!! ठाकुर दयालदास जी सिंहढायच !!
दयालदासजी चारण जाति री सिंहढायच शाखा में जन्मिया अनमोल रतन हा, अर इतिहास व साहित री महत्ती सेवा कीधी, राजस्थान रा उगणींसवी सदी रा अनेक नामी ख्यातकारां में दयालदासजी रो नाम हरावऴ पांत में आवै है, दयालदास जी ऐक इतिहास री ख्यात लेखक ही नहीं हा वे ऐक सुकवि अर सटीक टीकाकार भी हा !
उणां आपरे लेखन रे सागै बीकानेर राज्य री बहियां, वंशावऴियां, पट्टा परवाना एंव शाही फरमाना ने भी जुगत सूं जचाय अर घणी सूझबूझ अर लगन सूं करियो !!
दयालदास जी तीन ख्यातां है !
(1) राठौङां री ख्यात सन 1852 ई. !
(2) ख्यात देशदर्पण सन 1870 ई. !
(3) आर्याख्यान कल्पद्रुम 1877 ई. !
ख्यातां सगऴी गद्य रूप में रचियोङी है पंवार वंश दर्पण पद्य रूप में पिरोयेङी है
इण सारी लाखीणी लेखणी री रचनावां टाऴ भी सिंहढायच रो सांगोपांग सृजन कम सूं कम बीसेक फुटकर गीतां रे रूप में मिऴै है !!
जोधपुर राज्य मे सिंहढायचो री जागीर मोघङा सूं आयर बीकानेर राज्य रा कुबिया ठिकाने मे आबाद हुया सिंहढायच चारणां रे घरै ठाकुर खेतसिंह जी रे पुत्र रूप में विक्रमी सम्वत 1855 में दयालदास जी रो जन्म हुयो, ठाकुर खेतसिंह उण समै प्रतिष्ठित जागीरदार चारण घराणैं री गिणती में आवता हा !!
डिंगऴ अर राजस्थानी साहित रा मर्मज्ञ दयालदासजी बीकानेर रियासत रा तीन शासकां महाराजा रतनसिंह, महाराजा सरदारसिंह, महाराजा डूंगरसिंह आं तीनां रा राजकाज में साथै रैया अर योद्घा, राजकवि, ख्यातकार, दरबारी मंत्री इतिहासकार अर कुशल कूटनितिज्ञ रे रूप में आपरी महता रौ निरूपण करियो ! इणमें ऐक बात घणी ईधकी है कि आपरै ख्यात लेखण में कहाणी किस्सां री बजाय बीकानेर राज रा आरम्भ सूं आखिर बरसां तांई रो जीवन्त अर जागृत लेखन लिखियो, जिको मूंढै बोलतो सरस अर रूचिकर इतियास है !
दयालदासजी सिंहढायच पर सुरसती देवी री अनहद कृपा ही, उणरो सुरसती सिमरण रो ऐक दोहो जिणमें मातेश्वरी नें अरदास कर सुरसत रे साथे धनदा देवी लिछमी री कृपा भी सुरसती सूं अनुषंशा करने करवाय लीवी !!
वीणां धारद कर विमल,
भव तारद सुर भाय !
हंसारूढ दारद हरो,
शारद करो सहाय !!
राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!
दयालदासजी चारण जाति री सिंहढायच शाखा में जन्मिया अनमोल रतन हा, अर इतिहास व साहित री महत्ती सेवा कीधी, राजस्थान रा उगणींसवी सदी रा अनेक नामी ख्यातकारां में दयालदासजी रो नाम हरावऴ पांत में आवै है, दयालदास जी ऐक इतिहास री ख्यात लेखक ही नहीं हा वे ऐक सुकवि अर सटीक टीकाकार भी हा !
उणां आपरे लेखन रे सागै बीकानेर राज्य री बहियां, वंशावऴियां, पट्टा परवाना एंव शाही फरमाना ने भी जुगत सूं जचाय अर घणी सूझबूझ अर लगन सूं करियो !!
दयालदास जी तीन ख्यातां है !
(1) राठौङां री ख्यात सन 1852 ई. !
(2) ख्यात देशदर्पण सन 1870 ई. !
(3) आर्याख्यान कल्पद्रुम 1877 ई. !
ख्यातां सगऴी गद्य रूप में रचियोङी है पंवार वंश दर्पण पद्य रूप में पिरोयेङी है
इण सारी लाखीणी लेखणी री रचनावां टाऴ भी सिंहढायच रो सांगोपांग सृजन कम सूं कम बीसेक फुटकर गीतां रे रूप में मिऴै है !!
जोधपुर राज्य मे सिंहढायचो री जागीर मोघङा सूं आयर बीकानेर राज्य रा कुबिया ठिकाने मे आबाद हुया सिंहढायच चारणां रे घरै ठाकुर खेतसिंह जी रे पुत्र रूप में विक्रमी सम्वत 1855 में दयालदास जी रो जन्म हुयो, ठाकुर खेतसिंह उण समै प्रतिष्ठित जागीरदार चारण घराणैं री गिणती में आवता हा !!
डिंगऴ अर राजस्थानी साहित रा मर्मज्ञ दयालदासजी बीकानेर रियासत रा तीन शासकां महाराजा रतनसिंह, महाराजा सरदारसिंह, महाराजा डूंगरसिंह आं तीनां रा राजकाज में साथै रैया अर योद्घा, राजकवि, ख्यातकार, दरबारी मंत्री इतिहासकार अर कुशल कूटनितिज्ञ रे रूप में आपरी महता रौ निरूपण करियो ! इणमें ऐक बात घणी ईधकी है कि आपरै ख्यात लेखण में कहाणी किस्सां री बजाय बीकानेर राज रा आरम्भ सूं आखिर बरसां तांई रो जीवन्त अर जागृत लेखन लिखियो, जिको मूंढै बोलतो सरस अर रूचिकर इतियास है !
दयालदासजी सिंहढायच पर सुरसती देवी री अनहद कृपा ही, उणरो सुरसती सिमरण रो ऐक दोहो जिणमें मातेश्वरी नें अरदास कर सुरसत रे साथे धनदा देवी लिछमी री कृपा भी सुरसती सूं अनुषंशा करने करवाय लीवी !!
वीणां धारद कर विमल,
भव तारद सुर भाय !
हंसारूढ दारद हरो,
शारद करो सहाय !!
राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें