क्षत्रिय चारण

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क्षत्रिय चारण

सोमवार, 13 अगस्त 2018

देविसिंह रत्नु (स्वामी कृष्णानंद सरस्वती)

*यदि किसी एक ही इंसान में महात्मा गांधी व विवेकानंद जी को देखना है तो वह है दसोड़ी के स्वामी कृष्णानन्द सरस्वती*

राजस्थान की धरती सदैव ही विर प्रसूता रही है । यहां किसी भी व्यक्ति के जन्म की सार्थकता सिद्ध करने की कसौटी है ।

*माई एड़ा पूत जण के दाता के सुर*

*नितर रेजे बांजड़ी , मती गवाज़े नूर*

इसी  कसौटी पर सो प्रतिशत खरे उतरने वाले महापुरुषो में में एक महान आत्मा 1900 ई. में दासोड़ी ग्राम में श्री दौलतसिंह जी रतनु के घर श्री मति उमा बाई की कोख से देवीसिंह नाम के रुप में जन्म हुआ  

शुरु से ही देवीसिंह जी रतनु को समाज सेवा एवम संगठन निर्माण में ने बड़ी रुचि थी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी (काशी )से अध्ययन पूर्ण कर आप समाज को जगाने में लग गए
आपका सम्पर्क राजस्थान की तत्कालीन सभी रियासतो से था । आपकी बेबाकी से अन्याय के विरुद्ध बोलना व लिखना तथा राजा महाराजाओ को तथा जन सामान्य को कुरीतियो के विरुद्ध जगाना का कार्य सतत चलता रहा
उस समय स्वतन्त्रा संग्राम चरम ओर था तब आपका सम्पर्क ठाकुर केशरी सिंह जी बारहठ , खरवा ठाकुर गोपाल सिंह जी , प्रताप सिंह जी , रास बिहारी बोस , आदि से हुआ तथा सेठ जी से आपका प्रगाढ़ परिचय रहा । आप जोशी मठ से सन्यास ग्रहण कर स्वामी कृष्णा नन्द जी सरस्वती बन गए ऋषिकेश में कोढियों की सेवा करने लगे । उसी दरमियान आपकी मुलाकात वर्धा आश्रम में महात्मा गांधी से हुई तो गांधी जी इनकी सेवा से बड़े प्रभावित हुए ।
गांधी जी ने इन्हें राष्ट्र भाषा प्रचार का कार्य सोपा
इस कार्य हेतू आपने पूरे भारत का भर्मण किया तत्पश्यात आप *नेपाल पहुचे थे वहां पर अपने संस्था गत रूप से सेवा कार्य सूरु किया । वहां आपको आँख देने वाला बाबा के नाम से पुकारा जाने लगा । वहां से अफ़्रिका देशो केनिया , जांबिया , धाना , नाइजेरिया , ट्रांसवाल, आदि स्थानों पर आपने दिनबन्धु समाज ' *हयूमन सर्विस ट्रस्ट* ' *की स्थापना की*।

*पूर्व राष्ट्रपति श्री वी . वी . गिरी ने कहा "स्वामी कृष्णा नंद जी सरस्वती ' भारतीय संस्कृति के दूत है*

आप विश्व भर्मण के क्रम में लंदन गए वहां  हेरो में स्वामी कृष्णा नंद आश्रम की स्थापना की वहा पर ' *मिल्स ऑन विल्स* ' कार्यक्रम से भूखो को भोजन दिलाया

वहां से आप अमेरिका गए वहां के *राष्ट्रपती केनेडी व रुजवेल्ट आप से बहुत प्रभावित हुए वहां ह्यूमन सर्विस ट्रस्ट की स्थापना की। वह के अखबार में आलेख छपा पेनीलेस बट बेरी रिच सेंट ' आपने  वहां सयुक्त राष्ट्र सभा को भी सम्बोधित किया* ।

1967 ई. में आप मोरिशस पधारे , यहां पर तक फ्रांसीसी  सरकार के जुल्म से आहत  भारतीय मूल के लोग बड़े दुखे थे , स्वामी जी का अवतरण ही दुख निवारण के लिए हुआ था *आपने मोरीरिश पहुच कर धोषणा  करके कहा कि में यहां। शिष्य बनाने नही नेता तैयार करने आया हु*।

*शिव सागर राम गुलाम ने स्वामी जी का शिष्यत्व स्वीकार किया व इनके नेतृत्त्व में मोरीरिश में स्वामी जी ने एक लाख रामायण , एक लाख गीता , छह लाख हनुमान चालीसा  मोरीरिश के घर घर पहुचा कर पूरे देश मे अलख जगा दी । जगा हुआ देश भला कब तक गुलाम रहेगा आपके नेतृत्व में देश। आजाद हुआ* ।

*स्वामी जी को राष्ट्र पिता का दर्जा दिया गया*

 । आर्युवेद को राजकीय मान्यता मिली । आपने अफगानिस्तान में स्वामी कृष्णा नंद पाठशालाओं की स्थापना की । स्वामी धर्म प्रचार हेतु अरब देशों  में भी गए थे जहां भगवा वस्त्र धारण कर कोई जा नही सकता था ।
तो स्वामी जी ने सफेद वस्त्र पहन कर कोई जा नही सकता तो  स्वामी जी ने स्वेत वस्त्र धारण किये तथा वहां सेवा केंद्रों की स्थापना की आज लगभग 60 से 65 देशो में इनके सेवा केंद चल रहे है ।

सन्दर्भ- चारण दर्पण

सुल्तान सिंह देवल
चारणाचार पत्रिका, उदयपुर

विर योद्धा नरुजी कविया

*!!सुप्रसिध्द यौध्दा नरुजी कविया !!*


*नरूजी कविया सुप्रसिध्द भक्त-वर कवि सिध्द अलूनाथ जी कविया के बङे सुपुत्र थे, नरुजी एक उत्कृष्ट कोटि के यौध्दा थे,बादशाह अकबर ने सन 1587 में मुगल साम्राज्य के सुदुर पूर्व के प्रान्तों में बंगाल, बिहार, उङीसा के अफगानों एंव स्थानीय शासकों के निरन्तर होने वाले उपद्रवों का दमन करनेहेतु आमेरके कछवाहा शासक मानसिंह को सर्वोच्च सेनापति और उच्च सुबेदार के पद पर नियुक्त किया था, मान सिंह ने अपने रण कौशल तथा सूझ-बूझ से अपने कर्तव्य को पूर्णकिया !!*

*नरू जी कविया मानसिंह की कछवाही सेनाके एक प्रतिष्ठित यौध्दा के रूपमें इस सेना के अभियान में साथ में थे, अफगान कतलू खां लोहानी ने उङीसा का शासन हस्तगत कर उसने पुरी के राजा को हरा कर प्रसिध्द जगन्नाथ मंदिर पर भी कब्जा कर लिया था ! उसने वहां पुजारियों तथा तीर्थ यात्रीयों पर तरह-तरह के अत्याचार करने प्रारम्भ कर दिए ! अतः मानसिंह ने अपने कुंवर जगतसिंह के नेतृत्व में एक बङी सेना कतलूखां के विरूध्द भेजी थी, यह घटना अप्रेल1590 की है ! उस सेना में जिन विश्वासपात्र सेनानायकों को कुंवर के साथ भेजा गया, उनमें नरूजी कविया प्रमुख थे !!*

*अफगानों ने शाही सेना पर भीषण अति भीषण आक्रमण कर दिया 21मई1590 को सूर्यास्त के समय के प्रहार को झेलने में मुगल सेना भी असमर्थ रही और उसी उसके पांव उखङ गए ! परन्तु कुछ वीरों ने बङी वीरता के साथ शत्रुऔं का सामना करते हुए,अपने प्राणों का बलिदान किया जिनमें चारण नरूजी कविया एंवं राठौङ महेश दास जी बीका प्रमुख थे ! इन दोनो महावीरों ने अपने प्राणों की आहूति देकर जगतसिंह की रक्षा की ! नरू जी कविया ने असाधारण वीरता दिखाते हुए सम्मुख युध्द में अपने भाले द्वारा कतलू खां को मारते हुए स्वंय भी वीर गति को प्राप्त हो गए ! नरूजी की इस अलौकिक अदभूत वीरता पूर्वक प्राणौ उत्सर्ग की प्रशस्ति में महाराजा श्रीपृथ्वीराज जी राठौङ का यह डिंगऴ गीत प्रसिध्द है !!*              

*!! गीत !!*

*जां लागै दुखे नहीं सजावौ,*
*बीजां तजिया जूंझ बंग !*
*मोसै नरु तणै दिन मरणे,*
*अण लागां दूखियो अंग !!*

*पांव छांडता चढतां पैङी,*
*ईख्यो अलू सुतण निज अंत !*
*अण लागां दुखेवा आंणै,*
*दीठा नह फूटा गज दंत !!*

*अनराईयां हेमकर ओपम,*
*रहियो रूतो महारण !*
*कूंता हूंत मेहणी कवियै,*
*तद तीखा जाणांय तण !!*

*कतलू सरस बदंता कंदक,*
*टऴ्यो नहीं सुरातन टेक !*
*साहे खाग नरु पहुंतो श्रग,*
*ओजस बोल न सहियो ऐक !!*


*यह वीर गीत उस समय के प्रसिध्द कवि व यौध्दा पृथ्वीराज जी राठौङ जो कि उस समय में मौजूद थे व उस समय की सारी घटनाऔं के उपर गहरी सूझबूझ रखते थे उनके बनाने से इस गीतकी विश्वसनियता अधिक प्रामाणिक होती है, पृथ्वीराज जी ने महाराणा प्रतापसिंह जी पर भी बहुत काव्य लिखा था !!*

राजेंन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!

ठाकुर दयालदासजी सिंहढायच

!! ठाकुर दयालदास जी सिंहढायच !!

दयालदासजी चारण जाति री सिंहढायच शाखा में जन्मिया अनमोल रतन हा, अर इतिहास व साहित री महत्ती सेवा कीधी, राजस्थान रा उगणींसवी सदी रा अनेक नामी ख्यातकारां में दयालदासजी रो नाम हरावऴ पांत में आवै है, दयालदास जी ऐक इतिहास री ख्यात लेखक ही नहीं हा वे ऐक सुकवि अर सटीक टीकाकार भी हा !

उणां आपरे लेखन रे सागै बीकानेर राज्य री बहियां, वंशावऴियां, पट्टा परवाना एंव शाही फरमाना ने भी जुगत सूं जचाय अर घणी सूझबूझ अर लगन सूं करियो !!

दयालदास जी तीन ख्यातां है !
(1) राठौङां री ख्यात सन 1852 ई. !
(2) ख्यात देशदर्पण सन 1870 ई. !
(3) आर्याख्यान कल्पद्रुम 1877 ई. !

ख्यातां सगऴी गद्य रूप में रचियोङी है पंवार वंश दर्पण पद्य रूप में पिरोयेङी है
इण सारी लाखीणी लेखणी री रचनावां टाऴ भी सिंहढायच रो सांगोपांग सृजन कम सूं कम बीसेक फुटकर गीतां रे रूप में मिऴै है !!

जोधपुर राज्य मे सिंहढायचो री जागीर मोघङा सूं आयर बीकानेर राज्य रा कुबिया ठिकाने मे आबाद हुया सिंहढायच चारणां रे घरै ठाकुर खेतसिंह जी रे पुत्र रूप में विक्रमी सम्वत 1855 में दयालदास जी रो जन्म हुयो, ठाकुर खेतसिंह उण समै प्रतिष्ठित जागीरदार चारण घराणैं री गिणती में आवता हा !!

डिंगऴ अर राजस्थानी साहित रा मर्मज्ञ दयालदासजी बीकानेर रियासत रा तीन शासकां महाराजा रतनसिंह, महाराजा सरदारसिंह, महाराजा डूंगरसिंह आं तीनां रा राजकाज में साथै रैया अर योद्घा, राजकवि, ख्यातकार, दरबारी मंत्री इतिहासकार अर कुशल कूटनितिज्ञ रे रूप में आपरी महता रौ निरूपण करियो ! इणमें ऐक बात घणी ईधकी है कि आपरै ख्यात लेखण में कहाणी किस्सां री बजाय बीकानेर राज रा आरम्भ सूं आखिर बरसां तांई रो जीवन्त अर जागृत लेखन लिखियो, जिको मूंढै बोलतो सरस अर रूचिकर इतियास है !

दयालदासजी सिंहढायच पर सुरसती देवी री अनहद कृपा ही, उणरो सुरसती सिमरण रो ऐक दोहो जिणमें मातेश्वरी नें अरदास कर सुरसत रे साथे धनदा देवी लिछमी री कृपा भी सुरसती सूं अनुषंशा करने करवाय लीवी !!

वीणां धारद कर विमल,
भव तारद सुर भाय !
हंसारूढ दारद हरो,
शारद करो सहाय !!


राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!

बुधवार, 8 अगस्त 2018

मेवाड प्रधानमंत्री महामहोपाध्याय श्यामलदासजी दधवाडीया(चारण)

*कविराजा श्यामलदास जी दधिवाडिया द्वारा शिक्षा हेतु सद्प्रयास  और मेवाड़ चारण समाज के गौरवशाली प्रसंग*
✒🌸🌸🌸🌸🌸🌸

 विलक्षण देविपुत्र चारण समाज में प्रतिभा तो मातेश्वरी की अटुट कृपा से  जन्मजात होती है मगर शिक्षा का व्यापक  ज्ञान व्यवस्थित रूप से जिनको मिला उन्होंने दुनिया में नाम दर्ज करवाया।
राजस्थान में शिक्षा का सामुहिक प्रयास सर्वप्रथम उदयपुर में कविराजा शामलदास जी के प्रयासों से सम्वत 1937 में हुआ। कविराजा शामलदास के गुणों से महाराणा सज्जनसिंह जी इतने प्रभावित थे कि वे राजपूत जाति व राजपूत राज्यों के लिए समस्त चारण जाति को ईश्वरीय देन समझने लगे। उनके मन में यह दृढ़ हो गया की राजपूत जाति को पतन से रोकना है तो पहले चारणों को सुशिक्षित करना चाहिए। इनसे बढ़कर निर्भिक सलाहकार,पूर्ण विश्वस्त और शुभचिंतक अन्य कोई नहीं हो सकता।इस बात को वे जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह जी और महाराजा कृष्णगढ़ शार्दुल सिंह जी को अनेक बार कहा करते थे।इसी विश्वास व संस्कार के कारण व  कविराजा की प्रार्थना पर महाराणा सज्जनसिंह जी ने क्षत्रियों की वार्षिक आमदनी का दशमांश हिस्सा जिला हाकिमों की मारॅफत मंगवा कर चारण पाठशाला के नाम से मदरसा बनवा कर उसमें चारणों के लड़कों की पढ़ाई में खर्च करने का निश्चय किया। तदनुसार सम्वत 1937 (सन 1880)में पाठशाला और छात्रालय कायम हुआ उसमें छः मास्टर नियत किए गए,साथ में नौकरों ,पठन पाठन की सामग्री, छात्रों का भोजन वस्त्र समस्त खर्च राज्यकोष से दिया जाने लगा, जब तक पाठशाला एवं छात्रावास का स्वतंत्र भवन नहीं बन तब तक उमराव सरदारों की हवेलीयों में काम चलाया जाता। सबसे पहले *सौदा बारहठों के गांव राबछा* में पहाड़ जी की हवेली में इसका श्री गणेश हुआ , जिसमें क्रांतिकारी केसरी सिंह जी बारहठ ने भी शिक्षा प्राप्त की थी।
प्रत्येक सोमवार को जहां महाराणा की इच्छा होती वहां चारण छात्रों सहित, बड़े बड़े साहित्यकारों विद्वानों के साथ सभा होती जिसमें साहित्य रसज्ञ ठाकुर मनोहर सिंह जी डोडिया (सरदारगढ़), स्वामी गणेशपुरी जी,डिंगल कब प्रतिनिधि महियारिया मोड़ सिंह जी विद्वर उज्जवल फतहकरण जी , शहर के अन्य कवियों के साथ महाराणा स्वयं सभाध्यक्ष पद पर आसीन रहते । यह व्यवस्था चार साल तक चली उस समय एक सौ से अधिक चारण छात्र एकत्रित हो चुके थे क्योंकि बालकों को लाने आ काम स्वयं कविराजा शामलदास जी करते थे।
 *ये दिन चारण जाति के लिए अहो भाग्य के थे।*
 परन्तु ईश्वर की सृष्टि में उलूक स्वभाव आदमी भी उत्पन्न होते ही है। इतनी सुविधाएं होने पर भी पाषाणजीवन अनेक चारण अपने बालकों को नहीं भेजते थे।विवश होकर कविराजा जिला हाकिमों द्वारा पुलिस व जागीरी सवार भेजकर लड़कों को पकड़वा मंगाते । उस समय का द्रश्य दु:ख और करूणा से भरा हुआ था। दुःख था चारणों के मुर्खतापूर्ण मोह पर व करूणा थी बालकों के रूदन को शतगुणित करने वाले घर के भीतर माता,भुआ,बहिन, पिता भाई दादा आदि के बूढ़ क्रंदन पर । बालक का एक  हाथ होता सवार के हाथ में व दुसरा हाथ होता पिता व अन्य परिजनों के हाथ में। इस प्रकरण में सहस्त्रों गालियां पड़ती कविराजा जी को, उनके घर वंश पर आग रखी जाती और रोम रोम में किड़े पटके जाते। कल्पना की जा सकती है कि किन विपरीत परिस्थितियों में चारण समाज में शिक्षा हेतु कविराजा ने अथक प्रयास किए।
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महेंद्र सिंह चारण