*चारण जाती के लीए राजा और विध्धवानो के मंतव्य*
चारणो ज राजाओ ने सत्य हकीकत कही शके छे तेओ बधा करता श्रेष्ठ छे ।
-सर प्रभाशंकर पंडीत
चारण जाती की महता सत्यकथन,विरत्व,नीलोभीता,ईन्द्रीयनिग्रह पर ही प्रतिष्ठीत है, चारण जाति शस्त्र,शास्त्र आदी सब बातो मे राजपूतो की अगुआ रही है,और ईस जाती के सद उपदेश से राजपूतो का उपकार होता ही आया है।
-महाराजा बलभद्रसिंहजी
चारण जाति हमेशा राजपूतो कि पथप्रदशक रही है।
-श्रीमान महाराजा रामसिंहजी सितामऊ
यह चारणो के परम पराक्रम,सत्यता,बुध्धीमता का ही प्रताप था की नीडर जाति शताब्दीओ तक राज्य कायम कर शकी ।
-ठा.सा. केशरीसिंहजी सौदा
चारण जैसा भी हो हमारे लीए पूजनीय है,चारण दरबारी है ईस लीए श्रेष्ठ नही है,वह हम पर अंकुश रुप है ईसी लीए हम उन्हे श्रेष्ठ मानते है ।
- केप्टन जोरावरसिंहजी पन्ना स्टेट
चारणो भारत वर्ष मा देवदरबार ,राजदरबार,लोकदरबार सर्वत्र सन्नमानीय छे अने सर्वत्र अेमना साहीत्य नी भान थाय ते जोवानी मारी महेच्छा छे।
-गोकलदास रायचुरा,संत्री शारदा
चारण भारतीय संस्कृती के उदघोषक ही नही,उसके मूलतत्व के प्राणपण से रक्षक भी रहे है । शस्त्र ओर शास्त्र पर उनका असाधारण अधीकार रहा है।
-डो.भगवतीप्रसादसिंह गोरखपुर युनीवर्सीटी,गोरखपुर
राजपूताना के राजा वह जाती को बहोत मान सन्मान देते है, विश्वास पात्र मानते है और इनका उच्च दरज्जा है। राजा महाराजाओ की और से उन्हे कुरब,कायदे और ताजम दी जाती है । दरबार मे उनकी ईज्जत वाली सन्मानीय बेठक है । कसुंबा लेते समय सीरदार पहले चारण सीरदार को मनवार करते है । काव्य रचना ईतना ही नही वीपत्ती के समय तन,मन,धन और बाहुबल से उनकी भरपूर सहायता की है ,ये हकीकत का राजपूताना का ईतीहास साक्षी है। उनकी बहोत जागीरे राजपूताना मे है। चारण स्पष्टवक्ता और सत्यवादी है वह राजा महाराजाओ को सत्यता सुना ने मे बीलकुल भी संकोच नही करते थे,राजा महाराजा उनके डर से ये मानते है,की हम चारणो की कवीता मे पीढी दर पीढी दयाहीन रहेगे ,हमारी प्रतीष्ठा कम होगी तो वह गलत या अनीती करने से अटकते थे ।
-केप्टन अे.डी. बेनरमेन आई.सी.एस.(हीन्दुस्तान ई.स.१९०१ वस्तीपत्रक अनुसार)
चारण - चाह+रण=रण की चाह रखने वाला अर्थात संग्राम का चहेता । स्वाभीमान आत्मरक्षा व मातृभुमी की रक्षा के लीये युद्ध करने वाला और उसकी अनिवार्यता बताने वाला
-मयाराम री ख्यात -ठाकुर शंकरसिंह जी आशिया
चारण हमेशा सत्यवक्ता,नितीपरायक,शूरविर,और कर्तव्यनिष्ठ थे। वो सच्चे समाज सेवक थे,चारण राजा-प्रजा का पिता-पुत्र समान संबध ऱखने मे सबल साधनरुप थे भूतकाल मे राजाओ को आकरे और सत्य शब्द सुनाने मे जब कोई भी वर्ग समर्थ न था तब चारणो ने उस कार्य को बीना संकोच ओर नीडर होकर कीया है, ईतीहास गवाह है।
-सोरठविर छेलशंकर दवे
चारण भूतकाल मे राजपूतो को (राजाओ को) नैतीक बल से सहायता प्रदान करने का स्त्रोत बने रहे है यह सहायता किसी भी भौतीक सहायता से बहुत महत्व पूर्ण है। युद्ध के समय मे एंव अन्य राष्टीय आपति के अवसरो पर चारणो ने परामर्श, बाहुबल,पथप्रदर्शक,एवं प्रोत्साहन से राजपूत अपने शौर्य एंव मान प्रतीष्ठा के परंपरागत पवित्र आदेशो को नीभाय रखने मे समर्थ हुए थे ,जीसके अैतीहासीक संस्मरण उन्हे सारे संसार मे विख्यात कर रहे है ।
-ठा.सा. चैनसिंहजी चांपावत जोधपूर
चारण जाती राजपूतो से भी अधीक विर थी यदी ऐसा न होता तो उनकी वाणी से कायर राजपूतो मे विरता का संचार होना असंभव था ।
-महाराजा बलभद्रसिंह जी
अकल,विधा,चित उजलौ।अधको घर आचार।
वधता रजपूत विचै। चारण वातां चार।।
-जोधपुर महाराजा श्री मानसिंहजी
पहली अक्ल दुसरा विधा
तीसरा मन से पवित्र, और चौथा ईनके घर का आचरण ईन चार बाबतो मे चारण राजपूतो से अभी तक बहुत आगे है।
जीगर बन्ना थेरासणा
चारणो ज राजाओ ने सत्य हकीकत कही शके छे तेओ बधा करता श्रेष्ठ छे ।
-सर प्रभाशंकर पंडीत
चारण जाती की महता सत्यकथन,विरत्व,नीलोभीता,ईन्द्रीयनिग्रह पर ही प्रतिष्ठीत है, चारण जाति शस्त्र,शास्त्र आदी सब बातो मे राजपूतो की अगुआ रही है,और ईस जाती के सद उपदेश से राजपूतो का उपकार होता ही आया है।
-महाराजा बलभद्रसिंहजी
चारण जाति हमेशा राजपूतो कि पथप्रदशक रही है।
-श्रीमान महाराजा रामसिंहजी सितामऊ
यह चारणो के परम पराक्रम,सत्यता,बुध्धीमता का ही प्रताप था की नीडर जाति शताब्दीओ तक राज्य कायम कर शकी ।
-ठा.सा. केशरीसिंहजी सौदा
चारण जैसा भी हो हमारे लीए पूजनीय है,चारण दरबारी है ईस लीए श्रेष्ठ नही है,वह हम पर अंकुश रुप है ईसी लीए हम उन्हे श्रेष्ठ मानते है ।
- केप्टन जोरावरसिंहजी पन्ना स्टेट
चारणो भारत वर्ष मा देवदरबार ,राजदरबार,लोकदरबार सर्वत्र सन्नमानीय छे अने सर्वत्र अेमना साहीत्य नी भान थाय ते जोवानी मारी महेच्छा छे।
-गोकलदास रायचुरा,संत्री शारदा
चारण भारतीय संस्कृती के उदघोषक ही नही,उसके मूलतत्व के प्राणपण से रक्षक भी रहे है । शस्त्र ओर शास्त्र पर उनका असाधारण अधीकार रहा है।
-डो.भगवतीप्रसादसिंह गोरखपुर युनीवर्सीटी,गोरखपुर
राजपूताना के राजा वह जाती को बहोत मान सन्मान देते है, विश्वास पात्र मानते है और इनका उच्च दरज्जा है। राजा महाराजाओ की और से उन्हे कुरब,कायदे और ताजम दी जाती है । दरबार मे उनकी ईज्जत वाली सन्मानीय बेठक है । कसुंबा लेते समय सीरदार पहले चारण सीरदार को मनवार करते है । काव्य रचना ईतना ही नही वीपत्ती के समय तन,मन,धन और बाहुबल से उनकी भरपूर सहायता की है ,ये हकीकत का राजपूताना का ईतीहास साक्षी है। उनकी बहोत जागीरे राजपूताना मे है। चारण स्पष्टवक्ता और सत्यवादी है वह राजा महाराजाओ को सत्यता सुना ने मे बीलकुल भी संकोच नही करते थे,राजा महाराजा उनके डर से ये मानते है,की हम चारणो की कवीता मे पीढी दर पीढी दयाहीन रहेगे ,हमारी प्रतीष्ठा कम होगी तो वह गलत या अनीती करने से अटकते थे ।
-केप्टन अे.डी. बेनरमेन आई.सी.एस.(हीन्दुस्तान ई.स.१९०१ वस्तीपत्रक अनुसार)
चारण - चाह+रण=रण की चाह रखने वाला अर्थात संग्राम का चहेता । स्वाभीमान आत्मरक्षा व मातृभुमी की रक्षा के लीये युद्ध करने वाला और उसकी अनिवार्यता बताने वाला
-मयाराम री ख्यात -ठाकुर शंकरसिंह जी आशिया
चारण हमेशा सत्यवक्ता,नितीपरायक,शूरविर,और कर्तव्यनिष्ठ थे। वो सच्चे समाज सेवक थे,चारण राजा-प्रजा का पिता-पुत्र समान संबध ऱखने मे सबल साधनरुप थे भूतकाल मे राजाओ को आकरे और सत्य शब्द सुनाने मे जब कोई भी वर्ग समर्थ न था तब चारणो ने उस कार्य को बीना संकोच ओर नीडर होकर कीया है, ईतीहास गवाह है।
-सोरठविर छेलशंकर दवे
चारण भूतकाल मे राजपूतो को (राजाओ को) नैतीक बल से सहायता प्रदान करने का स्त्रोत बने रहे है यह सहायता किसी भी भौतीक सहायता से बहुत महत्व पूर्ण है। युद्ध के समय मे एंव अन्य राष्टीय आपति के अवसरो पर चारणो ने परामर्श, बाहुबल,पथप्रदर्शक,एवं प्रोत्साहन से राजपूत अपने शौर्य एंव मान प्रतीष्ठा के परंपरागत पवित्र आदेशो को नीभाय रखने मे समर्थ हुए थे ,जीसके अैतीहासीक संस्मरण उन्हे सारे संसार मे विख्यात कर रहे है ।
-ठा.सा. चैनसिंहजी चांपावत जोधपूर
चारण जाती राजपूतो से भी अधीक विर थी यदी ऐसा न होता तो उनकी वाणी से कायर राजपूतो मे विरता का संचार होना असंभव था ।
-महाराजा बलभद्रसिंह जी
अकल,विधा,चित उजलौ।अधको घर आचार।
वधता रजपूत विचै। चारण वातां चार।।
-जोधपुर महाराजा श्री मानसिंहजी
पहली अक्ल दुसरा विधा
तीसरा मन से पवित्र, और चौथा ईनके घर का आचरण ईन चार बाबतो मे चारण राजपूतो से अभी तक बहुत आगे है।
जीगर बन्ना थेरासणा
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