*टोकरा गाँव का ईतीहास(ठीकाना)*
*शाख:-सौदा बारहठ*
जामनगर(सौराष्ट्र) के खौङ गाँव के चक्खङा शाखा के नरहा चारण के घर 13वीं सदी में एक कन्या का जन्म हुआ। जन्म के समय ही मुँह में दाँत होने के कारण ब्राह्मणों ने इसे अनिष्टकारी व अमँगलकारी बताया। भयवश इस कन्या को बूर(गाङ) दिया गया। ये सब करने के 15 दिन बाद यह कन्या जीवित मिली। इस चमत्कार के बाद यह कन्या आमजन के बीच बूरुङी(बिरवङी) नाम से शक्ति रूप में पूजित हुई।
चारणों की २४ मूल शाखाओं में 'मरुत' नाम की शाखा है; जिसकी 'पेटा' नाम की उपशाखा है। पेटा की ५२ उपशाखाओं में से एक कापल(कायपल) है। कायपल उपशाखा में आदिपुरुष के नाम से 'देथा' उपशाखा चली। माँ बिरवङी जी का विवाह इसी देथा उपशाखा के 'भूयात जी अथवा करमसेण जी' (अलग-अलग विद्वानों के मतानुसार) जो कि बनासकांठा क्षेत्र में 'संखङो' ग्राम का स्वामी था, से हुई।
सीसोदे गाँव के गुहील राजा 'हम्मीर' उस समय अपने पूर्वजों का मेवाङ राज्य पुन: प्राप्त करने के लीए संघर्ष कर रहे थे; जो कि १३०३ ईस्वी में अल्लाऊद्दीन खिलजी द्वारा हथिया लिया गया था।
हम्मीर ने माँ बिरवङी जी की शरण प्राप्त की। माँ बिरवङी ने हम्मीर को विजय वरदान दिया और अपने पुत्र बारू देथा को 500 घोङों सहित हम्मीर की मदद के लिए भेजा।
बारू ने हम्मीर को वचन दिया कि विजय प्राप्त होने पर वह हम्मीर को 500 घोङे मूल्य के बदले देगा। और यदि पराजय होती है, तो ये 500 घोङे हम्मीर को बिना किसी मूल्य के भेंट कर देगा। उक्त सौदे के कारण बारू; 'बारू सौदा' के नाम से जाना गया और आज भी इसके वंशज *'सौदा'*उपटंक से जाने जाते हैं। विजयोपरांत हम्मीर ने बारू को अपना 'गढपति' और 'दसोंदी' बनाया; बैठक की ताजीम, 7 हाथी, 500 घोङे, पैरो मे सोने के लंगर,सैंकङों ऊँट व गाय-भैंसें, अतुल्य स्वर्ण भँडार व 12 गाँवों की सोना नीवेस जागीर अर्पित कर पग-पूजा की तथा अपने वंशजों को सौदा चारणों से कभी ना विरचने(विमुख होने) की सौगंध दिलवाई।
हम्मीर से ही मेवाड के शासको को राणा बीरुद प्राप्त है ।
राणा हम्मीर ने चित्तौङ के कीले में माँ बिरवङी जी का भव्य मंदिर बनवाया। आज भी हम्मीर के सिसोदिया वंशज माँ बिरवड़ी जी को बिरवड़ी माँ, बाण माता, अन्नपूर्णा आदि नामों से कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।
बारू सौदा कालांतर में राणा हम्मीर के साथ लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। इसी बारू की कुल परंपरा में सौदा पालम, सौदा बाजूड़, सौदा जमणा, सौदा अमरसिंह, सौदा नरू, सौदा जैसा, सौदा केशव ओनाडसिंह ,कृष्णसिंह ,केशरीसिंह,जोरावरसिंह,प्रतापसिंह सहित और भी बगोत से विर सौदा सिरदारों ने मेवाड़ी स्वातंत्र्य और स्वाभिमान की रक्षा हेतु कई युद्धो मे भाग लेकर वीरगति का वरण किया।
बारु सौदा को राणा हम्मीर द्वारा प्राप्य उमराव पद और 12 गांवो की जागीरी मे से ही एक ठीकाना है *पाणेर*।
बारुजी सौदा की 4थी पीढी मे पाणेर के दीपसिंह सौदा को ईडर के राजा राव विरमदेव ने ईडर में हठोज गांव की जागीर एनायत की।
श्री दीपसिंह जी के सुपुत्र ठाकुर देवीदानजी सौदा को 1657 चैत्र सुद 3 के दीन ईडर के राजा राव कल्याणमलजी ने *टोकरा* जागीर अर्पीत करके लाखपसाव देकर दरबार मे बैठक की ताजीम सम़्मान पूर्वक दी।
ठाकुर देवीदानजी अपने छोटे भाई को हठोज देकर टोकरा मे स्थिर हुए।
फीर से ठाकुर साब को दांता के महाराजा वाघजी की और से राणोल की जागीर प्राप्त हुई थी।
ठाकुर साब ने कोई पाठशाला मे से शीक्षा प्राप्त नही की थी ,मां सरस्वती उनके कंठ मे थी। वे खुद गुजराती,मारवाडी,डींगल,और पींगल भाषाओ के प्रखर जानकार थे । उनके तीन पुत्र थे:
१)मेशदानजी,२)मेघसिंहजी,३)रघुनाथजी
ईडर और दांता राज्य के दरबार मे ठाकुर साब का स्थान उच्च और सन्मान भरा था । ईन दोनो राज्य से समय समय पर ठाकुर साब को पुरस्कृीत कीया जाता था ।
ठाकुर साब ने भक्ति रस मे बहोत से काव्य लीखे थे,पर उनका साहीत्य आज अप्राप्य है। ७० वर्ष की आयु मे ठाकुर साब देवीदानजी का स्वर्गवास टोकरा मे हुआ।
उनके वंशज टोकरा के जागीरदार है और चारण समाज मे खानदान कहलाते है।
ठाकुर साब देवीदानजी के वंशजो मे
बहोत से विद्धवान कवि और शूरविर हुए।
जीनके नाम नीम्न है:
ठाकुर ईन्द्रसिंह जी सौदा,
ठाकुर गोपालसिंह जी सौदा,
ठाकुर छत्रसिंह जी सौदा,
ठाकुर उमेदसिंह जी सौदा,
ठाकुर खुशालसिंह जी सौदा,
ठाकुर जसराजसिंह जी(जसजी) सौदा,
ठाकुर आईदान जी सौदा,
ठाकुर हरनाथ जी सौदा(हठोज)
साबरमती नदी के उपर नीर्माण होने वाले धरोई बांध के भराव क्षेत्र में टोकरा गांव आ जाने से इस ठीकाने के सौदा बारहठो को अन्यत्र जमीने सरकार श्री तरफ से एनायत की गई।
आज भी श्री ठाकुर साब देवीदान जी सौदा के वंशज उनकी उच्चतम ख्याती की गवाही देते हुए मेवा-टोकरा,विरेश्वर-टोकरा,गढवी कंपा और हठोज ईत्यादी गांवो मे सोनानीवेस जमीनो के स्वामी है।
जय माँ बीरवडी जी
जय माँ करणी जी
जय माँ आवड जी
*जयपाल सिंह (जीगर बन्ना) थेरासणा*
*शाख:-सौदा बारहठ*
जामनगर(सौराष्ट्र) के खौङ गाँव के चक्खङा शाखा के नरहा चारण के घर 13वीं सदी में एक कन्या का जन्म हुआ। जन्म के समय ही मुँह में दाँत होने के कारण ब्राह्मणों ने इसे अनिष्टकारी व अमँगलकारी बताया। भयवश इस कन्या को बूर(गाङ) दिया गया। ये सब करने के 15 दिन बाद यह कन्या जीवित मिली। इस चमत्कार के बाद यह कन्या आमजन के बीच बूरुङी(बिरवङी) नाम से शक्ति रूप में पूजित हुई।
चारणों की २४ मूल शाखाओं में 'मरुत' नाम की शाखा है; जिसकी 'पेटा' नाम की उपशाखा है। पेटा की ५२ उपशाखाओं में से एक कापल(कायपल) है। कायपल उपशाखा में आदिपुरुष के नाम से 'देथा' उपशाखा चली। माँ बिरवङी जी का विवाह इसी देथा उपशाखा के 'भूयात जी अथवा करमसेण जी' (अलग-अलग विद्वानों के मतानुसार) जो कि बनासकांठा क्षेत्र में 'संखङो' ग्राम का स्वामी था, से हुई।
सीसोदे गाँव के गुहील राजा 'हम्मीर' उस समय अपने पूर्वजों का मेवाङ राज्य पुन: प्राप्त करने के लीए संघर्ष कर रहे थे; जो कि १३०३ ईस्वी में अल्लाऊद्दीन खिलजी द्वारा हथिया लिया गया था।
हम्मीर ने माँ बिरवङी जी की शरण प्राप्त की। माँ बिरवङी ने हम्मीर को विजय वरदान दिया और अपने पुत्र बारू देथा को 500 घोङों सहित हम्मीर की मदद के लिए भेजा।
बारू ने हम्मीर को वचन दिया कि विजय प्राप्त होने पर वह हम्मीर को 500 घोङे मूल्य के बदले देगा। और यदि पराजय होती है, तो ये 500 घोङे हम्मीर को बिना किसी मूल्य के भेंट कर देगा। उक्त सौदे के कारण बारू; 'बारू सौदा' के नाम से जाना गया और आज भी इसके वंशज *'सौदा'*उपटंक से जाने जाते हैं। विजयोपरांत हम्मीर ने बारू को अपना 'गढपति' और 'दसोंदी' बनाया; बैठक की ताजीम, 7 हाथी, 500 घोङे, पैरो मे सोने के लंगर,सैंकङों ऊँट व गाय-भैंसें, अतुल्य स्वर्ण भँडार व 12 गाँवों की सोना नीवेस जागीर अर्पित कर पग-पूजा की तथा अपने वंशजों को सौदा चारणों से कभी ना विरचने(विमुख होने) की सौगंध दिलवाई।
हम्मीर से ही मेवाड के शासको को राणा बीरुद प्राप्त है ।
राणा हम्मीर ने चित्तौङ के कीले में माँ बिरवङी जी का भव्य मंदिर बनवाया। आज भी हम्मीर के सिसोदिया वंशज माँ बिरवड़ी जी को बिरवड़ी माँ, बाण माता, अन्नपूर्णा आदि नामों से कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।
बारू सौदा कालांतर में राणा हम्मीर के साथ लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। इसी बारू की कुल परंपरा में सौदा पालम, सौदा बाजूड़, सौदा जमणा, सौदा अमरसिंह, सौदा नरू, सौदा जैसा, सौदा केशव ओनाडसिंह ,कृष्णसिंह ,केशरीसिंह,जोरावरसिंह,प्रतापसिंह सहित और भी बगोत से विर सौदा सिरदारों ने मेवाड़ी स्वातंत्र्य और स्वाभिमान की रक्षा हेतु कई युद्धो मे भाग लेकर वीरगति का वरण किया।
बारु सौदा को राणा हम्मीर द्वारा प्राप्य उमराव पद और 12 गांवो की जागीरी मे से ही एक ठीकाना है *पाणेर*।
बारुजी सौदा की 4थी पीढी मे पाणेर के दीपसिंह सौदा को ईडर के राजा राव विरमदेव ने ईडर में हठोज गांव की जागीर एनायत की।
श्री दीपसिंह जी के सुपुत्र ठाकुर देवीदानजी सौदा को 1657 चैत्र सुद 3 के दीन ईडर के राजा राव कल्याणमलजी ने *टोकरा* जागीर अर्पीत करके लाखपसाव देकर दरबार मे बैठक की ताजीम सम़्मान पूर्वक दी।
ठाकुर देवीदानजी अपने छोटे भाई को हठोज देकर टोकरा मे स्थिर हुए।
फीर से ठाकुर साब को दांता के महाराजा वाघजी की और से राणोल की जागीर प्राप्त हुई थी।
ठाकुर साब ने कोई पाठशाला मे से शीक्षा प्राप्त नही की थी ,मां सरस्वती उनके कंठ मे थी। वे खुद गुजराती,मारवाडी,डींगल,और पींगल भाषाओ के प्रखर जानकार थे । उनके तीन पुत्र थे:
१)मेशदानजी,२)मेघसिंहजी,३)रघुनाथजी
ईडर और दांता राज्य के दरबार मे ठाकुर साब का स्थान उच्च और सन्मान भरा था । ईन दोनो राज्य से समय समय पर ठाकुर साब को पुरस्कृीत कीया जाता था ।
ठाकुर साब ने भक्ति रस मे बहोत से काव्य लीखे थे,पर उनका साहीत्य आज अप्राप्य है। ७० वर्ष की आयु मे ठाकुर साब देवीदानजी का स्वर्गवास टोकरा मे हुआ।
उनके वंशज टोकरा के जागीरदार है और चारण समाज मे खानदान कहलाते है।
ठाकुर साब देवीदानजी के वंशजो मे
बहोत से विद्धवान कवि और शूरविर हुए।
जीनके नाम नीम्न है:
ठाकुर ईन्द्रसिंह जी सौदा,
ठाकुर गोपालसिंह जी सौदा,
ठाकुर छत्रसिंह जी सौदा,
ठाकुर उमेदसिंह जी सौदा,
ठाकुर खुशालसिंह जी सौदा,
ठाकुर जसराजसिंह जी(जसजी) सौदा,
ठाकुर आईदान जी सौदा,
ठाकुर हरनाथ जी सौदा(हठोज)
साबरमती नदी के उपर नीर्माण होने वाले धरोई बांध के भराव क्षेत्र में टोकरा गांव आ जाने से इस ठीकाने के सौदा बारहठो को अन्यत्र जमीने सरकार श्री तरफ से एनायत की गई।
आज भी श्री ठाकुर साब देवीदान जी सौदा के वंशज उनकी उच्चतम ख्याती की गवाही देते हुए मेवा-टोकरा,विरेश्वर-टोकरा,गढवी कंपा और हठोज ईत्यादी गांवो मे सोनानीवेस जमीनो के स्वामी है।
जय माँ बीरवडी जी
जय माँ करणी जी
जय माँ आवड जी
*जयपाल सिंह (जीगर बन्ना) थेरासणा*
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