क्षत्रिय चारण

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बुधवार, 8 अगस्त 2018

मेवाड प्रधानमंत्री महामहोपाध्याय श्यामलदासजी दधवाडीया(चारण)

*कविराजा श्यामलदास जी दधिवाडिया द्वारा शिक्षा हेतु सद्प्रयास  और मेवाड़ चारण समाज के गौरवशाली प्रसंग*
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 विलक्षण देविपुत्र चारण समाज में प्रतिभा तो मातेश्वरी की अटुट कृपा से  जन्मजात होती है मगर शिक्षा का व्यापक  ज्ञान व्यवस्थित रूप से जिनको मिला उन्होंने दुनिया में नाम दर्ज करवाया।
राजस्थान में शिक्षा का सामुहिक प्रयास सर्वप्रथम उदयपुर में कविराजा शामलदास जी के प्रयासों से सम्वत 1937 में हुआ। कविराजा शामलदास के गुणों से महाराणा सज्जनसिंह जी इतने प्रभावित थे कि वे राजपूत जाति व राजपूत राज्यों के लिए समस्त चारण जाति को ईश्वरीय देन समझने लगे। उनके मन में यह दृढ़ हो गया की राजपूत जाति को पतन से रोकना है तो पहले चारणों को सुशिक्षित करना चाहिए। इनसे बढ़कर निर्भिक सलाहकार,पूर्ण विश्वस्त और शुभचिंतक अन्य कोई नहीं हो सकता।इस बात को वे जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह जी और महाराजा कृष्णगढ़ शार्दुल सिंह जी को अनेक बार कहा करते थे।इसी विश्वास व संस्कार के कारण व  कविराजा की प्रार्थना पर महाराणा सज्जनसिंह जी ने क्षत्रियों की वार्षिक आमदनी का दशमांश हिस्सा जिला हाकिमों की मारॅफत मंगवा कर चारण पाठशाला के नाम से मदरसा बनवा कर उसमें चारणों के लड़कों की पढ़ाई में खर्च करने का निश्चय किया। तदनुसार सम्वत 1937 (सन 1880)में पाठशाला और छात्रालय कायम हुआ उसमें छः मास्टर नियत किए गए,साथ में नौकरों ,पठन पाठन की सामग्री, छात्रों का भोजन वस्त्र समस्त खर्च राज्यकोष से दिया जाने लगा, जब तक पाठशाला एवं छात्रावास का स्वतंत्र भवन नहीं बन तब तक उमराव सरदारों की हवेलीयों में काम चलाया जाता। सबसे पहले *सौदा बारहठों के गांव राबछा* में पहाड़ जी की हवेली में इसका श्री गणेश हुआ , जिसमें क्रांतिकारी केसरी सिंह जी बारहठ ने भी शिक्षा प्राप्त की थी।
प्रत्येक सोमवार को जहां महाराणा की इच्छा होती वहां चारण छात्रों सहित, बड़े बड़े साहित्यकारों विद्वानों के साथ सभा होती जिसमें साहित्य रसज्ञ ठाकुर मनोहर सिंह जी डोडिया (सरदारगढ़), स्वामी गणेशपुरी जी,डिंगल कब प्रतिनिधि महियारिया मोड़ सिंह जी विद्वर उज्जवल फतहकरण जी , शहर के अन्य कवियों के साथ महाराणा स्वयं सभाध्यक्ष पद पर आसीन रहते । यह व्यवस्था चार साल तक चली उस समय एक सौ से अधिक चारण छात्र एकत्रित हो चुके थे क्योंकि बालकों को लाने आ काम स्वयं कविराजा शामलदास जी करते थे।
 *ये दिन चारण जाति के लिए अहो भाग्य के थे।*
 परन्तु ईश्वर की सृष्टि में उलूक स्वभाव आदमी भी उत्पन्न होते ही है। इतनी सुविधाएं होने पर भी पाषाणजीवन अनेक चारण अपने बालकों को नहीं भेजते थे।विवश होकर कविराजा जिला हाकिमों द्वारा पुलिस व जागीरी सवार भेजकर लड़कों को पकड़वा मंगाते । उस समय का द्रश्य दु:ख और करूणा से भरा हुआ था। दुःख था चारणों के मुर्खतापूर्ण मोह पर व करूणा थी बालकों के रूदन को शतगुणित करने वाले घर के भीतर माता,भुआ,बहिन, पिता भाई दादा आदि के बूढ़ क्रंदन पर । बालक का एक  हाथ होता सवार के हाथ में व दुसरा हाथ होता पिता व अन्य परिजनों के हाथ में। इस प्रकरण में सहस्त्रों गालियां पड़ती कविराजा जी को, उनके घर वंश पर आग रखी जाती और रोम रोम में किड़े पटके जाते। कल्पना की जा सकती है कि किन विपरीत परिस्थितियों में चारण समाज में शिक्षा हेतु कविराजा ने अथक प्रयास किए।
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महेंद्र सिंह चारण

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