क्षत्रिय चारण

क्षत्रिय चारण
क्षत्रिय चारण

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

चारणाचार प्रश्नोत्तरी

1) चारणो मे नाम के अंत मे सिंह शब्द का प्रयोग क्यु होता है?
> प्राचीनकाल से चारण एक शासक जाती भी रही है (जागीरदार ) 30-40 बीघा भुमी से लेकर 30-40 गाँव तक के चारण के शासन क्षेत्र थे।
और राजपुत्रो के साथ कंधे से कंधा मीलाकर युद्ध भुमी लडकर तलवार को रक्त रंजीत कीया है।

और चारण एक क्षत्रिय समुदाय का अहेम हीस्सा है
सिंह शब्द अपने आप मे शूरविरता का प्रतीक है

ईसलीए चारण कुल मे नाम के अंत मे सिंह शब्द का प्रयोग होता है ।

2)चारणो मे सबसे ज्यादा गाँव की जागीर कीसके पास थी?
> सबसे ज्यादा 38 गाँवो की जागीरी (रजवाडा) मुंदीयाड ठाकुर साहब श्री करणीसिंहजी बारहठ(रोहडीया) के शासन क्षेत्र मे थे।

3) माँ करणी जी की मासीयाई बहेन का नाम क्या था?
>माँ करणी जी की मासीयाई बहेन श्री देवल माँ सिंहढायच थे,
जीनकी तीन बेटीया थी,

बुट ,बलाल ,बहुचर

 4) पूरे विश्व मे एसे कौनसे विर पुरुष  थे जीन्होने अधीक संख्या मे शेरो का शीकार कीया हो?
>श्री नरकेशरी चारणकुल भुषण नरसिंह जी सिंहढायच जीन्होने 200 से उपर शेरो का शीकार कीया था।

 5) महाभारत के बाद का सबसे बडा महाकाव्य कौनसा है?
> वंशभास्कर - महाकवि चारण सूर्यमल मीशण

 6)अकबर के समय मे चल रही नौरोजा प्रथा कीसने बंध करवाई थी?
>श्री राजल बाईसा जीन्होने अकबर की वाहीयात प्रथा नौरोजा बंध करवाया था।

7) महाराणा हम्मीर जी ने कीस देवी की मदद से चीतौड वापीस हासील कीया?
>श्री बरवडी माता जीन्होने राणा हम्मीर को 500 घोडे और सेना सहीत चीतौड जीतने का वरदान दीया और राणाजी ने चीतौड फतेह कीया।

8) वो कोनसे विर योद्धा चारण थे जीनका सर कटने के बाद भी धड दुश्मन से लडता रहा?
>श्री महाविर नरुजी सौदा जीन्होने बडी विरता से युद्ध लडा और जीनका सर कटने के बाद भी धड दुश्मन से लडता रहा!!

 9)आमेर के शासक सांगा का वध कीसने कीया था?
शूरविर चारण कानाजी आढा जीन्होने अपने मीत्र अमरचंदसिंह नरुका के मृत्यु का वैर लेने के लीए आमेर के महाराजा सांगा का वध कीया था!!

जयपालसिंह(जीगर बऩ्ना) थेरासणा

सिंहढायच वंश का उदभव

पंवार वंशीय राजा समजी रो बेटो कविदासजी आवड माताजी री आग्या सूं चारण बणग्यो।इण कविदास री पांचवी पीढी में भाचलियोजी (जो उणरे जागीर ग्राम भाचली रे नाम सु भाचलीया कहेलाए) होया अर उण री वंश परंपरा मे नरसिंहजी होया। नरसिंह भांचलिया साहसी ,वीर अर वाकपटु चारण हा।उण दिनां मंडोवर माथै नाहड़राव पड़िहार राज करै। बात चालै कै कपिल मुनी रै श्राप सूं एकर पुस्कर तल़ाब सफा सूखग्यो।पाछो भरीजै ई नीं जणै किणी कैयो कै कोई ऐड़ो आदमी जको घणा सिंह मार्या वे यो आदमी पुन्न आपनै इण तल़ाब माथै संकल़पै तो ओ तल़ाब भरीज सकै।राजा पतो करायो तो ठाह लागो कै एक चारण नरसिंह भांचल़ियो ऐड़ो विर प्रतापी पुरूष है।

कैल़ाशदानजी ऊजव्वल़ लिखै-

*साप कपिल मुनी सूखियो,*
*पुस्कर राज प्रसिद्ध।*
*पाणी पाछो प्रागल़ै,*
*समप्यां पुनि सिंघ वध्ध।।*
नाहड़राव आदमी मेल नरसिंह नै तेड़ायो।नरसिंह आयो अर जनहित में गौमार सिंह मारण रो पुन्न राजा रै नाम संकल़पियो-
*ताकव तुरत तेड़ावियो,*
*सह नाहड़ सन्मान।*
*सिंहढायच आयो सुभट,*
*दियण तीर्थ हित मान।।*
 नरसिंह रे प्रतापी वर्चस्व अर तेजस्वी उणियारै सूं नाहड़राव प्रभावित होयो अर इणनै आपरो दरबारी बणाय 12 गांमां सूं मोगड़ो  दियो-
*भांचल़ियो नरसिंघ भण,*
*पुस्कर कियो पड़ाव।*
*विरद सिंढायच भाखियो,*
*राजा नाहड़राव।।*
नरसिंह री संतति आपरै दादै सिंढायच लारै कालांतर में सिंढायच बाजी।
इणी ऊजल़ै वंश में आगै जायर बाणजी होया अर बाणजी रा बेटा हरिदास सिंढायच होया।
हरिदास सिंढायच रै एक दूहै माथै महाराज पदमसिंह बीकानेर नौ लाख री हुंडी भरी-
*रघुपत काय न रखियौ,*
*ऐक पदम आराण।*
*पाण अठारै पदम रै,*
*कर तौ वल़ केवाण।।*
बात चालै कै जद हरिदास इतरो धन लेय घरै गया तो उणां री जोड़ायत इचरज में पडती पूछियो कै "कांई कोई चिंतामणी हाथ आयगी कै कोई पारस मिलग्यो कै  राम मिलग्यो कै जदुपत किसन भेटियो कै लंका लूटली आद आद रै साथै उणां कैयो कै ऐ सगल़ी नै होई तो सेवट म्हनै लागै कै महाराज पदमसिंह रीझग्या!!इण भावां नै किणी कवि आपरै शब्दां में पिरोवतां लिखियो -
चितामण कर चढे,
किना पारस्स परस्सै।
मिल़िया रघुपत राय,
किना जदुपत दरस्सै,
लूटी  लंक कनंक,
किना लखमीवर तूठा।
भोल़ैनाथ भंडार,
दिया लूटाय अलुटा।
तूठा कुमेर वूठा वरुण,
अणखूटा धन आविया।
(कन( राजा पदम रीझाविया।।
सिंढायच हरिदास आपरी बखत रा मोटमना अर दातार मिनख हा।उणां दातारगी री घणी छौल़ां दी।किणी मोतीसर कवि लिखियो कै -जस दातारगी री दवा रै अभाव में ऐड़ो  बीमार पड़ियो कै ऊभो ई नीं होय सकियो सेवट उणनै हरिदास  धनंतर रो रूप धार दातारगी  री ओखद सूं निरोग कियो-
*मांदो जस महलोय,*
*पड़ियो दत ओखद पखै।*
*हरि धनंतर होय,*
*बैठो कीधो बाणउत।।*गिरधरदानज रतनू दासोड़ी

चारणी शक्ति श्री राजबाई माता

आई श्री राजल माता  🙏🏻

*बोले न बादशाह काई थर थर धुजत अंग,
सिंहणी दियण डंणक रंग माँ राजल रंग*
अंकित भान चारण कृत
💥राजल माता द्वारा अकबर से नवरोजा छुडवाना💥
बीकानेर की संस्थापिका देवी करणीजी वि स १५९५ चैत सुदी नवमी को ज्योतिर्लीन हो गये। इनके ज्योतिर्लीन के ठीक दस मास पश्चात् यानि वि स १५९५ को माघ मास के शुक्ल पक्ष में सौराष्ट्र प्रान्त के ध्रांगध्रा तालुका के चराडवा गांव में वाचा शाखा के चारण उदयराज के घर राजबाई माता का जन्म हुआ। ये राजबाई राजल माता के नाम से करणी जी के पूर्णांवतार के रूप में जानी जाती है ।
१९३८ ईस्वी सन् को प्रख्यात इतिहासकार किशोरसिहजी बाहर्स्पत्य ने श्री करणीचरित्र ग्रंथ लिखकर बीकानेर महाराजा गंगासिह को समर्पित किया। लेखक के उक्त ग्रंथ को लिखने का एक मात्र कारण यह रहा था जो आजकल हमें व्हाटसप पर किरणदेवी नामक कल्पित पात्र द्वारा अकबर से नवरोज छुडवाने का प्रचार प्रसार करके अपने गौरव में श्री वृद्धि करके देवी राजल माता के ऐतिहासिक चरित को कमत्तर करने का प्रयास कर रहे है।
नवरोजा प्रथा 👉एक ऐसा राजपूताने का दाग था जिसे आई  श्री करणी माता के पूर्णांवतार राजल माता ने अपने दैविक शक्ति द्वारा समाप्त किया था और अकबर के इस लम्पट आचारण से राजपूताने को मुक्ति दिलवाई। जिसकी पुष्टि स्वंय पृथ्वीराज के सोरठे, दयालदास की ख्यात २ पृ १३४-३५,वाचा चारणों के रावल की बही,मुंशी देवी प्रसाद के ग्रंथ राज रसनामृत,डा लुइजिपिओ तैसिस्तोरि,रावत सारस्वत, राजवी अमरसिंह आदि के ग्रंथों से व सैकडों डिंगल रचना से इसकी पुष्टि होती है।
पृथ्वीराज राठौड बीकानेर के राव कल्याणमल का पुत्र था जो उच्चे दर्जे का भक्त कवि था ।अकबर के दरबार में रायसिंह व पृथ्वीराज राठौड दोनो को उचित स्थान था।पृथ्वीराज राठौड महाराणा प्रताप का मौसेरा भाई था। रायसिंह को अकबर ने सौराष्ट्र प्रान्त का प्रशासक नियुक्त किया था एक बार पृथ्वीराज सौराष्ट्र जा रहा था तब रास्ते में चराडवा गांव में उसका घोडा मर गया तभी वहा से गुजर रही दस वर्षीय बालिका राजल माता ने चमत्कारी ढंग से मृत घोडे को पुन:जीवित कर दिया।पृथ्वीराज देवी अवतार राजल माता को प्रणाम करके भविष्य में होने वाले संकट में मदद करने का वचन मांगा।राजल माता ने कहा जब भी तुम्हें संकट आये मुझे याद करना मै तुम्हारी मदद करूंगी।

पृथ्वीराज का विवाह जैसलमेर के हरराज भाटी की पुत्री छोटी पुत्री चम्पा कुंवरि के साथ हुआ था ।हरराज भाटी की बडी पुत्री नाथी बाई का विवाह अकबर के साथ हुआ।अकबर ने अपनी रानी नाथीबाई से चम्पा कुंवरि के रूप सौन्दर्य की बात सुनने पर वह उसे प्राप्त करने के लिए लालाहित हो उठा।उसने षंडयंत्रपूर्वक नवरोज के त्योहार में चम्पाकुंवरि को बुलवाने का आदेश दिया।पृथ्वीराज उसके आचरण से वाकिब था अकबर ने छलबल से उसका डोला अपने महल में बुला दिया।पृथ्वीराज अकबर की मनोइच्छा को भांप गया और उसने इस संकट की घडी में राजल माता को याद किया और अपने ऊपर आये संकट को निवारण करने की प्रार्थना की।
पृथ्वीराज का कहा सोरठा इस प्रकार है।
बाई सांभल बोल ,
कमधां कुल मेटण कलंक।
करजे साचो कोल,
ददरैरे दीधो जिको।
पृथ्वीराज की पुकार सुनके देवी राजल माता आगरा में प्रकट हो गये ।अकबर ने जैसे ही डोले की कनात हटाई तभी राजल माता सिंह रूप में प्रकट होकर अकबर का कंठ पकड लिया।तभी अकबर ने अपने प्राणों की भीख मांग दी और राजल माता को कहा कि मै आपकी गाय हूं मुझे माफ कर दो ।तब राजल माता ने उसे भविष्य में अपने आचरण को  सुधारते हुए नवरोज प्रथा को बंद करने के वचन देने पर अकबर के प्राण बख्शे। राजल माता के नवरोज छुडवाने पर ओंकारसिंहजी लखावत द्वारा लिखित पुस्तक को पढकर अपने भ्रम को दूर करे।
जय राजल माता
इसे अधिकाधिक शेर करके सभी तक सही जानकारी पहुंचाये।
✍डो. नरेन्द्र सिंह जी आढा
ठि.श्री देवल कोट झांकर
इतिहास व्याख्याता रा उ मा वि घरट सिरोही

भूचरमोरी युद्ध के विर योद्धा चारण

चारण माने चाह+रण........................

>गरासदार गोपालदासजी बारहठ व विर परबतजी वरसडा


जामनगर के जामसताजी ने संवत् 1639वि.को अहमदाबाद के 'मुजफ्फर शाह' बादशाह को शरण दे दी। अकबर ने ईसे लोटाने को कहा परन्तु सताजी ने शरणागत की रक्षा का अपना धर्म समझते हुए वापिस देने से मना कर दिया। इस पर अकबर के सूबेदार मिर्जा अजीज कोका को जामनगर पर सेना देकर भेजा।
नवानगर (जामनगर) के महान वीर चारण परबतजी वरसङा ने जामनगर के प्रत्येक गाँव में जाकर वीरत्व का बोध कराते हुए नवयुवकों की सैन्य टुकङी तैयार की । और नागङा वजीर के नेतृत्व में युद्ध क्षेत्र को प्रयाण किया और परबतजी वरसडा विरता से लडकर विरगति को प्राप्त हुए।अकबर की भारी सेना से यह एतिहासिक युद्ध 'भुचर मोरी' की समर भुमि मे लङा गया। दुसरी ओर महात्मा ईसरदासजी बारहठ के पुत्र 6 ग्रामो के गरासदार गोपालदासजी बारहठ अपने परिजनों सहित अन्य पाँच सौ तूम्बेल चारणो की टुकङी का स्वयं नेतृत्व करते हुए, विर चारणो की सेना को लेकर समर भुमि मे पहुचें।
इस युद्ध में अकबर की सेना से अप्रतिम वीरता से लङते हुए इन चारणों ने शत्रुओं का भारी विनाश किया ओर खून की बहती धारा में इन्होने मरण को वरण किया। इन चारण वीर योद्धाओं के पराक्रम को देखकर " मिरजा अजीज कोका" ने कहा ,जेमने पासे आवां चारणों छै' तेने आपणे केवी रीते जीती शकीशुं ? धन चारणो ने जेमणे पोताना धणीनुं नमक उजाली पृथ्वी पर पोतानुं नाम अमर कर्यु।"  कुल मीलाकर 1100 चारण ईस युद्ध मे विरता से लडकर शहीद हुए।
इस युद्ध में सताजी के पुत्र अजाजी रणखेत रहे। जिनकी पाग लेकर गोपालदासजी बारहठ ने राणी को सुपुर्द किया, जिसके साथ राणी भूचर मोरी के रणक्षेत्र में आकर सती हुई। गरासदार गोपालदास बारहठ के शरीर पर 52 घाव लगे हुए थे । इसलिए वह भी कुछ देर बाद विरगति को प्राप्त हुए । आज भी भूचर मोरी के युद्ध मैदान मे इस विर बारहठ का "पालिया" (चबुतरा) बना हुआ है।जो इसकी वीरता के गीत गाता हुआ इसकी साक्षी दे रहा है।

पीठवा चारण और जैतमाल राठोड

*पीठवाचारण और जैतमालराठौङ !!*
_______________________________
     *!! दोहा !!*

*पावन हूवौ न पीठवौ,*
*न्हाय त्रिवेणी नीर !*
*हेक जैत मिऴियां हूवौ,*
*सो निकऴंक सरीर !!*

पीठवा नामक चारण कुष्ठ रौग से पीङित होकर, इस कुष्ठ रोग से बहुत ही दुःखित होकर उससे छुटकारा पानेके लिए कितने ही तीर्थादि कर आया परन्तु उसका रोग नही गया ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढता ही गया ! उसने सुना कि रावल मल्लीनाथ का छोटाभाई सिवाणां का राजा जैतमाल जो कि भगवान का बङा भक्त था उसके स्पर्श से कोढ रौग दूर हो सकता है, एक दिस दैवयोग से पीठवा जैतमाल के गढमें  पंहुंच गया, *राव जैतमालजी* ज्योंहीं आ कर मिलने को बांह बढाई तो,पीठवा पीछे सरक गया और बोला कि मैं कुष्ठी हूं मेरा सरीर बिगङा हुआ है,मैं महापापी पातकी आपसे कैसै मिल सकता हूं मैंने इस दुःख से छूटने के लिए अनेक तीर्थों के साथ ही प्रयागराज तक स्नान कर लिया है परन्तु मेरे कर्मों का फल नही मिटता है, उसके ऐसै दीन और करूणामय वचन सुनकर जैतमालने कहाकि तुम डरो मत, मुझसे गले मिलो, यदि सनातन धर्म में मेरी दृढ आस्था व श्रध्दा है तो तुम्हारा शरीर सारा निष्कलंक हो जायेगा !!
*बस कहने मात्र की देरी थी, पीठवा का शरीर रोगमूक्त हो गया !!*
उसने *रावजैतमाल को दसवांसालिग्राम*
विरूद से विभुषित किया ! इस विषय में एक प्राचीन कविता की पंक्ति निम्नप्रकार है किः...........
*!!दसमौ साऴग्राम सदैवत,दिनतिण पीठवै विरद दियौ !!*

इस ईकिसवीं सदी में सब बातें व मर्यादा को भूल बिसरा दी है तो भी आज भी उस बात को जानने वाले चारण जब यदाकदा जैतमालोतों से मिलते समय दसवां साऴ ग्राम का स्मरण अवश्य ही करते हैं !!

*गीत पीठवा चारण रो!*
              *!! दोहा !!*
*तीर्थतीर्थ तोय,अड़सठ में अबगाहिया !*
*जेत कमधग्यो जोय,कनवोजे मेट्यो कलंक !!*
               *!! गीत !!*
*पण ग्रहियो जेत मिलन कज पातां,*
*ऐह ईखियातो जगत अछै !*
*अड़सठ तीर्थत पहल अवगाहे,*
*पीठवो गयो सिवयांण पछै !!*  !!1!!

*अधर रूधर चवन्तो आचो,*
*काचो देख हियों कम्पै !!*
*सलख सोमह भ्रम घणा हैत सूं,*
*जेत मिलण कज आव जपै !!*   !!2!!

*इहंग इम कहियो अन्नदाता,*
*अमो कमल नह भाग इशो !*
*सारो रषी बहै तन सड़ियो,*
*कहो मिलण रो बेत किसो !!*    !!3!!

*कहतो हसे मलफियो कमधज,*
*जग अचर जियो देख जुवो !*
*बांह ग्रहे मिळतो सुख बुझत,*
*हेम सरीखो शरीर हुवो !!*   !!4!!

*धिन धिन कहै पृथ्वी बड़ धारण,*
*काट कलंक निकलंक कियो !!*
*दसमो सालगराम सुदेवत,*
*दिनजिण पीठवे विरद दियो !!*  !!5!!
_______________________________   
राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर (राज.)

गरासदार

"गरासदार" शब्द का मतलब


> 'गरास' या 'ग्रास' का संस्कृत में अर्थ है निवाला (खाने का निवाला)।

किसी राज्य में शूरविर और विध्वान प्रतिष्ठीत व्यकित जो उस राज्य के दरबारी होते थे,उनको उनकी शूरविरता व विध्वानता की एवज मे गांव या जमीन-जागीर दी जाती थी।

जागीरदार व तालुकदार ये दो शब्द गरासदार शब्द के ही पर्याय है।

>गरासदार का सिधा मतलब है की हम उस राज्य का कुछ हिस्सा मतलब पूरा नहीं ऐसा एक निवाला (ग्रास)खा रहे है (पूरी रोटी का एक निवाला)।

>ये गरासदार शब्द सिर्फ गुजरात के काठीयावाड(सौराष्ट्र) मे ही प्रचलीत है।

>आगे जाकर ग्रास शब्द जमीन-जागीर के लिए इस्तमाल होने लगा और जो ग्रास (जमीन) वाले होते हैं उन्हें गरासदार कहा गया।
> गरासदार उन्हींको कहा जाता है जो किसी रजवाड़े से जमीन-जागीर लेकर उतरे हो,और वह सिर्फ राजपूत,चारण व काठी दरबार ही होते थे।

जयपालसिंह(जीगर बऩ्ना) चारण ठि.थेरासणा


नोंध:- ईस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेर करे परंतु मेरे नाम के साथ छेडछाड ना करे।

चारणो की एक विर शाखा सौदा बारहठ

राजपूताना और गुजरात मे सौदा बारहठ शाखा के चारणो के जागीर ग्रामो(स्वशासीत ग्राम/शासन जागीर) की जानकारी

>महाराणा हम्मीर जी ने बारुजी सौदा को अपने दसोंदी नीयुक्त कर 25,000 की वार्षीक आय का *आंतरी* सहीत 12 ग्रामो का पट्टा जागीर मे दीया। सौदा बारहठ की पदवी से विभुषीत कर दोवडी ताजीम,पैरो मे सोने के लंगर, बाह पसाव,उठण बेठण रो कुरब,पालकी, चंवर, सोने चांदी के जवेरात, हाथी -घोडे, शस्त्र, ईत्यादी सन्मानो से नवाजा। बारुजी सौदा शाख के मुल पुरुष है।

> महाराणा हम्मीर जी ने बारुजी के पुत्र बाजुडजी को 50,000 आय वाला कपासन परगना जागीर मे देकर दरबारी सन्मान दीये।

>ठाकुर बाजुडजी ने अपने तीनो पुत्र(कौलसिंह,करमसेनजी,बेलाजी)  कौलसिंह को आंतरी की जागीर,करमसेनजी को बीकाखेडा,और बेलाजी को मावली की जागीर दी।आज ईन के वंशज ईन ठीकानो के जागीरदार है।

>ठा.बाजुडजी के पुत्र बेलाजी के पुत्र कुँ.राजारामसिंह सौदा को महाराणा उदयसिंहजी ने ओडा नामक ग्राम जागीर मे दीया।राजारामसिंहजी सौदा ने कुंभलगढ की लडाई मे विरगती प्राप्त हुए।

>राजारामसिंहजी सौदा के पुत्र लुंभाजी को महाराणा प्रताप ने तलाई नामक ग्राम जागीर मे दीया।

बारुजी की छठ्ठी पीढी मे पालमजी सौदा हुए जीनको महाराणा रायमल ने सन्मानीत कर दरबारी कुरब कायदे सहीत आलीशान सेणोंद/सोनीयाणा ग्राम जागीर मे दीया। विर पालमजी चीतौडगढ के पाडीपौल पर विरता से लडते हुए विरगती को प्राप्त हुए। *ईसी सोनीयाण जागीर के दो शूरविर चारण सिरदार ठा.जैसा सौदा व ठा.केशव सौदा प्रसिध्द्ध हल्दीघाटी युद्ध मे महाराणा प्रताप की सेना के महानायक थे!!! जीन्होने बहोत से दुश्मनो के सर काट कर विरगति का वरण कीया था।


> पालमजी सौदा के पुत्र जवणाजी महाराणा सांगा का मोहंमद खीलजी के साथ हुए युद्ध मे हरावल टुकडी मे रहकर विरता से लडते हुए रणखेत रहे। जवणाजी के पुत्र ठाकुर राजविरसिंह को महाराणा प्रताप ने बडला ग्राम जागीर मे दीया ,दरबारी कुरब कायदे दीए।

>ठाकुर राजविरसिंह जी सौदा के पुत्र कुँ खेमराजसिंह जी को देवगढ के रावत संग्रामसिंह जी ने डीडवाणा नामक ग्राम जागीर मे देकर दरबार मे स्थान दीया।

>खेमराजसिंह सौदा के पुत्र केशरीसिंह को महाराणा राजसिंह प्रथम ने पाणेर ग्राम जागीर मे दीया।

>बारुजी की नौ वी पेढी मे देवीसिंह जी को विक्रम संवत 1657 मे ईडर शासक राव कल्याणमलजी ने टोकरा सहीत 3  ग्राम का पट्टा जागीर मे देकर अपने दरबारी कुरब कायदे प्रदान कीए।

>विक्रम संवत 1652 मे डुंगरपुर रावल आसकर्ण ने ठाकुर नाग जी सौदा को बरछावाडा ग्राम जागीर मे दीया।

>विक्रम संवत 1713 मे डुंगरपुर रावल खुमानसिंह जी ने ठाकुर हाथी जी सौदा को हरौली ग्राम जागीर मे दीया ।

> विक्रम सवंत 1791 मे डुंगरपुर रावल शिवसिंह जी ने ठाकुर कुशालसिंह जी सौदा को करावाडा ग्राम जागीर मे दीया।

डुंगरपुर महारावल उदयसिंह जी ने ठाकुर जगतसिंह जी सौदा को 11 ग्रामो का पट्टा जागीर मे दीया, करावाडा को मीलाकर कुल 12 ग्रामो का उमराव ठिकाना हुआ ईन 12 ग्रामो के पट्टे का करावाडा पाटवी ठिकाना बना।

ठाकुर जगतसिंह जी का डुंगरपुर रीयासत के प्रतीष्ठीत दरबारी उमराव सिरदारो की श्रेणी मे स्थान था। दोवडी ताजीम जागीरदार का उमराव पद, पालकी और चंवर का सन्मान, हाथी तथा पैरो मे सोने के लंगर  ईत्यादी फीताब एवं कुरब कायदे डुंगरपुर दरबार से एनायत हुए थे।


>बारुजी की नवमी पीढी मे शुरविर नरुजी सौदा को महाराणा राजसिंह ने दरबार मे उमराव पद एंव राजकीय सन्मान के साथ राजसभा सद (मुसाहब) का पद देकर पालखी और चंवर का अधीकार दीया,जो आमात्यो को ही प्राप्त होता था!

>संवत 1736 मे उदयपुर पर औरंगजेब के आक्रमण समय जब महाराणा समस्त प्रजा सहीत पहाडो मे चले गए तब शूरविर नरुजी सौदा ने उदयपुर छोडना स्वीकार नही कीया। राजद्वार और जगदीश मंदीर की रक्षार्थ हेतु औरंगजेब के ईक्के(प्रमुख सैनीक) ताजखाँ और रुहीलखाँ का सामना करते हुए विरता से युद्ध करते हुए अपने 12 साथीयो सहीत विरगती को प्राप्त हुए। उनका सर कटने के बाद भी धड लडता रहा और 300 कदम दुर जाकर गीरा!!

>नरुजी के सात पुत्रो मे से चार र्निवंश रहे। शेष तीन मे से ठाकुर बीहारीदासजी को बांसवाडा रावल कुशलसिंहजी ने लाखपसाव सहीत करणपुर नामक ग्राम जागीर मे देकर बांसवाडा दरबार मे स्थापीत कीया।

>नरुजी के ज्येष्ठ पुत्र ठाकुर उदयभाणसिंह उदयपुर छोड राजा भीमसिंह के साथ बनेडा चले गए भीमसिंह जी ने उनको दरबारी कुरब कायदे देकर गीहड्या नामक ग्राम जागीर मे दीया।उदयभाणसिंह जी मेडता से हुए युद्ध मे रणखेत रहे।

>ठाकुर उदयभाणसिंह जी के दो पुत्र चंद्रभाणसिंह(गीहड्या के पाटवी जागीरदार) और कीशोरसिंह ये दोनो भाई महाराजा सूर्यमल्लजी की सेना के महानायक थे अटलनदी पर हुए युद्ध मे दोनो विर चारणो ने तलवारो से कई दुश्मनो के सर धड से अलग कीये और रणखेत रहे।

>किशोरसिंह जी के पुत्र देवाजी को शाहपुरा के महाराजा उम्मेदसिंह ने सह सन्मान आमंत्रीत कर अपने दशोंदी बनाकर दरबार मे स्थान दीया। जोधपुर महाराजा बखतसिंह से पराजीत होकर जयपुर सवाई जयसिंह के पलायन कर जाने पक शाहपुर राजा उमेदसिंह द्वारा बखतसिंह पर कीये गए वीजयप्रद आक्रमण मे विरता प्रर्दशीत करते हुए ठाकुर देवाजी सौदा भी घायल हुए थे ,उनके सिने पर तलवार और तिरो के घाव लगे थे। पूर्ण स्वास्थ्य होने पर राजा उमेदसिंह ने उन्हे पालखी की सवारी व चंवर का सन्मान और सांमतो के बराबर उमराव पद से नवाज कर सोने के जवेरात के साथ बीसनीया ग्राम जागीर मे दीया। यह ग्राम देवाजी के भाई ठाकुर सम्मानसिंह से खाल्सा कर देवाजी को दीया गया था परंतु देवाजी ने वह ग्राम सम्मानसिंह को दीलाकर अपने भ्राता धर्म का पालन करते हुए खुद बीना जागीर के रहे।

देवा जी के पुत्र किरतसिंह जी उनके ओनाडसिंहजी, उनके ठाकुर कृष्णसिंहजी (जो बहोत बडे विध्वान और रजवाडो मे सम्मानीय थे जीनके बारे मे करीब सभी लोगो को पता ही है ईनकी एक पोस्ट क्रमशःभेजी जाएगी) उनके तीन पुत्र ठाकुर केशरीसिंह जी(ईन महापुरुष व क्रांतिकारी के बारे मे कौन नही जानता!!एक पोस्ट है ईनके विषय मे जो मे क्रमश भेजुंगा), ठाकुर जोरावरसिंहजी(क्रांतीकारी विर पुरुष ईनके बारे मे भी एक पोस्ट क्रमशः भेजी जाएगी) ,ठाकुर कीशोरसिंहजी (दरबारी विध्वान कवि थे),ठाकुर केशरीसिंह जी के पुत्र कुँ. प्रतापसिंह जी (विरशहीद नौजवान अंग्रेजो से लोहा लेने वाले!! ईनकी भी एक पोस्ट बनाई है जो क्रमशः भेजी जाएगी)

संदर्भ:-
1)ठाकुर जोरावरसिंह बारहठ स्मृती
- राजलक्ष्मी जी साधना
2)चारण दीगदर्शन
-श्री शंकरसिंह जी आशीया
3)चारण कुलप्रकाश
-ठाकुर कृष्णसिंह जी बारहठ


 जयपालसिंह(जीगर बऩ्ना) थेरासणा

नोंध:- ईस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेर करे परंतु मेरे नाम के साथ छेडछाड ना करे।

ठाकुर साहब जगतसिंहजी करावाडा

करावाडा जागीर के प्रतापी शासक चारणकुल भुषण ठाकुर साहब जगतसिंहजी सौदा बारहठ


   एक बार उदयपुर महाराणा मेवाङ के समारोह में सभी राजपुत तथा चारण सिरदारों को आमंत्रित किया गया।उस वक्त एक दरबारी द्वारा चारण सिरदारों पर टिप्पणी कि गई। उसके प्रति उतर में चारण गुलाबसिंह  ने भरे दरबार मे यह दोहा कहा :-

आँख मुरारी आशिया,श्यामल है भुजदन्ङ।
सौदो जगतो शिश है,गुलबो गुल्ल री गंध।।


 ठाकुर साहब जगतसिंह जी सौदा ये ङुगरपुर महारावल उदयसिंहजी के प्रतिष्ठीत दरबारीयों की श्रैणी मे सर्वप्रथम बैठे जाने वाले उमराव सिरदार थे। महारावल उदयसिंह ने इन्हैं ताजिम ओर बैठक, सोना नवशी जागीर,दोवडी ताजिम सन्मान, हाथी घोडा ,पालकी तथा चंवर का सन्मान और ग्यारह गाँव का पट्टा शासन जागीर के स्वरुप मे प्रदान कर अन्य दरबारी कुरब कायदे प्रदान कीए। वे एक प्रखर राजनीतीग्य थे और डुंगरपुर महारावल के अंगत सलाहकार के पद से विभुषीत थे। महारावल कोई भी कार्य ईनकी सलाह लेकर करते थे। ईससे अतीरीक्त वे एक कुशल योद्घा भी थे।

मेवाङ के प्रधानमंत्री  महामहोपाध्याय कविराजा चारण श्यामलदासजी दधवाङिया द्वारा लिखित महान ग्रंथ वीरविनोद मे ईनका उल्लेख है वागङ रियासत के चारण सिरदारों के ठिकानो मे से पहले दरजे के जागीरदार थे।

 वि.स.1713 कार्तिक 5 को रावल खुमाणसिंहजी ने हाथीजी सौदा को हरोली नामक गाँव ताम्रपत्र सहीत देने का उल्लेख कई वर्षो पहले दर्ज है।

ठाकुर साहब जगतसिंह जी* के पुर्व कि पीढी हरोली (सारेली) गाँव मे रहा करती थी।एंव उनकेपूर्वज
 ठा.जोरावरसिंह सौदा ईसी गाँव के जागीरदार थे ,जिनको ठाकुर जोरजी नाम से जाना जाता था। वे युद्ध मे पराक्रमता से लडते लडते विरगती को प्राप्त होने के कारण उनकी धर्मपत्नी जीते जी सती हुऐ। जिनका स्थान(स्मारक) आज भी हरोली(सारेली) ग्राम मे है। जहा आदिवासी लोग आज भी पुजा अर्चना करते है। ठाकुर जोरावरसिंह सौदा को, झुझार जी बावजी के नाम से आज भी पुजा जाता है। ईनका भी स्थानक है।दोनो स्थान से कुछ दुरी पर कुलदैवी खोङीयार का मंदिर भी स्थित है।

ठा.जोरावरसिंह सौदा के पश्चात कुशालसिंह सौदा को करावाङा गाँव वि.स.1791चैत्र शुदी 4 को शासन जागीर स्वरुप प्रदान कीया गया। कुशालसिंह के पुत्र एवं जगत सिंह के पिता ठाकुर पदमसिंह जी सौदा अत्यधिक तेज व लङाकु प्रवृती के योद्घा होने के कारण दरबार मे ईन्हे आदिवासियों की टुकङी सौपीं गई थी। जो पदम पल्लटन के नाम से विख्यात हुई थी। मालवा से वागङ आये आक्रमणकारियों को सुरक्षा हेतु ङुँगरपुर रावल ने महारावल जग्मालसिहं को बाँसवाङा सुरक्षा हेतु भेजा उनके साथ कुशालसिंह जी सौदा के छोटे भाई समरथसिंहजी सौदा को भी साथ ले गये और विरता पूर्वक युद्ध कीया था तत्पश्चात समरथसिंह जी को उनकी विरता की एवज मे डुंगरपुर रीयासत से तली नामक ग्राम जागीर मे मीला जीनके वंशज वर्तमान मे तली ग्राम मे स्थित है।

ठाकुर जगत सिंह जी ने करावाडा जागीर मे एक रजवाडी हवेली का निर्माण करवाया था, जो आज भी करावाडा में विधमान है।उदय विलास पेलेस की स्थापना करावाडा की हवेली बनने के पश्चात की गई थी। महारावल साहब द्वारा हवेली की निर्माण जानकारी लेने हेतु दरबार से बैडसा ठाकुर साहब को जायजा लेने के लिए भेजा और जिन्होने दरबार मे दोहे द्वारा उक्त व्यक्तव्य कहा :-

दाँता तल उंगली दबे,वाणी बने अबोल,
नयनं ना थाके निरखता,वा जगता वाली पौल।

जय माताजी
जय माँ करणी

संदर्भ ग्रंथ:-

>चारण दीगदर्शन
>रावजी की बही
>विरविनोद

- जयपालसिंह (जीगर बऩ्ना) थेरासणा
- कुँ.रवि बऩ्ना सा करावाडा