*थेरासणा गाँव का इतिहास (ठीकाना)*
🗡🗡
ई.स.1745 में
मेवाड की राजधानी उदयपुर के सींहासन पर महाराणा जगतसिंहजी बीराजमान थे। उस समय उदयपुर के राजकवि ठाकुर गोपालदासजी सिंहढायच थे। बडे ही शुरविर, वीध्वान और सत्यवक्ता चारण थे। कुम्भलगढ से थोडी दुरी पर एक ठीकाना मण्डा के वह ठाकुर थे।
मेवाड की दक्षीणी सीमा पर ईडर राज्य स्थित है। वह जोधपुर (मारवाड) के राठोडो के अंतरगत राज्य था । राजा राव कल्याणमलजी ईडर की गद्दी पर बीराजमान थे।
ईडर राज्य मे एक महानपरोपकारी चारण सांयाजी झुला राज्य के राजकवि थे ।ईडर दरबार के ख्यातनाम व्यक्तित्व थे, पुरे भारतवर्ष मे उनकी ख्याती थी। सायांजी ईडर से उतरदीशा मे श्री भवनाथजी मंदीर के पास जागीर गाँव कुवावा के स्वामी थे | वे बहोत बडे वीध्वान संत और कृष्ण भक्त थे। ईडर राज्य के महापुरुष सांयाजी को सभी राजनैतीक कार्य कल्याणमलजी पुछ कर करते थे। कल्याणमलजी सायांजी को अपने आदर्श मानते थे।
एक दीन सायांजी अपने स्वपन के अनुसार जलसमाधी लेने हेतु व्रजभुमी जाने को रवाना हुए, जब राव कल्याणमलजी को ये बात की खबर हुई की सांयाजी मुझसे मीले बगैर जल समाधी को सीधा रहे है, तभी कल्याणमलजी सांयाजी को अंतीम बार भेट करने हेतु ईडर से ब्रज को रवाना हुए | राजा को रास्ते मे ही खबर मीली की सांयाजी ने नदी मे जल समाधी ले ली, और देवगती को प्राप्त हुए है। राजा कल्याणमलजी के पैरो तले जमीन खीसक गई ! उनकी सांयाजी से आखरी बार मीलने की ईच्छा अधुरी रहे गई । वो बडे ही नीराश होकर ईडर लोटने को रवाना हुऐ।
रास्ते मे राव कल्याणमलजी का ननीहाल उदयपुर आया वे उदयपुर पहोंचे | उन्होने श्री सांयाजी झुला की सारी बात महाराणा जगतसिंह को बताई, कहा की एक महान सीतारे की ईडर को खोट हुई। मुझे राज्य के लीए एक कुशळ और विध्वान चारण की आवश्कयता है। जगतसिंह ने बडा ही खेद व्यकत कीया और उनके खास मित्र ,समर्थ वक्ता और वीध्वान
उदयपुर के राजकवि ठाकुर गोपालदासजी सिंहढायच को राजा राव कल्याणमलजी के राज्य ईडर जाने का नीर्देश ईस शर्त पे कीया की ,ईडर मे सबसे ज्यादा आय वाले ठीकाने की जागीर गोपालदासजी को प्रदान की जाए | राव कल्याणमलजी ने शर्त मंजुर की।
ठाकुर गोपालदासजी राव कल्याणमलजी के साथ ईडर पहुचे। राजा कल्याणमलजी ने बडे मान सन्मान के साथ गोपालदासजी को ईडर के राजकवि पद पर सुशोभीत कर अपने दरबार मे आदर पूर्वक स्थान दीया। राज्य के कुरब कायदे, लाख पसाव और *थेरासणा*,वडाली ,रामपुरा एवं थूरावास ये चार गाँव की जागीरी एनायत की।उस समय पूरी ईडर रियासत मे सबसे ज्यादा आवक /आय (25,000-30,000/मास) इस चार गाँव की थी |
गोपालदासजी के साथ
एक दुसरा चारण परीवार भी मेवाड से ईडर आया था, उस चारण को ठाकुर गोपालदासजी ने थुरावास गांव की जागीरी प्रदान की।
कुछ सालो के बाद ठाकुर गोपालदासजी का स्वर्गवास हुआ।
एकदीन उन्ही के पुत्र ठाकुर राजसिंहजी ईडर की शाही सवारी मे दरबारगढ़ जा रहे थे । सवारी मेबहोत से सीपाही और दरबारी थे, तब उसी वक़्त वडाली के एक जैन व्यापारी ने मोका देख कर कहा," ठाकुर साब अपना हिसाब कब चुकता करोगे" राजसिंहजी को ईस बात से बहोत गुस्सा आया, वो दूसरे ही दिन जैन के पास गये और कहा की " चार गांव के ठाकुर को दरबार सवारी मे एसा केह ने की तुमारी हींमत कैसे हुई " ईतना केह कर कटार निकाल कर जैन की हत्या कर दी ।
जैन के परिवार वाले ईडर दरबार मे बदला लेने पहुँचे। राजा को सारी बात बताई, राजा ठाकुर साब को कुछ कर तो नही सकते ,उनके मीत्र ,राजकवि , ठाकुर और दरबारी थे ,तो राज्य के नीयम और न्याय के तौर पर राजा ने वडाली और रामपुर की जागीर खाल्सा कर दी।
गोपालदासजी ने जमीन के अंदर एक चार मंजिल की कोतरणी युक्त बावडीया का नीर्माण करवाया था ,जो आज रामपुरा मे स्थीत है,और उसी बावडी मे श्री विरसिंहजी बावजी की दीवार के अंदर मुर्ती भी वीध्यमान है।
फीलहाल आज ठाकुर गोपालदासजी सिंहढायच के वंशज थेरासणा के जागीरदार है | और वह चारणकुल में खानदान कहलाते है ।
*संदर्भ >*
*फार्बस रासमाला*
*- एलेकजांडर फार्बस*
*राव वीरमदेव*
*पृष्ठ:677-78*
*जयपाल सिंह (जीगर बन्ना) थेरासणा*