क्षत्रिय चारण

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सोमवार, 16 जनवरी 2017

सिंहढायचो का इतिहास

*सिंहढायचों का इतिहास*
🦁🗡


एकबार जोधपुर रियासत के राजा नाहङराव पडीहार  कहीं से अकेले ही आ रहे थे अरावली की पहाङियो से होते हुवै । गर्मी का मौसम भरी दोपहरी का समय तेज तावङो तपती घरा लाय रा थपिङा बावै । राजा जी नै रास्ते मे जोरदार प्यास लग गयी । दुर दुर तक पानी नहीं । गलो होठ सागेङा सुकग्या अंतस तकातक सुक गयो । आथङता 2 राजा जी डुंगरा री ढाल सुं नीचे आया उठै गाय रो खूर सुं खाडो पङियोङो जिणमे 2 - 4 चलू बरसात रो पाणी ठेरियोङो हो प्यासा मरतां थका नी आव देखयो नी ताव चलू भरनै खाताक सुङका लिया अर पानी पिवतां ई राजा रै हाथां मे कोढ (कुस्ट रोग ) जकी झङगी । अर सरीर मे एकाएक ताजगी आयगी । राजा देखयो आ कोई चमतकारी तपो भूमि है ।अठै सरोवर खुदाणो चहिजै ।
राजा बी जगां सरोवर खुदाई सुरु करावै पण ज्यां दिन रा खोदे पण रात वहैतां ई पाछो पैली हतो जङो व्है जावै । अर्थात बुरीज जावै काफी प्रयास करनै के बावजुद भी तालाब खोद नही पाते फिर राज विद्वानो गुणी व्यक्ति यों से।पुछवाता है ऐसा क्यो हो रहा हैं । तब बात सामनै आती हैं कि पैहले यहां बहुत बङा तालाब था इसके किनारै एक तपस्वी साधु का यहां आश्रमं था जिसकी बहुत सी गांये थी । अरावली की पहाङियो में शेर रहते थे वे तालाब में पानी पिने आते थे और कई बार ऋषिं की गायो को खा जाते थे इस कारण ऋषि इस तालाब को श्राप देकर यहां से चला जाता है और श्राप देता हैं कि इस तालाब में पानी नहीं ठेहरेगा । इस कारण ऐसा होता हैं पर राजा नाहङराव नै तो तय कर लिया था कि तालाब तो खुदाना ही हैं ।तब बङे बङे पंडित  विद्वानों से पता किया की इस श्राप का तोङ क्या है तब किसी ब्राह्मण देवता ने बताया जिसने सैकङो शेर मारे हुवै हो उसी के हाथो से तलाब खुदाई की नींव रखे तभी कार्य सम्भव हो पायेगा। तब यह समस्या आई की सैकङो शेर कौन मारे ऐसा आदमी कहा मिलेगा तब पता करते करते नरसिंहजी भाचलिया का नाम सामने आया पर उस समय वह गुजरात के गिर कि तलहटी में {जाखेङा गांव_दयालदास री ख्यात}और {चारण बिजाणंद सिंहढायच सैणी चारण री वात मे गुजरात रौ भाछली गांव भी बतावे} थे। नरसिंह जी के  पिता को शेर नै मार दिया था। (नरसिंह जी बहोत तेज मगज के थे)
जिस कारण उनको शेरो पर गुस्सा आया और उसी वक्त जल लेकर प्रण ले लिया की जब तक यहा के सारे शेरो को नही मार दु तब तक अन्न मुंडे में कोनी लुं  इस तरह वह रोज शेर को मारकर ही भोजन करते थे उन्होने सैकङो शेर मारै हुवै थे। नाहङराव  उनको  आग्रह कर  अजमेर पुस्कर ले आये और उस के बाद पुस्कर तालाब की खुदाई आरम्भ की नरसिंह भाचलिया के पुस्करणा ब्राह्मणो ने मिल कर तालब खोदा । नरसिंहजी को नाहङराव ने पेहला  मोगङा गांव जागीरी में दिया।सैकङो शेर मारनै के कारण नाहड़राव ने  नरसिंहजी भाचलिया को सिंहढायक की उपाधी दी।
(सिंह+ढायक) {ढानै वाला,मारने वाला,पाङनै वाला} सिंहढायक से अपभ्रंस में  सिंहढायच हो गया) मोगङा से ही अनेक राजाओ से अनेक जागीरे प्राप्त की।
 सिंहढायच जोधपुर,बीकानेर, मेवाङ,जयपुर, ईडर ,नरसिंहगढ(मध्य प्रदेश)जेसे स्टेटो मे राजघराने के मंत्री सदस्य और राजकवि पद पर थे ।सिंहढायचो मॆ कई बड़े बड़े शूरवीर,विध्वान और कविराज हो गये ।

*जीगर बन्ना थेरासणा*

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