क्षत्रिय चारण

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सोमवार, 16 जनवरी 2017

दानेश्वरी चारण

मेवाड के राजकवि और मारवाड के मोघडा गाँव के श्री ठा.सा.हरीसिंहजी अचणदानजी सिंहढायच को मेवाड के राणा जगतसिंहजी(प्रथम)ने लाखपसाव से सन्मानीत कीया था| तब उसी समय कविराज ने दरबार में ब्राह्मण, भाट,राजकमँचारीओ को दे दीया था|
>यही कविराज को अकबर के नो रत्नों मे से एक राजा टोडरमलजी ने उदयपुर राज्य कविराज के चरणों मे अर्पित कीया था(उस समय उदयपुर अकबर के क्बजे मे था)  पर कविराज ने राज्य का अस्वीकार कीया और वापस कीया| पर टोडरमलजी के अती आग्रहवश हो कर कविराज ने कई गांव ब्राह्मण को दान मे दे दीये थे| तब का एक दोहा है:
 "दान पाये दोनो बढ़े, का हरी का हरनाथ,
उन पढ लंबे पद दीये, ईन बन लंबे हाथ"|
दानेश्वरी चारण >10.3
 पृ.222 >चारण नी अस्मीता

 Type By:कुँ.जीगरसिंह सिंहढायच

थेरासणा गाँव का इतिहास(ठीकाना)

*थेरासणा गाँव का इतिहास (ठीकाना)*
🗡🗡

ई.स.1745 में
मेवाड की राजधानी उदयपुर के सींहासन पर महाराणा जगतसिंहजी बीराजमान थे। उस समय उदयपुर के राजकवि  ठाकुर गोपालदासजी सिंहढायच थे। बडे ही शुरविर, वीध्वान और सत्यवक्ता चारण थे।  कुम्भलगढ से थोडी दुरी पर एक ठीकाना मण्डा के वह ठाकुर थे।

मेवाड की दक्षीणी सीमा पर ईडर राज्य स्थित है। वह जोधपुर (मारवाड) के राठोडो के अंतरगत राज्य था । राजा राव कल्याणमलजी ईडर की गद्दी पर बीराजमान थे।
ईडर राज्य मे एक महानपरोपकारी चारण सांयाजी झुला राज्य के राजकवि थे ।ईडर दरबार के ख्यातनाम व्यक्तित्व थे, पुरे भारतवर्ष मे उनकी ख्याती थी। सायांजी ईडर से उतरदीशा मे श्री भवनाथजी मंदीर के पास जागीर गाँव कुवावा के स्वामी थे | वे बहोत बडे वीध्वान संत और कृष्ण भक्त थे। ईडर राज्य के महापुरुष सांयाजी को सभी राजनैतीक कार्य कल्याणमलजी पुछ कर करते थे। कल्याणमलजी सायांजी को अपने आदर्श मानते थे।

  एक दीन सायांजी अपने स्वपन के अनुसार जलसमाधी लेने हेतु व्रजभुमी जाने को रवाना हुए, जब राव कल्याणमलजी को ये बात की खबर हुई की सांयाजी मुझसे मीले बगैर जल समाधी को सीधा रहे है, तभी कल्याणमलजी सांयाजी को अंतीम बार भेट करने हेतु ईडर से ब्रज को रवाना हुए | राजा को रास्ते मे ही खबर मीली की सांयाजी ने नदी मे जल समाधी ले ली, और देवगती को प्राप्त हुए है। राजा कल्याणमलजी के पैरो तले जमीन खीसक गई ! उनकी सांयाजी से आखरी बार मीलने की ईच्छा अधुरी रहे गई । वो बडे ही नीराश होकर ईडर लोटने को रवाना हुऐ।
रास्ते मे राव कल्याणमलजी का ननीहाल उदयपुर आया वे उदयपुर पहोंचे | उन्होने श्री सांयाजी झुला की सारी बात महाराणा जगतसिंह को बताई, कहा की एक महान सीतारे की ईडर को खोट हुई। मुझे राज्य के लीए एक कुशळ और विध्वान चारण की आवश्कयता है। जगतसिंह ने बडा ही खेद व्यकत कीया और उनके खास मित्र ,समर्थ वक्ता और वीध्वान
उदयपुर के राजकवि ठाकुर गोपालदासजी सिंहढायच को राजा राव कल्याणमलजी के राज्य ईडर जाने का नीर्देश ईस शर्त पे कीया की ,ईडर मे सबसे ज्यादा आय वाले ठीकाने की जागीर गोपालदासजी को प्रदान की जाए | राव कल्याणमलजी ने शर्त मंजुर की।

ठाकुर गोपालदासजी राव कल्याणमलजी के साथ ईडर पहुचे। राजा कल्याणमलजी ने बडे मान सन्मान के साथ गोपालदासजी को ईडर के राजकवि पद पर सुशोभीत कर अपने दरबार मे आदर पूर्वक स्थान दीया। राज्य के कुरब कायदे, लाख पसाव और *थेरासणा*,वडाली ,रामपुरा एवं थूरावास ये चार गाँव की जागीरी एनायत की।उस समय पूरी ईडर रियासत मे सबसे ज्यादा आवक /आय (25,000-30,000/मास) इस चार गाँव की थी |

 गोपालदासजी के साथ
 एक दुसरा चारण परीवार भी मेवाड से ईडर आया था, उस चारण को ठाकुर गोपालदासजी ने थुरावास गांव की जागीरी प्रदान की।

कुछ सालो के बाद ठाकुर गोपालदासजी का स्वर्गवास हुआ।
एकदीन उन्ही के पुत्र ठाकुर राजसिंहजी ईडर की शाही सवारी मे दरबारगढ़ जा रहे थे । सवारी मेबहोत से सीपाही और दरबारी थे, तब उसी वक़्त वडाली के एक जैन व्यापारी ने मोका देख कर कहा," ठाकुर साब अपना हिसाब कब चुकता करोगे" राजसिंहजी को ईस बात से बहोत गुस्सा आया, वो दूसरे ही दिन जैन के पास गये और कहा की " चार गांव के ठाकुर को दरबार सवारी मे एसा केह ने की तुमारी हींमत कैसे हुई " ईतना केह कर कटार निकाल कर जैन की हत्या कर दी ।

 जैन के परिवार वाले ईडर दरबार मे बदला लेने पहुँचे। राजा को सारी बात बताई, राजा ठाकुर साब को कुछ कर तो नही सकते ,उनके मीत्र ,राजकवि , ठाकुर और दरबारी थे ,तो राज्य के नीयम और न्याय के तौर पर राजा ने वडाली और रामपुर की जागीर खाल्सा कर दी।

 गोपालदासजी ने जमीन के अंदर एक चार मंजिल की कोतरणी युक्त बावडीया का नीर्माण करवाया था ,जो आज रामपुरा मे स्थीत है,और उसी बावडी मे श्री विरसिंहजी बावजी की दीवार के अंदर मुर्ती भी वीध्यमान है।

फीलहाल आज ठाकुर गोपालदासजी सिंहढायच के वंशज थेरासणा के जागीरदार है | और वह चारणकुल में खानदान कहलाते है ।

*संदर्भ >*
*फार्बस रासमाला*
*- एलेकजांडर फार्बस*
*राव वीरमदेव*
*पृष्ठ:677-78*


*जयपाल सिंह (जीगर बन्ना) थेरासणा*

सिंहढायचो का इतिहास

*सिंहढायचों का इतिहास*
🦁🗡


एकबार जोधपुर रियासत के राजा नाहङराव पडीहार  कहीं से अकेले ही आ रहे थे अरावली की पहाङियो से होते हुवै । गर्मी का मौसम भरी दोपहरी का समय तेज तावङो तपती घरा लाय रा थपिङा बावै । राजा जी नै रास्ते मे जोरदार प्यास लग गयी । दुर दुर तक पानी नहीं । गलो होठ सागेङा सुकग्या अंतस तकातक सुक गयो । आथङता 2 राजा जी डुंगरा री ढाल सुं नीचे आया उठै गाय रो खूर सुं खाडो पङियोङो जिणमे 2 - 4 चलू बरसात रो पाणी ठेरियोङो हो प्यासा मरतां थका नी आव देखयो नी ताव चलू भरनै खाताक सुङका लिया अर पानी पिवतां ई राजा रै हाथां मे कोढ (कुस्ट रोग ) जकी झङगी । अर सरीर मे एकाएक ताजगी आयगी । राजा देखयो आ कोई चमतकारी तपो भूमि है ।अठै सरोवर खुदाणो चहिजै ।
राजा बी जगां सरोवर खुदाई सुरु करावै पण ज्यां दिन रा खोदे पण रात वहैतां ई पाछो पैली हतो जङो व्है जावै । अर्थात बुरीज जावै काफी प्रयास करनै के बावजुद भी तालाब खोद नही पाते फिर राज विद्वानो गुणी व्यक्ति यों से।पुछवाता है ऐसा क्यो हो रहा हैं । तब बात सामनै आती हैं कि पैहले यहां बहुत बङा तालाब था इसके किनारै एक तपस्वी साधु का यहां आश्रमं था जिसकी बहुत सी गांये थी । अरावली की पहाङियो में शेर रहते थे वे तालाब में पानी पिने आते थे और कई बार ऋषिं की गायो को खा जाते थे इस कारण ऋषि इस तालाब को श्राप देकर यहां से चला जाता है और श्राप देता हैं कि इस तालाब में पानी नहीं ठेहरेगा । इस कारण ऐसा होता हैं पर राजा नाहङराव नै तो तय कर लिया था कि तालाब तो खुदाना ही हैं ।तब बङे बङे पंडित  विद्वानों से पता किया की इस श्राप का तोङ क्या है तब किसी ब्राह्मण देवता ने बताया जिसने सैकङो शेर मारे हुवै हो उसी के हाथो से तलाब खुदाई की नींव रखे तभी कार्य सम्भव हो पायेगा। तब यह समस्या आई की सैकङो शेर कौन मारे ऐसा आदमी कहा मिलेगा तब पता करते करते नरसिंहजी भाचलिया का नाम सामने आया पर उस समय वह गुजरात के गिर कि तलहटी में {जाखेङा गांव_दयालदास री ख्यात}और {चारण बिजाणंद सिंहढायच सैणी चारण री वात मे गुजरात रौ भाछली गांव भी बतावे} थे। नरसिंह जी के  पिता को शेर नै मार दिया था। (नरसिंह जी बहोत तेज मगज के थे)
जिस कारण उनको शेरो पर गुस्सा आया और उसी वक्त जल लेकर प्रण ले लिया की जब तक यहा के सारे शेरो को नही मार दु तब तक अन्न मुंडे में कोनी लुं  इस तरह वह रोज शेर को मारकर ही भोजन करते थे उन्होने सैकङो शेर मारै हुवै थे। नाहङराव  उनको  आग्रह कर  अजमेर पुस्कर ले आये और उस के बाद पुस्कर तालाब की खुदाई आरम्भ की नरसिंह भाचलिया के पुस्करणा ब्राह्मणो ने मिल कर तालब खोदा । नरसिंहजी को नाहङराव ने पेहला  मोगङा गांव जागीरी में दिया।सैकङो शेर मारनै के कारण नाहड़राव ने  नरसिंहजी भाचलिया को सिंहढायक की उपाधी दी।
(सिंह+ढायक) {ढानै वाला,मारने वाला,पाङनै वाला} सिंहढायक से अपभ्रंस में  सिंहढायच हो गया) मोगङा से ही अनेक राजाओ से अनेक जागीरे प्राप्त की।
 सिंहढायच जोधपुर,बीकानेर, मेवाङ,जयपुर, ईडर ,नरसिंहगढ(मध्य प्रदेश)जेसे स्टेटो मे राजघराने के मंत्री सदस्य और राजकवि पद पर थे ।सिंहढायचो मॆ कई बड़े बड़े शूरवीर,विध्वान और कविराज हो गये ।

*जीगर बन्ना थेरासणा*