क्षत्रिय चारण

क्षत्रिय चारण
क्षत्रिय चारण

सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

दान शब्द की समज

🔴 *चारणो मे "दान"शब्द की समज*

चारण जाती मे व्यापकता से दैव प्रसाद के रूप मे पुत्र का नामकरण देव अथवा देवी के रूप मे करते है -हींगलाज,करऩी,आवड,शक्ति,देवी,पाबु,चालक,बांकल,खूबड आदी। साथ ही ईष्टदेव/देवी की उपासना से जन्मा पुत्र का नाम उन देव/देवी पर रखा जाता था परंतु जब उसके द्वारा दिया गया है ईस शब्द का प्रयोग व अभीप्राय नित्तान्त स्पष्ट करना आवश्यक था। ईस लीए एसे नामो के अंत मे 'दान' शब्द लगाना अनिवार्य था।

दान शब्द का प्रयोग राजपूत,जैन आदी भी करते आए है। (ईसके बहोत से ईतीहास संबधीत उदाहरण दीए जा सकते है)  ईस प्रकार दुसरी जातीयों मे देव आस्था से प्रेरित नाम के अंत मे देव/देवी द्वारा प्राप्त पुत्र को दान शब्द से बोला जाता था।
चारणो मे शक्ति की भक्ति अपनी चरमसीमा पर मुखरित रहेती है,ईस लीए उनके नाम शेंणीदान,चंडीदान,करणीदान,हींगलाजदान, ईत्यादी बहुतायत है।

नामकरण मे रुढी का प्रवाह होने पर कई चारणो ने निरर्थक नामो के साथ भी अनावश्यक रुप से 'दान' शब्द का प्रयोग आरंभ कर दीया। जो उनकी बडी भूल रही है। जैसे कालुदान,अर्जुनदान,भमरदान,तखतदान,महेन्द्रदान,जुगतीदान,बलवंतदान ईत्यादी। क्योकी ईन नामो का नामकरण किसी देव/दैवी अनुकंपा से जन्मे पुत्र का बोध नही कराता है , तब भला निरथर्क रुप से 'दान' शब्द को क्यो ठुंसा गया है ??? ईसी रुढी का यह परीणाम निकला की 'दान' शब्द का अभीप्राय शायद किसी से सदैव वस्तु दान मे लेना रहा होगा। अनभीज्ञ कुछ दुसरी जाती के लोग ईस रुढी को ईसी अर्थ मे लेते है।
  नाम के साथ ईसका कोई संबध नही रहता यदी एसा होता तो ब्राह्मण अपने नाम के अंत मे एसा क्यो नही करते?(जबकी 'दान' शब्द  17 वी सदी के बाद ही देखने को मीलता है)
एसा समजना मुर्ख लोगो की अज्ञानता का दोष है।

*"दान"* शब्द का प्रयोग सिर्फ और सिर्फ देव/देवी की अनुकंपा से जन्मे पुत्र के नाम के साथ ही कीया जाना चाहीए,दुसरे नामो के साथ नही ,ये बात हर चारण जरुर समजे।

ईसी लीेए सभी चारण सिरदारो से विनंती है की पहेले हमारी परंपराओ को बराबर समजो और फीर अच्छी तरह नीभावो।

संदर्भ:-
>चारण दिगदर्शन
>राजस्थानी भाषा और साहीत्य

*जयपालसिंह(जीगर बन्ना)सिंहढायच*
*ठी.थेरासणा*


> *एक विंनती है ईस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेर करे परंतु मेरे नाम के साथ छेडछाड न करे*

मारु चारण की शाखाए

⚔ *वर्तमान में राजस्थान में बसने वाले मारू चारणो की शाखाए*⚔

1 - चांचडा
2 - झीबा
3 - जगट
4 - बोग्सा
5 - खिडिया
6 - वणसूर
7 - सामोर
8 - मूहड़
9 - आशिया
10 - लालस
11 - आढा
12 - सांदू
13 - महिया
14 - महियारिया
15 - गांगणिया
16 - सौदा
17 - मीशण
18 - गेलवा
19 - सीलगा
20 - नांदु
21 - किनिया
22 - देथा
23 - सुरतानिया
24 - भादा
25 - सिंहढायच
26 - मेहडू
27 - गाडण
28 - बाटी
29 - रतनू
30 - देवल
31 - कविया
32 - झूला
33 - वरसडा
34 - थेहड
35 - धानडा
36 - टापरिया
37 - सुंगा
38 - कुंवारिया
39 - नरा
40 - तुगंल
41 - मिकस
42-टापरीया
43 - बारहट ( रोहडिया, पालावत, अमरावत, लखावत, अखावत, बिठु, देपावत, शंकरोत, आशावत,राजसिंगोत आदी )


गणपत सिंह चारण

चारण राजपूत परंपरा श्री आवड माता

*चारण-राजपूत परंपरा*

*श्री आवड माँ*

आठवी शताब्दी मे काठीयावाड के वल्लभी पुर नगर मे सउआ शाखा के चारण मामडजी रहते थे। लौद्रवा के राजा जसभांण परमार के समकालिक बताते हुए कहा जाता है कि जसभांण मामड़जी चारण का नित्य उठ कर मुंह देखा करता था । उसे किसी ने उलाहना दिया कि जसभांण जिसका तू नित्य उठ कर मुंह देखता है वह तो निःसंतान है ! इस उलाहने से दुःखी होकर मामड़ ने हिंगलाज देवी की पैदल यात्रा सात बार का संकल्प लिया । हिंगलाज देवी ने मांमड़जी के घर शक्ति अवतार लेने का वचन दिया और ये शर्तें रखीं- कि ‘इसको किसी के आगे उजागर न करना, अपनी पत्नी को पवित्रता से रहे, खखर वृक्ष का पालना बनाये -उसे लाल रंग से रंग कर घर के ऊपर लाल ध्वजा बांध दे, प्रति दिन उठ कर सात बार नाम का स्मरण करे ।’
और चारण मामड़जी और मोहवती के घर वि.सं. 808 चैत्र शुक्ल.....मंगलवार को  देवी भगवती/हिंगलाज ने आवड़ के रूप में अवतार लिया। ये सात बहिने जो सब देवियां मानी जाती हैं।आवड बाई , जोगड बाई , तोगड बाई , होल बाई , बीज बाई , सासाई, लगु बाई ( ’खोड़ियार’ )  इन्होंने आजीवन कौमार्यव्रत धारण किया था । एक मेहरखा नामक भाई था। आवड जी सबसे बडे थे। तत्कालीन सिंध के राजा ऊमर ने इनकी सुंदरता पर मोहित होकर इनसे विवाह करने का हठ किया किन्तु इन्होंने अपने चमत्कार व कौशल से उसे मार कर वहां भाटी वंश के क्षत्रियों का राज्य जैसलमेर(माड प्रदेश) स्थापित कर दिया । अतः *ये भाटी वंश की कुलदेवी है ।*इनके विषय में अनेक किवदंतियां व चमत्कार प्रसिद्ध है ।

 परमार-क्षत्रीय ऊमर सूमरा, जो कि सूमरों का अंतिम शासक था, इस्लाम धर्म में दीक्षित हो चुका था, को मारा। इसके अतिरिक्त सतलुज नदी की एक शाखा जो राजपुताने में ‘मीठा महरांण’ कहलाती थी को तीन चल्लू में पी डाला और वह मीठे पानी का समुद्र कहा जाने वाला ‘हाकड़ा’ मरूभूमि में परिवर्तित हो गया ।

-आवड़माता के विभिन्न रूपों में आशापुरा,स्वांगीयाजी,  बीजासण, तेमड़ाराय, गिरवरराय,चाळाराय, डूगरेच्यां, अर्बुदा,नागणेच्याआदि उनके 52 अवतार है।आवडजी और ईनके 52 अवतार  चारण,राजपूत, और भी बहोत सी जातीओ की कुलदेवी है ।

  ’आवड’ जी ने हाकड़ा नामक समुद्र का शोषण कियाथा । ’आवड’ जी ने हूण सेना नायक तेमड़ा नामक राक्षस को मारा था जिसके कारण ’तेमडेराय’ कहलाई , महाराजा तणु को तनोट स्थान पर दर्शन देकर ’तनोटराय’ कहलाई। घंटियाल नामक राक्षस को मारकर ’घंटियालराय’ कहलाई ,भादरिया नामक भाटी के आग्रह पर दर्शन देने पधारी इसलिए ’भादरियाराय’ कहलाई ,काले डूंगर पर बिराजने से ’कालेडूंगरराय’ कहलाई ,पन्ना मुसलमान की रक्षा करके ’पन्नोधरिराय’ कहलाई ,एक असुर रूपेण भेंसे को मारकर माँ ने उसे देग नामक बर्तन में पकाया था, इसलिए ’देगराय’ कहलाई। आवड जी सहित सातों बहनों के नदी में नहाते वक्त यवन राजकुमार नुरन द्वारा कपड़ो को छूने के कारण माँ आवड नागण का रूप धारण कर घर लौटी थी इसलिए ’नागणेची/नागणेच्या’ कहलाई ! राजस्थान में सुगन चिड़ी को ’आवड’ माँ का रूप माना जाता है !
 ’आवड’ जी इस पृथ्वी पर सशरीर 191 साल बिराजे थे ।

*जीगर बन्ना थेरासणा*

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

ठा.सा.नाथुसिंह जी महीयारीया

*श्री कृष्णपाल सिंह जी चहुंआण “राखी” का कविवर ठाकुर नाथूसिंहजी महियारिया(चारण) पर आलेख*

वीरत्व रै औजस्वी  कविवर ठाकुर साहब नाथूसिंह महियारिया रो नांव सुमरण करतां ई पारम्परिक वेशभूषा री ठठक में सजियोड़ी हेक ऐहडी भव्य अर विराट सख्सियत आंख्यां रै सामै उजागर हुय जावै है जिकै जीवण पर्यन्त मेवाड़ री अणमोल क्षात्र-संस्कृति नै आस्था अर गरब सूं जीवी है। वास्तव में वै क्षात्र -संस्कृति रा उद्घोषक, संवाहक अर प्रतिष्ठापक हां।

ठाकुर साहब नाथूसिंह चारण जाति री महियारिया खांप रा लाडेसर हा। महियारिया उपजाति रो आद-पुरस् मांडणजी गुजरात छोड़ मेवाड़ में आय बसग्या हा। मेवाड़ रै महाराणा उवां नै महियारी गाँव री जागीरी बख्सीस में दी ही। केसरिया मांडणजी तद् सूं महियारिया बणग्या। उणरी बाइसवीं पीढ़ी में वेलाजी विया। वेलाजी री सुन्दरबाई महियारिया री कुलदेवी रै रूप में पुजीजै।

महियारिया कुळ में घणा ई जोधा अर कवि जलम्या हां, जिकां तलवार अर कलम रै बळबुते खुद आपरौ इतिहास बणायौ है। मांडण कुळ भासकर देवीदास महियारिया पांच लाखपचाव दे’र “जग दातार” रो खिताब पायो हो। कविवर नाथूसिंह रा परदादा किसनदास, उदयपुर रै प्रसिद्ध जगदीस मिंदर नै जोयडा गांव समरपित कियो हो अर लालघाट माथै चारभुजा जी रो हेक मिंदर पण बणवायो हो। दादाजी जसकरण भी घणो जस कमायो। जसजी रै तीन बेटा में पूछेट हो ठाकुर केसरीसिंह, ठाकुर नाथूसिंह ईण ठाकुर केसरीसिंह रै घरां जलम लीधो हो।

ऩाथुसिंह जी रा पिताश्री पण ड़िंगळ रा नामी-गिरामी कवि हां। ईण तरां कवि री वंश -परम्परा घणी उजळी रैयी है।

ठाकुर नाथूसिंह महियारिया रो जलम सवंत 1948 वि. में भाद्रपद री क्रस्णां-आठम नै रोहिणी नखत में सुबै आठ बज्यां हुयौ हो। उण री माँ रामकंवर बाई, इतिहास प्रसिद्ध कवि दुरसा आढ़ा रै वंशज ठाकुर चमनसिंह (साया रौ खेड़ो) री धिया ही। कवि रै जलम रो नांव विजयसिंह हो, पण उण रा पिताजी उण नै नाथूसिंह नांव दियो हो। कवि जद फगत नो बरस रो हो तद् उण रा पिताजी रो देहांत हुग्यो हो। मां रो सरगवास होयो जद कवि तेरै बरस रो ई हो।

ठाकुर साहब री अल्पायु में ई पिता रो सायो उठ जावण सूं उण रो लालण पालण मातुश्री री देख रेख में ई वियो हो। पिताजी रै जीते थके वो फगत तीजी धोरण ताई भणिज पायो। पिताजी री मौत रै पछै माँ उण नै ले’र बांदरवाडा गाम में आयगी ही। गांव में भणाई री काई वैवस्था कोनी ही, जिण सूं आगै नेम सूं भणाई कोनी हुय सकी। पण ज्ञान रै सारूं अध्य्यन री काई खास जरुरत कोनी हुया करै। कवि री आंख्यां अर दिमाग हरमेस खुला रैवता अर उण रै माध्यम सूं वो भरपूर ज्ञान हासळ करयौ हो। ओ सच है की काव्य शास्त्र रो विधिसर अध्य्यन, मनन अर अभ्यास कोनी करयौ, पण आपरी विलक्षण ईच्छा सगति सूं जुनां गीतां, दूहा आदि रै माध्यम सूं सिरजण-कला सीख लीधी ही अर उण रै मुताबिक काव्य रचना सरू कर दीधी ही। उण री लय अर गति कवि रै मानस में हेक संस्कार रै रूप में अंकित हुयगी ही। छंद हाफैई लय रै आधार माथै बण जाता। आ ई ही उण री शिक्षा अर आ ई ही उण री दीक्षा।

ठाकुर नाथुसिंह रै समै बाळ-ब्याव री प्रथा हुवण सूं उण रौ ब्याव पण अल्पायु में ई सवंत 1957 में चैत वदी दूज नै जीतावास रै ठाकुर दलेलसिंह आशिया री बेटी फूलकंवर बाई रै सागै वियो हो। कवि रो दूजो ब्याव कड़िया गाँव रै ठाकुर रामसिंह री बेटी दाखकंवर बाई सूं वियो हो, पण उण रो बेगोई देहांत हुग्यो हो। ठाकुर साहब रै तीन बेटा अर हेक बेटी हुई, मोहन सिंह, प्रताप सिंह, महताब सिंह अर सुभाग बाई। कवि रै जीवण काळ में ई मोबी पूत मोहनसिंह अर बेटी रो सुरगवास हुयग्यो हो। पुत्र मोहन सिंह राजस्थान सरकार में प्रशासनिक अधिकारी हा अर उवां कवि री “वीर सतसई” रै सम्पादन में मबताऊ सैयोग करयो हो। कवि री धर्म पत्नी रो अचाणचक सन् 1955 ई में देहांत हुवण सूं कवि-हिरदै माथे भारी आघात लागो हो, उवां आपरी काव्य- कृति “हाड़ी शतक” पत्नी नै समरपित कर उण नै काव्यजंलि प्रदान करी हीं।

ठाकुर साहब ने काव्य सिरजण री पैली सीख उण रै पिताश्री सूं मिली ही, इण कारण कवि आपरो प्रथम गुरु उणां नै ई मानतो हो। कवि रै पत्रा -पानडां में हेक दूहो लाधो हो —

शिशुपण महीं सिखवियो, बणै दूहा विख्यात।
कुंकर हूं उरण कहो, तो सूं केहर तात।।

करजाली (मेवाड़) महाराज लक्ष्मण सिंह रा लघु भ्राता राजऋषि महाराज चतुर सिंह बावजी, कवि उण रै प्रति कृतज्ञता रा भाव कई ठौर परगट करया है। बावजी रो बैकुंठ वास हुयौ जद कवि उणां री प्रशस्ति में अनेक दूहा-गीत लिख गुरु नै सिरधा – सुमन अरपित किया हां। बानगी है–

हे चातुर आतुर हुयो, थूं हर भगत अथग्ग।
नहं जातो आतो निहच, सामो आप सुरग्ग।।

भारत रा पूर्व राष्टपति राजेंद्र प्रसाद जद उदैपुर पधारयां हां तो हल्दीघाटी रै चेतक चबूतरे माथै ठाकुर साहब उणां नै “वीर सतसई” रा कई खास खास दूहा सुणायां हां। काव़्य-पाठ सुण’र इत्ता प्रभावित विया हा कै उवां फेरु ड़िंगळ कविता श्रवण सारूं कवि नै राष्टपति भवन आवण रो मान भरियो न्युतो दिया हो। नाथुसिंह ईण छिणां नै पण आपरी लूंठी उपलब्धि मानता हां।
कवि रो खास दूहो-

हसती हौदै देखियां, तोरण चंवर ढुलन्त।
सोहै उण बिच सौगुणा, रण कट पड़ियां कंत।।

नाथुसिंह  महियारिया बोत निडर हा अर खरी खरी सुणावण में वै कदै ई नीं चूकता। उण रै हेक दुहे सूं देवगढ़ रावजी रो मदिरा पान छुड़ा दियो–

थां कतरा त्यागी हुवा, तज दीधो थां राज।
आओ चुंडा देखवा, (ई) दारू तजै न आज।।

कवि फगत आपरै काव्य में ई कायरां नै प्रताड़ित कोनी किया, बल्कि बौवार में पण इस्यो कर बतायो है। कवि री कथनी अर करणी में कोई भेद कोनी हो। रियासत विलीनीकरण रै दिनां में कवि सगळा राजावां नै चूड़ियाँ अर चुटणीं रो हेक-हेक दूहो मेल्यो हो। बानगी रूप में बूंदी नरेश री चुटणीं अठै प्रस्तुत है—

हाडो तो तिल-तिल हुवो, नकली बूंदी काज।
हिक चीरो खायां बिना, दीनी असली आज।।

कविवर महियारिया देवी करणी रा सुरसती रा उपासक हां “करणी शतक” उण री देवी भगति रो ई प्रतीक है। कवि आपरै गले में करणी जी रो सोनलियो “नावां ” सदीव धारण किया रेता। जद काव्य पाठ रै दौरान किणी दूहै के छंद री लोग बाग़ सरावणां करता के दाद देता अथवा वाह वाही करता तो वै झठ सूं “नावां” नै बारै निकाल आंख्यां सूं परस कराता। आणद रै छिणां में कवि कदै कदै कहया करता —

अन धन दिनों मोकळो, दीनो जस परिवार।
मरणो मनचायो दहै, तो करता बळिहार।।

कवि री सगळी इच्छावां भगवान् पूरी करी ही, पण मनवांछित मौत वाळी साध पूरी कोनी हुई। वै ऐहड़े सुख-सम्रद्धि वाळै वातावरण में आपरै हरिये-भरिये परवार रै बीच शांति सूं मरणो चावता। पण मनचायो मरणो उवां नै नसीब कोनी वियो। कवि रा लारला किंक बरस काफी कस्टां में बित्यां हां। उण नै उपेक्षित अर हेकलु जीवण जिवणो पड्यो। लोगां कवि नै आपरी हवेली में टुट्योडे मूढै माथै हैकळो बैठो आंसू ढळकावतो देख्यो हो। ओजस्वी कवि सचमुच दया रो पात्र लागवां लागो हो। बूढ़ापै में धरम-पत्नी री याद में अक्सर रोवता रैता।

विधना ऐहडी खोटी करी कै कालांतर में उण री प्रिय हवेली हाटां बिकगी। उण रै सुखी जीवण माथै दुखां री गैरी काळख पुतगी। घर में तंगी, पण माठै कवि आपरी हटक कोनी छोडी। लारलै दिनां घणी मुसकळ सूं वै आपरै बेटै सागै रैवणो सरूं कियो हो। छेवट उठै ई सन 1973 ई में कवि री ठाठदार जीवण-जात्रा रो अंत वियो हो अर वै अणत जातरां रा मारगु बणग्या हा। लोग बतावैं है कै ड़िंगळ रै इण महान कवि री छैली जातरां में इण्या-गिन्यां लोग ई सामल विया हा। नी सोग-सभावां अर नी सिरधा-सुमन रो अरपण। हेक महान युगचारण् कवि रो इस्यो करुणामय अंत निस्चै ई सामाजिक-सोच री खोखळ नै उजागर करै है।

ठाकुर नाथुसिंह जी री काव्य-कृतियां
1. वीर सतसई
2. हाड़ी शतक
3. झालामान शतक
4. गांधी शतक
5. करणी शतक
6. कश्मीर शतक
7. बा-बापू अर फुटकर रचनावां…

ठाकुर नाथुसिंह रो “हाड़ी शतक” हेक प्रंससापरक काव्य-कृति जरूर है, पण ईण में भी वीरत्व री स्तुति ई कवि रो अभीष्ट है।

“हाड़ी शतक” रो कथानक मेवाड़ री हेक लोक-चावी गाथा माथै आधारित है। सलूम्बर रो चुण्डावत सरदार जिण दिन हाड़ी राणी नै परणीज घरां आ वै है, उणिज दिन महाराणा रो जुद्ध-नुंतों उण नै मिळे है। ब्याव रा कंकण खुलण सूं पैलां ई उण नै जुद्ध में जावणो पड़ै है। रणखेत री दिस बईर हुवण री वेळा चुण्डावत रावत नवी-नवेळी दुलहन रै मोहवश आपरै सेवक नै हाड़ी राणी खनेँ भेज्यौ अर उण सूं प्रेम-निसाँणी लावण रो कहयो। वीरत्व री देवी हाड़ी राणी तत्काल ताड़ लियौ के रावत रो मन आपरी गोरड़ी री प्रित में सागिडो उलझयोडो लखावै है। उवै सोच्यो कै जे प्रीतम री मोह-डोर उण सूं यूई बन्धयोडी रैवैला तो वो आपरौ करतव निच्सै ई निभा कोनी सकै। जे ऐहडो वेग्यौ तो अनरथ हुय जावैला। धणी नै निसाणी तो भिज्वावणी ही, सेवक उडिकतो उभौ हो। हाड़ी राणी हेक छिण में निरणय लियो अर तलवार रै हेक झटकै सूं आपरौ माथौ बाढ़ उण नै थाळ में सजाय चूंडावत सरदार नै भेज दियो। ईण अनूठी अर विचित्र निसाँणी नै लखताई रावत उण रै मांयलो गूढार्थ समझ ऐकर तो अपराध-बोध अर सरम सूं घणो विकल वियो, पण दूजै ई छिण वो दुनै उच्छाव सूं बईर हुयग्यो। रणभूमि में पराक्रम रा अचरजकारी चमत्कार दिखाया अर छेवत वीरगत नै प्राप्त वियो।

ठाकुर साहब री नजर में हाड़ी-राणी रो अमर त्याग, लौकिक-अलौकिक सगळा त्यागां सूं घणो डिघो है। सहनाणी सीताजी ई भिजवाई ही अर हाड़ी राणी भी, पण दोनूं में श्रेष्टतर तो हाड़ी राणी रीज है–

हाड़ी सहनांणी मंही, सिर मेल्यो जिण वार।
चूड़ामणि सीता तणी, वारूं बार हजार।।

इतरो ई क्यूं, जगत-जननी पारवती नै पण हाड़ी राणी रै मरणोपरांत सुख-सुभाग रै आगळ कैलास रा सरगाउ ठाट-बाट फीका लागै है 

चारण राजपूत परंपरा

*चारण राजपूत परंपरा*

चारणो के बारे में जोधपुर(मारवाड) महाराजा मानसिंह जी चारण राजपूत सबंध के वीषय मे लीखते है-

          ।।दोहा।।
*चारण,भाई छत्रियां।जां घर खाग तियाग।।*
*खागों तीखी बायरा। ज्यां सू लाग न भाग।।*
     
          ।।छप्पय।।
*जीण पृथ्वी मे गंध। पवन मे जे सुपरसण।*
*सीतळ रस,जळ साथ।अगन मांही ज्यूं उसण।।*
*शून्य मांही ज्यां सबद। सबद मे अर्थ हलेस्वर।*
*पिंड मांही ज्या प्राण।प्रांण में ज्यां परमेश्वर।।*
*रग-रग ही रगत छायौ रहै। देह विषय ज्यां डारणां।*
*क्षत्रियां साथ नातौ छतौ। चोळी दांमण चारणां।।*

अर्थ :- "जीस प्रकार पृथ्वी के साथ सुगंध,पवन के साथ स्पर्श का ग्यान,पानी के साथ रस की शीतलता जैसे अग्नी के साथ उष्णता,शून्य मे विलीन शब्द ध्वनी,जैसे शब्द के साथ उसमे अर्थ बोध पिण्ड में जैसे प्राण है और प्राण के साथ परमेश्वर । जीस प्रकार सम्पूर्ण शरीर के साथ रक्त का सम्बन्ध है।उसी प्रकार राजपूतो के साथ चारणो का चोली दामन का तदात्म्य सम्बन्ध है।"

*जयपालसिंह (जीगर बन्ना) थेरासणा*