क्षत्रिय चारण

क्षत्रिय चारण
क्षत्रिय चारण

सोमवार, 13 नवंबर 2017

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युद्ध भुमि के विर "चारण"

क्षत्रित्व का पाठ पढाने वाला चारण कीतना विर होगा?यह बात सहज ही सबके मस्तीस्क मे घुमती है।तब ईस प्रश्न का उतर जानने के लीये चारण की वीरता के अद्रीतीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है ताकी चारण से अनभीग्य लोग भी ईसे जानकर अपने संजोये भ्रम से मुक्त हो सके।

सन 1311 में सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने जालौर के राजा कान्हड़दे सोनगरा पर आक्रमण किया तब उसके सेनापति सहजपाल गाडण ने असाधारण शौर्यप्रदर्शन कर वीरगति पाई थी ईस युद्ध मे आसाजी बारहठ के साथ ग्यारह चारण भी थे ।

महाराणा हम्मीर के साथ चारण बारुजी सौदा 500 घोड़े लेकर अल्लाउद्दीन खिलजी से लड़े थे और खिलजी के मरने के पश्चात हम्मीर को चित्तौड़ की गद्दी पर बैठाने में सफलता पाई थी।
ईन्ही बारुजी के पुत्र पालमसिंह सौदा राणा रायमल के साथ मुसलमानो की सेना मे युद्ध लडते हुए "पाडलपौल"पर चित्तोड के कीले मे शोर्यता दीखाये विरगति को प्राप्त हुए थे।

जगदीश मंदीर की रक्षा हेतु और बादशाह ने उदयपुर पर जब धाबा बोला तब नरुजी सौदा द्वार पर लडते लडते  विरगति को प्राप्त हुए उनका सिर कटने के बाद भी धड लडा और ३०० कदम चल कर लडने के बाद वो गीरे।

सेणोंद के स्वामी जमणाजी सौदा ने पीली खांट मे  मांडु के बादशाह से शौर्यतापुर्वक लडते हुए १५८४ मे विरगती को प्राप्त हुए ।ईनके पुत्र का नाम राजविरसिंह था ईन्होने भी युद्ध की कई होलीया खेली। एक कडवा सत्य है की राणा सांगा के साथ अगर विर सौदा चारण न होते तो खानवा के युद्ध के पराजय के बाद सांगा प्राण त्याग देते।

प्रसिध्द हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप के साथ सेना में हरावल मे रामाजी सांदू व सौदा बारहठ जैसाजी व केशवजी भी लड़े थे    अदभूद वीरता दिखाकर वीरों के मार्ग गमन किया था।और भी बहोत से चारण हल्दीघाटी मे लडे थे जीसमे सुरायजी टापरीया,गोरधन बोग्सा आदी बहोत से विर चारण थे।

सन 1573 में अकबर द्वारा गुजरात आक्रमण के समय वीरवर हापाजी चारण मुगल सेना में तैनात थे।

मेवाड महाराणा जगतसिंह की सेना ने सिरोही पर हमला कर दीया ये युद्ध बनास नदी के तट पर हुआ मेवाड की और से चारण सिरदार महाराणा जगतसिंह के समर्थ सलाहकार ठाकुर गोपालदास सिंहढायच और चारण खेमराज दधवाडीया सेना मे तैनात थे ।

सिरोही के राव सुरताण और अकबर के मध्य सन 1583 में लड़े गए युध्द में दुरसा आढा मुगल सेनाकी और से तथा दुदाजी आसिया ने सिरोही की और से लड़ाई में भाग लिया था।

जालौर के किले में वि.सं. 1760 जोधपुर के मानसिंह को महाराजा भीमसिंहजी की सेनाने घेरलिया था, तब महाराजा मानसिंह के साथ मारवाड़के तत्कालीन समयके प्रसिध्द सतरह (17) चारणों ने वीरतापूर्वक लड़ करके अपने स्वामी की रक्षा की थी, उनमें भी जुगतो जी वणसूर नें तो सावधानी पूर्वक दो बार किले के घेरे से बाहर निकल कर एक बार अपने घर के गहणें बेच कर तथा दूसरी बार अपनें छोटे पुत्र को खारा के मंहन्त के गिरवी रख कर धन की व्यवस्था भी महाराजा मानसिंह को सुलभ करवाई थी। मानसिंहजी जुगतो जी वणसूर को काकोसा कह कर सम्बोधित किया करते थे।

हाजर जुगतो हुओ, पीथलो हरिंद पुणीजै।
दोनां महा दुबाह, सिरे फिर ऊंम सुणीजै।।
मैघ अनै मेहराम, ईंनद ने कुशलो आखो।
भैर बनो भोपाल, सिरै चौबीसो साखो।।
पनौ नै नगो नवलो प्रकट, केहर सायब बडम कव।
महाराज अग्र घैरै मही, सतरह जद रहिया सकव।।
ऊपरोक्त 17 चारणो ने मान सिह जी के साथ जालोर के घैरे मे साथ दिया। सभी के नाम निम्न प्रकार हैं।
1-जुगतीदानजी वणसूर, 2-पीथसिंहजी सांदू, 3-हरिसिंहजी सांदू, 4-भैरूंदानजी बारठ, 5-बनजी नांदू, 6-ऊमजी बारठ, 7-दानोजी बारठ, 8-ईंदोजी रतनू, 9-कुशल़सिंहजी रतनू, 10-मेघजी रतनू, 11-मयारामजी रतनू, 12-पनजी आसिया, 13-नगजी कविया, 14-भोपसिंहजी गाडण, 15-नवलजी लाल़स, 16-केसरोजी खिड़िया, 17-सायबोजी सुरताणिया

मेवाड़ के मैंगटिया गांव के गाडण सुलतान जी के पुत्र भगवानदास और भैरूंदास बड़े वीर पुरुष व महाराणा की सेना में सिपहसालार के पद पर थे, तथा महाराणा की और से बादशाह को दी जाने वाली सैनिक टुकड़ी में दिल्ली में तैनात थे, दिल्ली की कैद से मराठा छत्रपतिजी महाराज शिवाजी को निकालने में मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह का हाथ होने पर उसे षडयंत्र पूर्वक मारने की योजना को इन दोनों गाडण भाईयों ने सफलता पूर्वक विफल कर दिया था तब मिर्जा राजा रामसिंह ने इन दोनो को हरमाड़ा गांव की जागीर प्रदान कर आमेर के पास ही बसाया था।

हररुपजी आशीया ने महाराणा प्रताप की पाग को न जुक ने देकर अकबर के खीलाफ युद्ध छेडा थे और हररुप जी आशीया ने महाराणा प्रताप की और से युद्ध मे अद्वीतीय विरता दीखाई थी  १२ अंगरक्षको को मारने के बाद अकबर के सुबे अजीज को चारण ने अपने अश्व से उसके हाथी के सुंठ पर चढ कर भाले से वार कर ऐक ही झटके मे सुबे को मार गीराया था और शहीद हुए थे।

सिध्द अलूनाथजी कविया के बड़े पुत्र नरुजी कविया ने आमेर के राजा मानसिंह के साथ में उड़िसा में कटक के युध्द में कतलू खाँ नामक पठान इक्का को द्वंद युध्द में मार कर वीरगति पाई थी।
दुसरा युद्ध कतुलखां लोदानी के वीरुद्ध जोधपुर की सेना मे ईन्होने विरता दीखाई थी, और कुंवर जगतसिंह के प्राण बचाये थे।ईस युद्ध मे नरुजी के पुत्र जैसाजी कविया भी सम्मलीत थे।
ईन्ही के वंशज विजयसिंह ने अमिरखां पठान के वीरुद्ध  दांता ठाकुर गुमानसिंह (गुमानसिंह युद्ध छोडकर भाग गया तब पुरा युद्ध का मोरचा विजयसिंह ने संभाला था) के युद्ध मे बहोत से मुस्लीमो के सर काटे तभी वीजयसिंह का बेटा ईस युद्ध मे कटकर गीरा बदले मे उन्होने नवाब का सर धड से अलग कीया था ।
इस विषय का एक प्रसिध्द वीर गीत भी बनाया हुआ है। कविया वंश की शाखा का वीरता के गीत का एक भाग देखिये।

पाँच कम साठ नरपाल रा पोतरा आठ पीढीयां मांही काम आया।।

अर्थात पचपन वीर पुरुष आठ पीढीयों में लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुऐ।

इतिहास प्रसिध्द कविया करणीदान जी अहमदाबाद की लड़ाई में जोधपुर महाराजा अभयसिंह के साथ हरावल में थे, तथा पहले दिन की लड़ाई में जोधपुर की सेना को दबती देखकर कविया करनीदान जी ने अभयसिंह जी को कहकर सेना के मोर्चे दूसरी जगह लगवाये थे और जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे और जीत कर घर आने पर सूरज-प्रकास और विरद-सिणगार की रचना की थी।

गांव केड़ की ढाणी के किशनाजी बारहठजी नें मांढण के युध्द में शेखावतों के साथ मिलकर मुगलों व मित्रसेन अहीर की सेना को हराया था व स्वंय वीरगति को प्राप्त होने पर उनके पुत्र ईश्वरदानजी को बिसाऊ ठाकुर श्यामसिंह जी ने श्यामपुरा की जागीर प्रदान की थी।

दलपत बारहठ बीकनेर की सेना मे मराठो से १७५५ मे अपने पुत्र विजा के साथ लडते लडते विरगति को प्राप्त हुए थे।

बडलु के युद्ध मे आसोपा ठाकुर शिवनाथसिंहजी के जोधपुर आक्रमण मे भदोरा ठाकुर गिरवरसिंह सांदु कंधे से कंधा मीलाए थे।ईस भीसण युद्ध मे बहोत से सैनीक रणभुमी छोडकर भाग गए परंतु ठाकुर गिरवरसिंह ने अडीखम होकर युद्ध भुमी को रक्तरंजीत कीया था।

जोधपुर के जसवन्तसिंह प्रथम शाहजहा के विद्रोह शाहजादो को परास्त करने १७१५ मे उज्जेन गये ईस सेना मे हरावल मे जसराज बारहठ इतने पराक्रम के साथ लडे के एक टक होकर जसवन्तसिंह उनको देखने रणभुमी मे ठहर गये।

सौराष्ट मे सात गाँवो के स्वामी वीहलदेव चारण का मुख्य ठीकाना आंबरडी पर अहमदाबाद के बादशाह ने चढाई की ,तब उनके साथ ११ चारण मीत्रो ने मुस्लीम सेना के साथ तलवार को ऱक्त से नहलाकर युद्ध कीया बहोत से मुस्लीमो को काटकर १२ चारण विरगती को प्राप्त हुए थे।

राजकोट की दरबार कचेरी मे एक पठान ने तलवार सहीत दरबार मे कदम रखा और राजा को मारने हेतु वो जेसे ही आगे बढा उससे पहले जैसाजी चारण जो दरबारी थे उन्होने पलक जबकते ही पठान को कटारी से गले पर वार कर वही ढेर बना दीया।

१६३९ मे जामनगर मे अकबर नी सेना के सुबेदार  मीरजा अजीज कोका ने युद्ध करने हेतु सेना भेजी तब जामनगर के विर चारण परबतजी वरसडा जामनगर के प्रत्येक गांव जाकर नौजवानो की ऐक टुकडी तैयार की तो दुसरी और ईशरदासजी के पुत्र गोपालदासजी बारहठ  ने अपने भाईओ और परीजनो सहीत 500 तुम्बेल चारणो की टुकडी का स्वयं नेतृत्व करते हुए रण भुमी मे पहोंचे ये युद्ध मे करीब ७००से ज्यादा चारणो ने विरता पुर्वक युद्ध कीया और वीजयी हुए ईस युद्ध को "भुचरमोरी" के युद्ध से जाना जाता है

वर्तमान समय में भी अपने जातीय संख्यांक के अनुसार अनेकानेक चारण बन्धुओ की सेना के तीनों अंगों में तैनाती है तथा देश की सेवा में अपना कर्तव्य-निर्वहन कर रहे हैं।
संदर्भ:
>विरवीनोद
>चारण दीगदर्शन
>चारण ऩी अस्मीता

*जीगर बन्ना थेरासणा*

शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

चारण जाती के लीए विद्धवानो और राजाओ के मंतव्य

*चारण जाती के लीए राजा और विध्धवानो के मंतव्य*

चारणो ज राजाओ ने सत्य हकीकत कही शके छे तेओ बधा करता श्रेष्ठ छे ।
     -सर प्रभाशंकर पंडीत

चारण जाती की महता सत्यकथन,विरत्व,नीलोभीता,ईन्द्रीयनिग्रह पर ही प्रतिष्ठीत है, चारण जाति शस्त्र,शास्त्र आदी सब बातो मे राजपूतो की अगुआ रही है,और ईस जाती के सद उपदेश से राजपूतो का उपकार होता ही आया है।
 -महाराजा बलभद्रसिंहजी

चारण जाति हमेशा राजपूतो कि पथप्रदशक रही है।
 -श्रीमान महाराजा रामसिंहजी सितामऊ

यह चारणो के परम पराक्रम,सत्यता,बुध्धीमता का ही प्रताप था की नीडर जाति शताब्दीओ तक राज्य कायम कर शकी ।
 -ठा.सा. केशरीसिंहजी सौदा

चारण जैसा भी हो हमारे लीए पूजनीय है,चारण दरबारी है ईस लीए श्रेष्ठ नही है,वह हम पर अंकुश रुप है ईसी लीए हम उन्हे श्रेष्ठ मानते है ।
 - केप्टन जोरावरसिंहजी पन्ना स्टेट

चारणो भारत वर्ष मा देवदरबार ,राजदरबार,लोकदरबार सर्वत्र सन्नमानीय छे अने सर्वत्र अेमना साहीत्य नी भान थाय ते जोवानी मारी महेच्छा छे।
 -गोकलदास रायचुरा,संत्री शारदा

चारण भारतीय संस्कृती के उदघोषक ही नही,उसके मूलतत्व के प्राणपण से रक्षक भी रहे है । शस्त्र ओर शास्त्र पर उनका असाधारण अधीकार रहा है।
 -डो.भगवतीप्रसादसिंह गोरखपुर युनीवर्सीटी,गोरखपुर

राजपूताना के राजा वह जाती को बहोत मान सन्मान देते है, विश्वास पात्र मानते है और इनका उच्च दरज्जा है। राजा महाराजाओ की और से उन्हे कुरब,कायदे और ताजम दी जाती है । दरबार मे उनकी ईज्जत वाली सन्मानीय बेठक है । कसुंबा लेते समय सीरदार पहले चारण सीरदार को मनवार करते है । काव्य रचना ईतना ही नही वीपत्ती के समय तन,मन,धन और बाहुबल से उनकी भरपूर सहायता की है ,ये हकीकत का राजपूताना का ईतीहास साक्षी है। उनकी बहोत जागीरे राजपूताना मे है। चारण स्पष्टवक्ता और सत्यवादी है वह राजा महाराजाओ को सत्यता सुना ने मे बीलकुल भी संकोच नही करते थे,राजा महाराजा उनके डर से ये मानते है,की हम चारणो की कवीता मे पीढी दर पीढी दयाहीन रहेगे ,हमारी प्रतीष्ठा कम होगी तो वह गलत या अनीती करने से अटकते थे ।
-केप्टन अे.डी. बेनरमेन आई.सी.एस.(हीन्दुस्तान ई.स.१९०१ वस्तीपत्रक अनुसार)

चारण - चाह+रण=रण की चाह रखने वाला अर्थात संग्राम का चहेता । स्वाभीमान आत्मरक्षा व मातृभुमी की रक्षा के लीये युद्ध करने वाला और उसकी अनिवार्यता बताने वाला
 -मयाराम री ख्यात -ठाकुर शंकरसिंह जी आशिया

चारण हमेशा सत्यवक्ता,नितीपरायक,शूरविर,और कर्तव्यनिष्ठ थे। वो सच्चे समाज सेवक थे,चारण राजा-प्रजा का  पिता-पुत्र समान संबध ऱखने मे सबल साधनरुप थे  भूतकाल मे राजाओ को आकरे और सत्य शब्द सुनाने मे जब कोई भी वर्ग समर्थ न था तब चारणो ने उस कार्य को बीना संकोच ओर नीडर होकर कीया है, ईतीहास गवाह है।
-सोरठविर छेलशंकर दवे

चारण भूतकाल मे राजपूतो को (राजाओ को) नैतीक बल से सहायता प्रदान करने का स्त्रोत बने रहे है यह सहायता किसी भी भौतीक सहायता से बहुत महत्व पूर्ण है।  युद्ध के समय मे एंव अन्य राष्टीय आपति के अवसरो पर चारणो ने परामर्श, बाहुबल,पथप्रदर्शक,एवं प्रोत्साहन से राजपूत अपने शौर्य एंव मान प्रतीष्ठा के परंपरागत पवित्र आदेशो को नीभाय रखने मे समर्थ हुए थे ,जीसके अैतीहासीक संस्मरण उन्हे सारे संसार मे विख्यात कर रहे है ।
  -ठा.सा. चैनसिंहजी चांपावत जोधपूर

चारण जाती राजपूतो से भी अधीक विर थी यदी ऐसा न होता तो उनकी वाणी से कायर राजपूतो मे विरता का संचार होना असंभव था ।
-महाराजा बलभद्रसिंह जी

अकल,विधा,चित उजलौ।अधको घर आचार।
वधता रजपूत विचै। चारण वातां चार।।
-जोधपुर महाराजा श्री मानसिंहजी
पहली अक्ल दुसरा विधा
तीसरा मन से पवित्र, और चौथा ईनके घर का आचरण ईन चार बाबतो मे चारण राजपूतो से अभी तक बहुत आगे है।

जीगर बन्ना थेरासणा

क्षत्रिय "चारण"

⚔ *क्षत्रिय "चारण"* ⚔


वैसे तो चारण देवलोक मे रहने वाली देवजाती थी उनकी यह बात का प्रमाण हमे रामायण,भागवतगीता,गरुडपुराण,गणेश पुराण,ब्रह्मा पुराण,नरसिंहपुराण,वीष्णुपुराण,शिवमहापुराण,जैसे महान प्राचीन पवीत्र गंथ्रो मे देखने को मीलता है।पृथु राजा द्वारा चारण देवलोक से पृथ्वी पर आये और पृथु राजा ने उन्हे अपने दसोंदी बनाकर गढपति बनाया,दरबारी बनाया और कुछ चारण रुषी होकर हीमालय मे जा बसे।

परंतु मनुष्यलोक के चार वर्णो मे (ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्व,शुद्र)चारण को गीना जाय तो वो हे क्षत्रीय वर्ण।अनादी प्राचीन काल से ही माँ भगवती सती हींगलाज के आदेश अनुसार चारण-राजपूत सनातन संबध चलता आया है,नागवंशी क्षत्रीयो का तो चारणो के साथ मामा भांजे का संबध है ,ईस बात का ईतीहास प्रमाण देता है।  चारण उभयकर्मी होने पर भी मूल रुप से क्षत्रीय कर्म प्रधान होने से क्षत्रीय जाती कहलाती है , फलत यह पुर्ण रुप से क्षत्रीय वर्ण से है ।क्षत्रीय जाती के तराजु मे यदी राजपूत के साथ चारण को तोला जाये तो कीसी भी पलडे मे रख दो ईनका समान्तर अस्तित्व रहेगा।

चारणो ने कलम के साथ साथ करवाल(तलवार) धारण कर अपना हस्तकौशल दीखाया है,रणबांकुरे चारणो के युद्ध नैपुण्य के द्रश्य ईतीहास मे अगणीत देखने को मीलते है। चारणविरो ने आत्मरक्षा,स्वाभीमान और मातृभुमी के लीए अपनी जान हानी का न सोच कर तलवारो को रक्तघुंट पीलाते क्षत्रीय धर्म नीभाया है।

क्षात्रवट को संभाल ने मे राजपूताना के ईतीहास मे कीसी का मुख्य भाग है तो उसका मान भी चारणो को ही जाता है।

क्षत्रित्व का पाठ पढानेवाला चारण कीतना विर होगा?यह बात सहज ही सबके मस्तीस्क मे घुमती है,तब इस प्रश्न का उतर जानने के लीए (राजपूताना के) चारणो का ईतीहास व साहीत्य जानना आवश्यक है,ताकी चारण से अनभीग्य लोग भी ईसे जान कर अपने भ्रम से मुक्त हो सके।

स्पष्ट है की पुरातन एंव मध्यकाल मे चारण राजपूत का चोलीदामन का प्रगाढ रिश्ता रहा है सांस्कृतीक द्रष्टी से(रितीरिवाज) से ये कभी भीन्न नही हो सकते एक दुसरे के अभिन्न अंग है।
चारणो और राजपूतो मे आचार-विचार,खान-पान,पहेरवेश,रीतिरिवाज,डीलडोल,रेहणी-केहणी सब कुछ ऐक है।

चारणो के एक पुराने महान संघठन "अखील भारतीय चारण महासभा" के प्रथम अधीवेशन  जो पुष्कर मे हुआ था।
ई.स.1921 कार्तीक शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णीमा तक ये कार्यक्रम चला था। उसमे हाजर सभ्यो के नाम:
>सम्मेलन के प्रधान संयोजक:चारण कुल भुषण श्रीमान ठाकुर साहेब श्री केशरीसिंहजी बारहठ
>कोटा कविराज ठाकुर साब श्री दुर्गासिंहजी महीयारीया,>पोपावास के ठाकुर सा.मोतिसिंहजी कीनिया,>भांणपुर के ठाकुर सा श्री भवानीसिंहजी आढा
>स्वागत अध्यक्ष:मोही ठाकुर साब श्री डुंगरसिंहजी भाटी
>प्रथमदीन के सभापति:श्रीमान ठाकुर साब शंकरसिंहजी दुरसावत
>दुसरे दीन के सभापति:ठा.सा. दुर्गासिंहजी महीयारीया
>तृतीय दीन के सभापति:श्रीमान राजराजेश्वर महाराजा बलभद्रसिंहजी हाडा
>सम्मेलन के प्रधानमन्त्री:मेंगटीया नरेश ठाकुर ईश्वरदानजी आशीया

ईस सम्मेलन मे बडे बडे राजपूत सिरदार और बडे बडे चारण सिरदारो के बीच चारणो को क्षत्रीय घोषीत कीया गया था, चारण क्षत्रीय वर्णस्थ तो थे ही पर लोगो की अलग अलग भ्रांतीयो की वजह से राजराजेश्वर महाराजा बलभद्रसिंहजी के नेतृत्व मे ये फैसला लीया गया था।समजदार वर्ग को तो पता ही था की चारण कौन हैैैै, पर नासमजो को ये पता चले ईस लीए।
चारण युद्ध भुमी मे सबसे आगे हरावल टुकडी मे रहते थे ईस टुकडी मे राजपूत भी होते थे ।  चारण युद्धभुमी मे तलवार को रक्त से नहलाकर,कई दुशमनो को काट कर विरगति को प्राप्त होते थे।वे वीकट परिस्थीती मे हमेशा लडने को तैयार रहते थे।
 आज भी चारण देश की सेवा मे तिनो खांपो मे तैनात है, उनको आज भी सैना मे जाना ज्यादा पसंद है।
>संदर्भ:-
*1 चारण कुल प्रकाश-ठा.कृष्णसिंह बारहठ*
*2 चारण नी अस्मिता-श्री लक्ष्मणसिंह गढवी*
*3 चारण दिगदर्शन-ठा.शंकरसिंह आशीया*
*4 चारणो की स्वातंत्रता लीपसा-डो.सोनकुंवर हाडा*

*जीगर बन्ना थेरासणा*
*विर चारण महा सेना ग्रुप*⚔

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

धानडा शाख की रोचक जानकारी

🗡  धानडा शाखा की कुछ जानकारी और ठिकानों के इतिहास 

गोत्र - तूम्बेल 
कुलऋषी - शंकरा
कुलदेवी - रवेची,चामुंडा
कुलब्राह्मण - मसूरियो 
शाखा के माँगणियात(याचक) - भरडोसो 
उप शाखा की संख्या - 13  1/2

>तुम्बेल गोत्र के अन्तर्गत धानडा शाखा आती है। धानडा सिरदारो का एक दोहा है:
सुरा जिमावण साॅढ।लाल चढण ने लाङली।।
जब हूई वार  हलकार।तब धरम मचायो धानडे।।
राजस्थान के वागड प्रदेश मे धानडा सिरदारों  के 3 ठिकाने है, भटवाडा ,राठडीया ,माकीया;और गुजरात मे 2 तसीया और जोटाणा ।
 
राठडिया के श्रीवीरजी के सुपुत्र ठा.भारथोजी धानडा को बाँसवाडा रावल विजेसिंहजी ने संवत 1949 आसाढ सुदी 11 को राठडिंया ग्राम जागीर मे दिया इन्हीं भारथो जी के वंश से ठाकुर जौवानसिंह  हुए'   ठाकुर जोवानसिंह जी कि अनुपस्थिति मे डूगंरपूर कि माँडव मीणा पाल ने हमला कर दिया ! 
तब ठाकुर के भतीजे गोपालसिंह ने वीरता से लड़ते हुए 180लोगों  को धूल चटाई व राठडीया कि रक्षाकरते हुए वीर गति को प्राप्त हुए !
राठडीया मे सदासिव हजुरि ने उपरोक्त घटना कि जानकारी ठाकुर को दी' ठाकुर ने प्रण लेते हुए डूगंरपूर कि माँडव व भोराई पाल को तोड़ कर 200 से  ज्यादा मीणा लोगों को 
मार कर राठडीया पुन: स्थापित किया !
तामृपत्र तथा प्रत्येक चिह्न  भी विद्यमान है। आज इन्ही ठाकुर जोवानसिंहजी के वंशज राठडीया ठिकाने के जागीरदार है ,और वह चारण कुल मे खानदान कहलाते है ।
 >और बात करे तो वागड के माखीया जागीर की ,श्री मौखमजी के सुपुत्र ठा.वीरसिंहजी धानडा को बाँसवाडा महारावल पृथ्वीसिंहजी ने सवंत 1804 चेत्र सुद 8 और शनिवार के दिन माखीया साँसण प्रदान किया।  
 >और बाँसवाडा जिले मे धानडा सिरदारो की चोखी साँसण जागीरी है भट्वाडा । श्री दयारामजी के सुपुत्र ठा.सरदारसिंहजी धानडा को बाँसवाडा नरेश रावल भवानीसिंहजी ने सवंत 1895 आसो सुद 10 को  भटवाडा साँसण प्रदान किया ।  
और गुजरात के ईडर प्रदेश मे धानडा सिरदारो का एक ठिकाना है तसीया,और मेहसाणा मे एक है  जोटाणा। तो ये रोचक जानकारी थी  देवजाती चारण कुल की एक शाख धानडा की ।  आशा है इस जानकारी से आप सब  को धानडा सिरदारो के बारे मे  कूछ एतीहासीक तथ्य जानने को मिले होंगे । 

भूल चूक हेतु क्षमा  

जय माताजी री

कुँ.जीगरसिंह सिंहढायच
ठी.थेरासणा

सिंहढायच के गोत्र प्रवरादी

🛡सिंहढायच शाखा के गोत्र प्रवरादी🛡

गोत्र  :- भांचलीया (भादा)
कुल ऋषि :- परमोरू
कुलदेवी :- माँ चालाराय
राज्य :- मारवाड़
कुल ब्राह्मण:- घांघीया
शाख के माँगणियात(याचक):-सावडे
उपशाखा की संख्या:-12
भाट :- राजोरा
घोड़ा:- श्याम कर्ण
तलवार :- रणतरे
प्रथम शासन जागीर :- मोघडा
कुल पुरुष:-नरसिंहजी

--जयपालसिंह थेरासणा

चारणो को "गढवी" क्यु कहा जाता है?

चारणो को "गढवीर" क्यू कहा गया ???

:- जब जब चारणो नै तलवार उठाई है तब तब इतिहास नै भी अपनी दिशा बदल दी है। जब कौई शत्रु लडनै आया और दुँबल राजा उससे मित्रता करनै का विचार लाता था तब चारण नै शौर्य सै भरपूर काव्य रचै है। उस काव्य को सुनकर कायर भी  तलवार पकड कर बखतर कस लेता था । राजा जब युद्ध मे लडनै जातै थै तब वो अपनै परिवार की और अपनै किल्ले की सुरक्षा अपनै अजीज और विश्वाशपात्र चारण को सौंपतै थै चारण अकेले पुरे कीले की सुरक्षा करतै करतै वीरगती प्राप्त होते थे । चारणौ की इसी शूरवीरता कै कारण उनको सन्मान कै साथ "गढवीर" (गढ कै वीर यौद्धा) बुलाया गया। गढवीर शब्द का इतिहास मै भी अमर स्थान है ।।

"गढ कै हम है वीर हमै बौलतै है 'गढवीर' "

जय मां आवड
जय मां करणी
जय हींगलाज माँ
🙏🏼🙏