल्हा उस चारण के दुर्ग पर तोरण वन्दना कैसे करे? ईस व्यावधान के निराकरण के लीए सर्व सम्मती से निर्णय लीया गया कि तोरण वन्दना मे हाथी या घोडा गढपति स्वयं का होना होगा,जिससे मानो गढपति की आग्या से वह राजपुत्र के वहा विवाह की स्वीकृत है। तथा गढवी के आवास का दोष भी नही लगता। उस काल मे राज सत्ता पूर्ण रुप से धर्म सत्ता व धर्म आधारित थी जीसका संवाहक एक मात्र गढपति(चारण)था।
शत्रु सेना की वीजय पूर्ण संभावना पर गढपति का ही कर्त्तव्य रहता था की वह रनिवास/रानीवास की सुरक्षा करे और आवश्यक होने पर वह उन्हे सुरक्षीत स्थान पर ले जाकर संरक्षण प्रदान करे।शत्रु सेना के दुर्ग पर आक्रमण करने पर दुर्ग के द्वार बंद कर दीये जाते थे ओर कीले की चाबीया गढपति को सोंप दी जाती थी।
बहुत समय पश्चात राजपुत्रो केे मनोदशा मे परीवर्तन आया उन्होने गढपति के अधीकारो को सीमीत करने का सोचा। गढपति(चारण) के पास देवी का आशीर्वाद तो था ही जबकी उनके पास अब रण कौशल व पर्याय सैनीक शक्ति थी।
राजपुत्रो ने कहा की हमे सैनीको पर बहुत अधीक व्यय करना पडता है ईसलीए अब हम समस्त आय का दसवा भाग आपको अदा करने मे समर्थ है (जीससे चारण *दसोंदी* केहलाए)अब आप 10-12 गांव लेकर अपना पृथक स्वतंत्र क्षेत्र स्थापित करले ।उस क्षेत्र व आपकी उस प्रजा पर हमारा किसी भी प्रकार का हक-हकुक नही होगा(जैसे वर्तमान मे कीसी देश का हाई कमीशन होता है, कुछ वैसा ही समझे।)
आपका वह क्षेत्र आपका स्वयं का अपना शासन होगा,तथा उस पर जारी कीये गये कानूनो का हम प्रसन्न चीत्त से बीना कीसी तर्क के पालन करेंगे। *चारण 30-40 बीघा से लेकर 30-40 गाँव के स्वामी तक होते थे।*(ईसी लीए मध्यकालीन युग मे चारणो के नाम के आगे ठाकुर और नाम के पीछे सिंह शब्द का प्रयोग होता था)
चारणो ने वक्त की नजाकत को समझकर इस प्रस्ताव स्वीकार लीया। राजपुत्रो ने चारणो को गढ से पृथक कर कुछ गांवो का स्वामीत्व सोंप दीया।गढवी के समस्त अधीकार यथावत रहे गढपतियो को राज्य का वैभव व गढपति की योग्यता अनुसार कुछ गांव जागीरी मे दीये गये जो गढवी का अपना शासन क्षेत्र कहलाता था। उन गांव का क्षेत्र स्वशासन जो शासन/सांसण के नाम से वर्तमान तक जाने जाते है।
चारण राजपूत का प्रगाढ सम्बन्ध तथागत कायम रहा चारणो ने तोरण वंदना की मर्यादा को यथारुप रखते हुए राजपुत्रो और अपने वीवाह रश्म मे तोरण वंदना मे हाथी या घोडा चारण अपना स्वयं का कार्य मे लेते थे।
*जीगर बन्ना थेरासणा*
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