*यदि किसी एक ही इंसान में महात्मा गांधी व विवेकानंद जी को देखना है तो वह है दसोड़ी के स्वामी कृष्णानन्द सरस्वती*
राजस्थान की धरती सदैव ही विर प्रसूता रही है । यहां किसी भी व्यक्ति के जन्म की सार्थकता सिद्ध करने की कसौटी है ।
*माई एड़ा पूत जण के दाता के सुर*
*नितर रेजे बांजड़ी , मती गवाज़े नूर*
इसी कसौटी पर सो प्रतिशत खरे उतरने वाले महापुरुषो में में एक महान आत्मा 1900 ई. में दासोड़ी ग्राम में श्री दौलतसिंह जी रतनु के घर श्री मति उमा बाई की कोख से देवीसिंह नाम के रुप में जन्म हुआ
शुरु से ही देवीसिंह जी रतनु को समाज सेवा एवम संगठन निर्माण में ने बड़ी रुचि थी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी (काशी )से अध्ययन पूर्ण कर आप समाज को जगाने में लग गए
आपका सम्पर्क राजस्थान की तत्कालीन सभी रियासतो से था । आपकी बेबाकी से अन्याय के विरुद्ध बोलना व लिखना तथा राजा महाराजाओ को तथा जन सामान्य को कुरीतियो के विरुद्ध जगाना का कार्य सतत चलता रहा
उस समय स्वतन्त्रा संग्राम चरम ओर था तब आपका सम्पर्क ठाकुर केशरी सिंह जी बारहठ , खरवा ठाकुर गोपाल सिंह जी , प्रताप सिंह जी , रास बिहारी बोस , आदि से हुआ तथा सेठ जी से आपका प्रगाढ़ परिचय रहा । आप जोशी मठ से सन्यास ग्रहण कर स्वामी कृष्णा नन्द जी सरस्वती बन गए ऋषिकेश में कोढियों की सेवा करने लगे । उसी दरमियान आपकी मुलाकात वर्धा आश्रम में महात्मा गांधी से हुई तो गांधी जी इनकी सेवा से बड़े प्रभावित हुए ।
गांधी जी ने इन्हें राष्ट्र भाषा प्रचार का कार्य सोपा
इस कार्य हेतू आपने पूरे भारत का भर्मण किया तत्पश्यात आप *नेपाल पहुचे थे वहां पर अपने संस्था गत रूप से सेवा कार्य सूरु किया । वहां आपको आँख देने वाला बाबा के नाम से पुकारा जाने लगा । वहां से अफ़्रिका देशो केनिया , जांबिया , धाना , नाइजेरिया , ट्रांसवाल, आदि स्थानों पर आपने दिनबन्धु समाज ' *हयूमन सर्विस ट्रस्ट* ' *की स्थापना की*।
*पूर्व राष्ट्रपति श्री वी . वी . गिरी ने कहा "स्वामी कृष्णा नंद जी सरस्वती ' भारतीय संस्कृति के दूत है*
आप विश्व भर्मण के क्रम में लंदन गए वहां हेरो में स्वामी कृष्णा नंद आश्रम की स्थापना की वहा पर ' *मिल्स ऑन विल्स* ' कार्यक्रम से भूखो को भोजन दिलाया
वहां से आप अमेरिका गए वहां के *राष्ट्रपती केनेडी व रुजवेल्ट आप से बहुत प्रभावित हुए वहां ह्यूमन सर्विस ट्रस्ट की स्थापना की। वह के अखबार में आलेख छपा पेनीलेस बट बेरी रिच सेंट ' आपने वहां सयुक्त राष्ट्र सभा को भी सम्बोधित किया* ।
1967 ई. में आप मोरिशस पधारे , यहां पर तक फ्रांसीसी सरकार के जुल्म से आहत भारतीय मूल के लोग बड़े दुखे थे , स्वामी जी का अवतरण ही दुख निवारण के लिए हुआ था *आपने मोरीरिश पहुच कर धोषणा करके कहा कि में यहां। शिष्य बनाने नही नेता तैयार करने आया हु*।
*शिव सागर राम गुलाम ने स्वामी जी का शिष्यत्व स्वीकार किया व इनके नेतृत्त्व में मोरीरिश में स्वामी जी ने एक लाख रामायण , एक लाख गीता , छह लाख हनुमान चालीसा मोरीरिश के घर घर पहुचा कर पूरे देश मे अलख जगा दी । जगा हुआ देश भला कब तक गुलाम रहेगा आपके नेतृत्व में देश। आजाद हुआ* ।
*स्वामी जी को राष्ट्र पिता का दर्जा दिया गया*
। आर्युवेद को राजकीय मान्यता मिली । आपने अफगानिस्तान में स्वामी कृष्णा नंद पाठशालाओं की स्थापना की । स्वामी धर्म प्रचार हेतु अरब देशों में भी गए थे जहां भगवा वस्त्र धारण कर कोई जा नही सकता था ।
तो स्वामी जी ने सफेद वस्त्र पहन कर कोई जा नही सकता तो स्वामी जी ने स्वेत वस्त्र धारण किये तथा वहां सेवा केंद्रों की स्थापना की आज लगभग 60 से 65 देशो में इनके सेवा केंद चल रहे है ।
सन्दर्भ- चारण दर्पण
सुल्तान सिंह देवल
चारणाचार पत्रिका, उदयपुर
राजस्थान की धरती सदैव ही विर प्रसूता रही है । यहां किसी भी व्यक्ति के जन्म की सार्थकता सिद्ध करने की कसौटी है ।
*माई एड़ा पूत जण के दाता के सुर*
*नितर रेजे बांजड़ी , मती गवाज़े नूर*
इसी कसौटी पर सो प्रतिशत खरे उतरने वाले महापुरुषो में में एक महान आत्मा 1900 ई. में दासोड़ी ग्राम में श्री दौलतसिंह जी रतनु के घर श्री मति उमा बाई की कोख से देवीसिंह नाम के रुप में जन्म हुआ
शुरु से ही देवीसिंह जी रतनु को समाज सेवा एवम संगठन निर्माण में ने बड़ी रुचि थी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी (काशी )से अध्ययन पूर्ण कर आप समाज को जगाने में लग गए
आपका सम्पर्क राजस्थान की तत्कालीन सभी रियासतो से था । आपकी बेबाकी से अन्याय के विरुद्ध बोलना व लिखना तथा राजा महाराजाओ को तथा जन सामान्य को कुरीतियो के विरुद्ध जगाना का कार्य सतत चलता रहा
उस समय स्वतन्त्रा संग्राम चरम ओर था तब आपका सम्पर्क ठाकुर केशरी सिंह जी बारहठ , खरवा ठाकुर गोपाल सिंह जी , प्रताप सिंह जी , रास बिहारी बोस , आदि से हुआ तथा सेठ जी से आपका प्रगाढ़ परिचय रहा । आप जोशी मठ से सन्यास ग्रहण कर स्वामी कृष्णा नन्द जी सरस्वती बन गए ऋषिकेश में कोढियों की सेवा करने लगे । उसी दरमियान आपकी मुलाकात वर्धा आश्रम में महात्मा गांधी से हुई तो गांधी जी इनकी सेवा से बड़े प्रभावित हुए ।
गांधी जी ने इन्हें राष्ट्र भाषा प्रचार का कार्य सोपा
इस कार्य हेतू आपने पूरे भारत का भर्मण किया तत्पश्यात आप *नेपाल पहुचे थे वहां पर अपने संस्था गत रूप से सेवा कार्य सूरु किया । वहां आपको आँख देने वाला बाबा के नाम से पुकारा जाने लगा । वहां से अफ़्रिका देशो केनिया , जांबिया , धाना , नाइजेरिया , ट्रांसवाल, आदि स्थानों पर आपने दिनबन्धु समाज ' *हयूमन सर्विस ट्रस्ट* ' *की स्थापना की*।
*पूर्व राष्ट्रपति श्री वी . वी . गिरी ने कहा "स्वामी कृष्णा नंद जी सरस्वती ' भारतीय संस्कृति के दूत है*
आप विश्व भर्मण के क्रम में लंदन गए वहां हेरो में स्वामी कृष्णा नंद आश्रम की स्थापना की वहा पर ' *मिल्स ऑन विल्स* ' कार्यक्रम से भूखो को भोजन दिलाया
वहां से आप अमेरिका गए वहां के *राष्ट्रपती केनेडी व रुजवेल्ट आप से बहुत प्रभावित हुए वहां ह्यूमन सर्विस ट्रस्ट की स्थापना की। वह के अखबार में आलेख छपा पेनीलेस बट बेरी रिच सेंट ' आपने वहां सयुक्त राष्ट्र सभा को भी सम्बोधित किया* ।
1967 ई. में आप मोरिशस पधारे , यहां पर तक फ्रांसीसी सरकार के जुल्म से आहत भारतीय मूल के लोग बड़े दुखे थे , स्वामी जी का अवतरण ही दुख निवारण के लिए हुआ था *आपने मोरीरिश पहुच कर धोषणा करके कहा कि में यहां। शिष्य बनाने नही नेता तैयार करने आया हु*।
*शिव सागर राम गुलाम ने स्वामी जी का शिष्यत्व स्वीकार किया व इनके नेतृत्त्व में मोरीरिश में स्वामी जी ने एक लाख रामायण , एक लाख गीता , छह लाख हनुमान चालीसा मोरीरिश के घर घर पहुचा कर पूरे देश मे अलख जगा दी । जगा हुआ देश भला कब तक गुलाम रहेगा आपके नेतृत्व में देश। आजाद हुआ* ।
*स्वामी जी को राष्ट्र पिता का दर्जा दिया गया*
। आर्युवेद को राजकीय मान्यता मिली । आपने अफगानिस्तान में स्वामी कृष्णा नंद पाठशालाओं की स्थापना की । स्वामी धर्म प्रचार हेतु अरब देशों में भी गए थे जहां भगवा वस्त्र धारण कर कोई जा नही सकता था ।
तो स्वामी जी ने सफेद वस्त्र पहन कर कोई जा नही सकता तो स्वामी जी ने स्वेत वस्त्र धारण किये तथा वहां सेवा केंद्रों की स्थापना की आज लगभग 60 से 65 देशो में इनके सेवा केंद चल रहे है ।
सन्दर्भ- चारण दर्पण
सुल्तान सिंह देवल
चारणाचार पत्रिका, उदयपुर