क्षत्रिय चारण

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सोमवार, 13 नवंबर 2017

युद्ध भुमि के विर "चारण"

क्षत्रित्व का पाठ पढाने वाला चारण कीतना विर होगा?यह बात सहज ही सबके मस्तीस्क मे घुमती है।तब ईस प्रश्न का उतर जानने के लीये चारण की वीरता के अद्रीतीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है ताकी चारण से अनभीग्य लोग भी ईसे जानकर अपने संजोये भ्रम से मुक्त हो सके।

सन 1311 में सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने जालौर के राजा कान्हड़दे सोनगरा पर आक्रमण किया तब उसके सेनापति सहजपाल गाडण ने असाधारण शौर्यप्रदर्शन कर वीरगति पाई थी ईस युद्ध मे आसाजी बारहठ के साथ ग्यारह चारण भी थे ।

महाराणा हम्मीर के साथ चारण बारुजी सौदा 500 घोड़े लेकर अल्लाउद्दीन खिलजी से लड़े थे और खिलजी के मरने के पश्चात हम्मीर को चित्तौड़ की गद्दी पर बैठाने में सफलता पाई थी।
ईन्ही बारुजी के पुत्र पालमसिंह सौदा राणा रायमल के साथ मुसलमानो की सेना मे युद्ध लडते हुए "पाडलपौल"पर चित्तोड के कीले मे शोर्यता दीखाये विरगति को प्राप्त हुए थे।

जगदीश मंदीर की रक्षा हेतु और बादशाह ने उदयपुर पर जब धाबा बोला तब नरुजी सौदा द्वार पर लडते लडते  विरगति को प्राप्त हुए उनका सिर कटने के बाद भी धड लडा और ३०० कदम चल कर लडने के बाद वो गीरे।

सेणोंद के स्वामी जमणाजी सौदा ने पीली खांट मे  मांडु के बादशाह से शौर्यतापुर्वक लडते हुए १५८४ मे विरगती को प्राप्त हुए ।ईनके पुत्र का नाम राजविरसिंह था ईन्होने भी युद्ध की कई होलीया खेली। एक कडवा सत्य है की राणा सांगा के साथ अगर विर सौदा चारण न होते तो खानवा के युद्ध के पराजय के बाद सांगा प्राण त्याग देते।

प्रसिध्द हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप के साथ सेना में हरावल मे रामाजी सांदू व सौदा बारहठ जैसाजी व केशवजी भी लड़े थे    अदभूद वीरता दिखाकर वीरों के मार्ग गमन किया था।और भी बहोत से चारण हल्दीघाटी मे लडे थे जीसमे सुरायजी टापरीया,गोरधन बोग्सा आदी बहोत से विर चारण थे।

सन 1573 में अकबर द्वारा गुजरात आक्रमण के समय वीरवर हापाजी चारण मुगल सेना में तैनात थे।

मेवाड महाराणा जगतसिंह की सेना ने सिरोही पर हमला कर दीया ये युद्ध बनास नदी के तट पर हुआ मेवाड की और से चारण सिरदार महाराणा जगतसिंह के समर्थ सलाहकार ठाकुर गोपालदास सिंहढायच और चारण खेमराज दधवाडीया सेना मे तैनात थे ।

सिरोही के राव सुरताण और अकबर के मध्य सन 1583 में लड़े गए युध्द में दुरसा आढा मुगल सेनाकी और से तथा दुदाजी आसिया ने सिरोही की और से लड़ाई में भाग लिया था।

जालौर के किले में वि.सं. 1760 जोधपुर के मानसिंह को महाराजा भीमसिंहजी की सेनाने घेरलिया था, तब महाराजा मानसिंह के साथ मारवाड़के तत्कालीन समयके प्रसिध्द सतरह (17) चारणों ने वीरतापूर्वक लड़ करके अपने स्वामी की रक्षा की थी, उनमें भी जुगतो जी वणसूर नें तो सावधानी पूर्वक दो बार किले के घेरे से बाहर निकल कर एक बार अपने घर के गहणें बेच कर तथा दूसरी बार अपनें छोटे पुत्र को खारा के मंहन्त के गिरवी रख कर धन की व्यवस्था भी महाराजा मानसिंह को सुलभ करवाई थी। मानसिंहजी जुगतो जी वणसूर को काकोसा कह कर सम्बोधित किया करते थे।

हाजर जुगतो हुओ, पीथलो हरिंद पुणीजै।
दोनां महा दुबाह, सिरे फिर ऊंम सुणीजै।।
मैघ अनै मेहराम, ईंनद ने कुशलो आखो।
भैर बनो भोपाल, सिरै चौबीसो साखो।।
पनौ नै नगो नवलो प्रकट, केहर सायब बडम कव।
महाराज अग्र घैरै मही, सतरह जद रहिया सकव।।
ऊपरोक्त 17 चारणो ने मान सिह जी के साथ जालोर के घैरे मे साथ दिया। सभी के नाम निम्न प्रकार हैं।
1-जुगतीदानजी वणसूर, 2-पीथसिंहजी सांदू, 3-हरिसिंहजी सांदू, 4-भैरूंदानजी बारठ, 5-बनजी नांदू, 6-ऊमजी बारठ, 7-दानोजी बारठ, 8-ईंदोजी रतनू, 9-कुशल़सिंहजी रतनू, 10-मेघजी रतनू, 11-मयारामजी रतनू, 12-पनजी आसिया, 13-नगजी कविया, 14-भोपसिंहजी गाडण, 15-नवलजी लाल़स, 16-केसरोजी खिड़िया, 17-सायबोजी सुरताणिया

मेवाड़ के मैंगटिया गांव के गाडण सुलतान जी के पुत्र भगवानदास और भैरूंदास बड़े वीर पुरुष व महाराणा की सेना में सिपहसालार के पद पर थे, तथा महाराणा की और से बादशाह को दी जाने वाली सैनिक टुकड़ी में दिल्ली में तैनात थे, दिल्ली की कैद से मराठा छत्रपतिजी महाराज शिवाजी को निकालने में मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह का हाथ होने पर उसे षडयंत्र पूर्वक मारने की योजना को इन दोनों गाडण भाईयों ने सफलता पूर्वक विफल कर दिया था तब मिर्जा राजा रामसिंह ने इन दोनो को हरमाड़ा गांव की जागीर प्रदान कर आमेर के पास ही बसाया था।

हररुपजी आशीया ने महाराणा प्रताप की पाग को न जुक ने देकर अकबर के खीलाफ युद्ध छेडा थे और हररुप जी आशीया ने महाराणा प्रताप की और से युद्ध मे अद्वीतीय विरता दीखाई थी  १२ अंगरक्षको को मारने के बाद अकबर के सुबे अजीज को चारण ने अपने अश्व से उसके हाथी के सुंठ पर चढ कर भाले से वार कर ऐक ही झटके मे सुबे को मार गीराया था और शहीद हुए थे।

सिध्द अलूनाथजी कविया के बड़े पुत्र नरुजी कविया ने आमेर के राजा मानसिंह के साथ में उड़िसा में कटक के युध्द में कतलू खाँ नामक पठान इक्का को द्वंद युध्द में मार कर वीरगति पाई थी।
दुसरा युद्ध कतुलखां लोदानी के वीरुद्ध जोधपुर की सेना मे ईन्होने विरता दीखाई थी, और कुंवर जगतसिंह के प्राण बचाये थे।ईस युद्ध मे नरुजी के पुत्र जैसाजी कविया भी सम्मलीत थे।
ईन्ही के वंशज विजयसिंह ने अमिरखां पठान के वीरुद्ध  दांता ठाकुर गुमानसिंह (गुमानसिंह युद्ध छोडकर भाग गया तब पुरा युद्ध का मोरचा विजयसिंह ने संभाला था) के युद्ध मे बहोत से मुस्लीमो के सर काटे तभी वीजयसिंह का बेटा ईस युद्ध मे कटकर गीरा बदले मे उन्होने नवाब का सर धड से अलग कीया था ।
इस विषय का एक प्रसिध्द वीर गीत भी बनाया हुआ है। कविया वंश की शाखा का वीरता के गीत का एक भाग देखिये।

पाँच कम साठ नरपाल रा पोतरा आठ पीढीयां मांही काम आया।।

अर्थात पचपन वीर पुरुष आठ पीढीयों में लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुऐ।

इतिहास प्रसिध्द कविया करणीदान जी अहमदाबाद की लड़ाई में जोधपुर महाराजा अभयसिंह के साथ हरावल में थे, तथा पहले दिन की लड़ाई में जोधपुर की सेना को दबती देखकर कविया करनीदान जी ने अभयसिंह जी को कहकर सेना के मोर्चे दूसरी जगह लगवाये थे और जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे और जीत कर घर आने पर सूरज-प्रकास और विरद-सिणगार की रचना की थी।

गांव केड़ की ढाणी के किशनाजी बारहठजी नें मांढण के युध्द में शेखावतों के साथ मिलकर मुगलों व मित्रसेन अहीर की सेना को हराया था व स्वंय वीरगति को प्राप्त होने पर उनके पुत्र ईश्वरदानजी को बिसाऊ ठाकुर श्यामसिंह जी ने श्यामपुरा की जागीर प्रदान की थी।

दलपत बारहठ बीकनेर की सेना मे मराठो से १७५५ मे अपने पुत्र विजा के साथ लडते लडते विरगति को प्राप्त हुए थे।

बडलु के युद्ध मे आसोपा ठाकुर शिवनाथसिंहजी के जोधपुर आक्रमण मे भदोरा ठाकुर गिरवरसिंह सांदु कंधे से कंधा मीलाए थे।ईस भीसण युद्ध मे बहोत से सैनीक रणभुमी छोडकर भाग गए परंतु ठाकुर गिरवरसिंह ने अडीखम होकर युद्ध भुमी को रक्तरंजीत कीया था।

जोधपुर के जसवन्तसिंह प्रथम शाहजहा के विद्रोह शाहजादो को परास्त करने १७१५ मे उज्जेन गये ईस सेना मे हरावल मे जसराज बारहठ इतने पराक्रम के साथ लडे के एक टक होकर जसवन्तसिंह उनको देखने रणभुमी मे ठहर गये।

सौराष्ट मे सात गाँवो के स्वामी वीहलदेव चारण का मुख्य ठीकाना आंबरडी पर अहमदाबाद के बादशाह ने चढाई की ,तब उनके साथ ११ चारण मीत्रो ने मुस्लीम सेना के साथ तलवार को ऱक्त से नहलाकर युद्ध कीया बहोत से मुस्लीमो को काटकर १२ चारण विरगती को प्राप्त हुए थे।

राजकोट की दरबार कचेरी मे एक पठान ने तलवार सहीत दरबार मे कदम रखा और राजा को मारने हेतु वो जेसे ही आगे बढा उससे पहले जैसाजी चारण जो दरबारी थे उन्होने पलक जबकते ही पठान को कटारी से गले पर वार कर वही ढेर बना दीया।

१६३९ मे जामनगर मे अकबर नी सेना के सुबेदार  मीरजा अजीज कोका ने युद्ध करने हेतु सेना भेजी तब जामनगर के विर चारण परबतजी वरसडा जामनगर के प्रत्येक गांव जाकर नौजवानो की ऐक टुकडी तैयार की तो दुसरी और ईशरदासजी के पुत्र गोपालदासजी बारहठ  ने अपने भाईओ और परीजनो सहीत 500 तुम्बेल चारणो की टुकडी का स्वयं नेतृत्व करते हुए रण भुमी मे पहोंचे ये युद्ध मे करीब ७००से ज्यादा चारणो ने विरता पुर्वक युद्ध कीया और वीजयी हुए ईस युद्ध को "भुचरमोरी" के युद्ध से जाना जाता है

वर्तमान समय में भी अपने जातीय संख्यांक के अनुसार अनेकानेक चारण बन्धुओ की सेना के तीनों अंगों में तैनाती है तथा देश की सेवा में अपना कर्तव्य-निर्वहन कर रहे हैं।
संदर्भ:
>विरवीनोद
>चारण दीगदर्शन
>चारण ऩी अस्मीता

*जीगर बन्ना थेरासणा*

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