क्षत्रिय चारण

क्षत्रिय चारण
क्षत्रिय चारण

शनिवार, 13 मई 2017

चारण कौन थे ?क्या थे ?


🔴 *चारण री बाता* 🔴
🔶  *चारण क्या थे?कौन थे ? (मध्य कालीन युग)*

अगर हम इतिहास मे एक द्रष्टि डाले तो पायेंगे की राजपूताना मे चारणो का इतिहास मे सदेव ही इतीहासीक योगदान रहा है । ये बहोत से राजघराणे के स्तम्भ रहे है । इन्हे समय समय पर अपनी वीरता एवम शौर्य के फल स्वरूप जागीरे प्राप्त हुई है ।
चारण राज्य मे  राजकवि ,उपदेशक एवम पथप्रद्शक होते थे । वह राजा के साथ युध्ध भूमि मे जाते थे एवम युध्ध मे राजा को उचित सलाह और धेर्य देते ,और अपनी वीरता युध्ध भूमि मे दिखाते थे ।वह राज्य के दार्शनिक ,राजकवि,रणभूमि के योद्धा और एक मित्र के रुप मे राज्य और राजा को सहयोग करते थे ,और राज्य की राजनीति मे भी उनका बड़ा योगदान रेहता था ।राजपूताना के राज्यों मे चारण एक  सर्वश्रेष्ठ,प्रभावशाली एवम महत्वपूर्ण व्यक्ति होते थे ।
जीवन स्तर : मध्य काल मे राजपूताना के चारण सभी प्रकार से सर्वश्रेष्ठ थे ।  राजघराने के राजकवि(मंत्री) और जागीरदार थे । उनके पास जागीरे थी उनसे जीवनयापन होता था ।

>राजपूताना से मिले कुरब कायदा -समान
चारणो को समय समय पर उनके शौर्यपूर्ण कार्य एवम बलिदान के एवज मे सन्न्मानीत किया जाता था ।जिनका विवरण इस प्रकार है :
1} लाख पसाव, 2} करोड़ पसाव ,3} उठण रो कुरब ,4} बेठण रो कुरब, 5}दोवडी ताजीम ,6} पत्र मे सोना 7}ठाकुर  8}जागीरदार

दरबार मे चारण  के बेठ्ने का स्थान छठा था ,सातवां स्थान राजपुरोहित का था । ये दो जातियाँ दोवडी ताजीम सरदारों मे ओहदेदार गिने जाते थे । चारण को दरबार मे आने  जाने  पर राज  दरबार  एवम राजकवि पदवी दोनो से अभी वादन होता था ।
चारण के कार्य :चारण राजा के प्रतिनिधि होते थे । चारण राजा को क़दम क़दम पर कार्य मे सहयोग करता था ।वह युद्ध मे बराबर भाग लेता और युध्धभूमि मे सबसे आगे खडा होता एवम शौर्य गान और  उत्साह से सेना व राजा को उत्साही करता और युद्ध भूमि मे अपनी वीरता दिखाते युद्ध करते । वह राजकवि के अतिरिक्त एक वीरयौद्धा और स्पष्टवक्ता होते थे । राजघराने की सुरक्षा उनका कर्तव्य था,राज्य के कोई आदेश अध्यादेश उनकी सहमती से होता था ।संकट समय पर राजपूत और राजपूत स्त्रीया  भी चारण के स्थान को सुरक्षित मान कर पनाह लेते थे ।
चारण कुल मे कई सारी देवियां हुई जो राजपूतो की कुलदेवीया है,ऐसी कोई राजपूत साख नही होंगी जिनकी कुलदेवी चारण न हो ।
देवलोक से आने से और कई  देवियां के जन्म से चारणो को (देवकुल) देवीपुत्र भी कहा जाता है । चारण कुल मे (काछेला समुदाय) मे देवियां हुई जो राजपूतों को राज्य प्राप्त करने मे मददरुप बने और राजपरिवार की कुलदेवियां हुई । और चारणो मे बहोत राजकवि ,वीरयोद्धा,स्पष्ट वक्ता हुए जो राजघराने के आधरस्तम्भ की तरह रहे । चारण का राजपूत से अटूट सम्बंध रहा है ।
अभीवादन :चारण अभिवादन "जय माताजी"से करते है,राजपूतो को जय माताजी कर अभीवादन करना चारण ने सिखाया है ।
>ठिकाणा व जागीरी: स्थिति - पुरातन समय में तो राजपुरोहित और चारण  राज्य के  सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ अधिकारी होते थे  । मध्यकाल में युद्धो में भाग लेने, वीरगति पाने तथा उत्कृष्ठ एवं शौर्य पूर्ण कार्य कर मातृभूमि व स्वामिभक्ति निभाने वालो को अलग-अलग प्रकार की जागीर दी जाती थी । इसमें चारण ,राजपूत व  राजपुरोहित ये तीन जातियाँ मुख्य थी । प्रमुख ताजीमें निम्न थी -

1. दोवड़ी ताजीम
2. एकवड़ी ताजीम
3. आडा शासण जागीर
 (क) इडाणी परदे वाले
 (ख) बिना इडाणी परदे वाले
4. भोमिया डोलीदार
 (क) राजपूतो में भोमिया कहलाते
(ख) चारण  एवं राजपुरोहितो में डोलीदार कहलाते ।

राजपूत साधारण जागीरदार, पर चारण  व राजपुरोहित को सांसण (शुल्क माफ) जागदीरदार कहलाते थे।

रस्म रिवाज -
समस्त रस्मोरिवाज विवाह, गर्मी, तीज-त्यौहार, रहन-सहन, पहनावा इत्यादि राजपूतो व चारणो के समान ही है।

वर्तमान स्थिति :बदलते युग के थपेड़ो के बिच चारण की गौरवगाथा मात्र ऐतिहासिक घटनाओ पर रह गयी है । अल्प संख्यक समाज है राजस्थान ,गुजरात कुछ भाग मे,मध्यप्रदेश के कुछ भाग मे चारणो की संख्या है ।सरकारी नोकरी मे चारण को जाना ज्यादा पसंद है ।कुछ चारण निजी व्यवसाय एवम खेती पर निर्भर है । देश की तीनो सशस्त्र सेना एवम सुरक्षा कर्मियों आदि नोकरी करनी ज्यादा पसंद करते है । देश भक्त एवम वफादार है । आज भी कुछ कुछ चारण काव्य रचते है ।
उपसंहार - स्पष्ट है कि पुरातन एवं मध्यकाल में चारणो, राजपुरोहितो एवं राजपूतो का चोलीदामन का प्रगाढ़ रिश्ता रहा है। सांस्कृति दृष्टि (रीति-रिवाजो) से ये कभी भिन्न नहीं हो सकते । एक दूसरे के अभिन्न अंग की तरह है। इतिहास साक्षी है - पुरातन समय में  चारणों ने समय-समय पर राजपूतो को कर्तव्यपालन हेतु उत्साहित किया । उन्होने काव्य में विड़द का धन्यवाद दिया एवं त्रुटियों पर राजाओं को मुंह पर सत्य सुनाकर  पुनः मर्यादा एवं कर्तव्यपालन का बोध कराया । रणभूमि मे शौर्यता और वीरता दिखा कर  कई युध्ध मे जीत हासिल की । किन्तु समय के दबले करवटों के पश्चात् देश आजाद होने  के बाद ऐसा कुछ नहीं रहा एवं धीरे-धीरे मिटता गया ।
संदर्भ :
⚫प्राचीन भारतीय इतिहास -dr. वी.एस.भार्गव
⚫भारतीय संस्क्रुति का विकास क्रम-एम.एल माण्डोत
⚫राजपुरोहित जाती का का इतिहास -प्रहलादसिंह राजपुरोहित
⚫चारण की अस्मिता -लक्ष्मणसिंह पिंगलशी  चारण


उपरोक्त पुस्तकों का निचोड़ कर के एवम  अपनी मौलिकता और इससे अतिरिक्त अन्य शब्द सामग्री का भी प्रयोग किया है ।आशा है समाज के प्रत्येक वर्ग को और अन्य समाज को भी  चारण ज्ञाति की रुचिकर एवं नई जानकारी  प्राप्त होगी ।
          *आभर*
     *"जय माताजी री"*
*कुँ.जीगरसिंह चारण (सिंहढायच)*
*ठी.थेरासणा (ईडर)*

39 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut shaandaar hukam....
    Is adbhut jankari ke lie koti koti dhanyawaad.

    Kya aap darbaar ke 5 pahle isthan bta sakte hain..jinke baad 6 pr charan or 7 pr Rajpurohit baith te the..

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  2. पहेले पांच स्थानो मे उन्ही राज्य के शासक के भायात शाखा के जागीरदार राजपूत बेठक मे होते थे....

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  3. Bahut bahut aabhar hukm aapro aap itni jankari share karke bahut achho kaam Kiya ho sa... Sadar parnam sa aapne... Jai Maa aawad karni indresh

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  4. बहुत बहुत आभार हुक्म आपने इतिहास बताया

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  5. अच्छी जानकारी के लिये साधुवाद

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  6. Dhokavada, santalpur में स्थित वरेखण माताजी मंदिर के बारे मे कुछ जाणकारी बतायेंगे..... वह कौनसे चारण है|

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  7. राठोड़ वंश की कुलदेवी मां नागाणाराय चारण वंश से नही थी

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    1. नागणेचा मां श्री आवड जी महाराज का रूप था जो सातो बहनो मैं बड़े थे जैसलमेर जागीर में मुसलमान नूरनदे की जागीर थी उसमें डूचिया नाई नाम का सीमा अंगरक्षक जिसे लोग पहरेदार कहते हैं वह सीमाओं पर घूमता रहता था और राज दरबार में खबरें पहुंचाने का काम किया सातों बहनों ने उस समुद्र में स्नान करने की ठान ली तब चुपके से बचाना आईने उन सातों बहनों को देख ली तब अचानक आवर जी महाराज की नजर उस पर पड़ी तो उन्होंने नागणेचा रूप धारण कर लिया और कन्याओं का रूप बदल लिया यह सातों बहनों महावर जी का अवतार है और यह राजपूत राठौड़ वंश की कुलदेवी के रूप में पूजे जाते हैं

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  8. Jay mata di hkm Charano me Ratnu wo ki kuldevi kon h bta skte ho hkm

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  9. Acha laga padkar Charan's ka itihas
    Ranjeet Singh Charan Udaipur Rajasthan

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  10. Bhut accha ,,,, mai umeed karta hu ki charan aur rajput pehle ki treh aaj bhi vhi niyam aur vhi cultures ko apnaye ,,,, jai mata di ,,,, devi Dan charn bhojariya Barmer

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  11. Mere bhai mangudan deval bhi aapko jai mata di ,, hkm🙏🙏🙏🙏

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  12. राजपुरोहित को समय-समय पर उनके शौर्यपूर्ण कार्य एवं बलिदान के एवज में सम्मानित किया जाता था जिनका विवरण इस प्रकार है -
    1. बांह पसाव, 2.हाथ रौ कुरब 3. उठण रौ कुरब,
    4. बैठण रौ कुरब, 5.पालकी, 6. मय सवारी सिरै डोढ़ी जावण रौ
    7. खिड़किया पाग, 8.डावो लपेटो 9. दोवड़ी ताजीम
    10. पत्र में सोनो 11.ठाकुर कह बतलावण रौ कुरब

    दरबार में राजपुरोहित के बैठने का स्थान छठा था । सातवां स्थान चारण का था । ये दोनो दोवड़ी, ताजीमी सरदारों में ओहदेदार गिने जाते थे । राजपुरोहित के दरबार में आने-जाने पर महाराजा दरबार एवं गुरू पदवी दोनो तरीको से अभिवादन मिलना होता था ।

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    1. भाई चारण का स्तान छटा था

      jab charan aate the to raja khud khade hokar unhe jay mataji kehkar bulate the or gale lagate the charan thakur jagirdar hote h

      unke ghar me 9 lakh shaktiyo ne avtaar liya h

      to aap charno ko rajpurohito se kese compare kar sakte ho

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  13. Bhai mujhe ek problem he aap charan hokar kumwar singh saadi ka upyog kyun karte ho pls bataye varna ye sab bhaichara kgrab karne vaali baten he jai mataji ri🙏

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    1. Kyuki kunwar, singh, thakur charan bhi lagate the kyunki ki inke paas jagire thi kai rajput dan bhi lagate the, or uss samay lagate the tab aapke purvajo ko dikkat nahi hui fir aapko kyu? Aapse to wo log kisi bhi soorat me(Bal+Budhi) me ache hi honge

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  14. अपने देवत्व के चलते चारण ने क्षत्रियों का मार्गदर्शन बहोत किया है,, बलिदान शौर्य और बौद्धिक संपदा से,,, जय माताजी,,,,

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